एक नंबर से 30 बार बुकिंग, पुराने मरीज की फोटो अपलोड...सरकार से करोड़ों का भुगतान

एक नंबर से 30 बार बुकिंग, पुराने मरीज की फोटो अपलोड...सरकार से करोड़ों का भुगतान

अम्बेडकरनगर
यूपी में सरकारी एम्बुलेंस बिना मरीज के ही दौड़ रही हैं। एक मोबाइल नंबर से 30-30 बुकिंग की जा रही है। यह फर्जी बुकिंग रिकॉर्ड में दर्ज होती है। एंबुलेंस वहां जाती है, पुराने मरीज की फोटो अपलोड किया जाता है। बिना मरीज लिए एंबुलेंस अस्पताल लौटती है। फिर सरकार की तरफ से कंपनी को इसका भुगतान हो जाता है। हर महीने करोड़ों के ऐसे ही खेल हो रहा है।
मीडिया टीम ने इस धांधली का खुलासा करने के लिए प्रदेश के चार जिलों में एम्बुलेंस 102 और एम्बुलेंस डायल 108 पर निगरानी रखी। चलिए, बताते हैं एंबुलेंस सेवा में किस तरीके से फर्जीवाड़ा किया जा रहा...

एंबुलेंस लेकर निकले, 15 मिनट बाद वापस खाली आ गए
मीडिया टीम सबसे पहले अम्बेडकरनगर पहुंची, क्योंकि यहां धांधली की सबसे ज्यादा शिकायतें आ रही हैं। जिले में 58 एम्बुलेंस हैं। इसमें 26 एम्बुलेंस 102 और 26 एम्बुलेंस डायल 108 की हैं। 4 एम्बुलेंस एडवांस लाइफ सपोर्ट की हैं। ये सभी एम्बुलेंस जिले में अलग-अलग सीएचसी, मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में तैनात हैं। जिला अस्पताल में सबसे ज्यादा भीड़ होती है। इसलिए हम सुबह 7 बजे जिला अस्पताल पहुंचे।हॉस्पिटल के गेट से एंट्री करते ही 4 एम्बुलेंस खड़ी दिखीं। टीम पास की चाय की दुकान पर बैठ गई। एक एंबुलेंस यहां से निकली। वह गेट से टांडा की तरफ गई। करीब 15 मिनट बाद ही वापस आ गई। उससे कोई मरीज नहीं उतरा।थोड़ी देर में UP-32 EG 0790 नंबर की एम्बुलेंस बाहर निकली। वह भी 20 मिनट में वापस आई, उसमें भी कोई मरीज नहीं था। टीम यहां डेढ़ घंटे बैठी रही। तीन एम्बुलेंस एक-एक चक्कर और चौथी एम्बुलेंस दो चक्कर लगाकर वापस आकर खड़ी हो गईं।20 केस का प्रेशर इसलिए फर्जीवाड़ा करना पड़ता है
हर एम्बुलेंस में एक ड्राइवर और एक EMT यानी इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन की जरूरत होती है। मीडिया टीम ने जिले की ही एक सीएचसी पर तैनात ड्राइवर से बात की। ड्राइवर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारे ऊपर फर्जी केस का प्रेशर होता है। आज हमें 20 केस करना है। कौन प्रेशर देता है? इस सवाल पर ड्राइवर ने कहा- हमारे ऊपर तो जिले के ईएमई और प्रोजेक्ट मैनेजर ही दबाव बनाते हैं।धांधली को लेकर टीम ने जन्मेंजय से बात की। जन्मेंजय अयोध्या जिले की एम्बुलेंस सेवा में EMT के पद पर तैनात थे। अब वह बर्खास्त हो गए हैं। जन्मेंजय कहते हैं- हमें कम से कम 8 केस करना होता था, खास दिनों में किसी भी कीमत पर 20 केस करना ही होता था। ऐसा लगभग यूपी के हर जिले में होता है।
दुकानदारों का फोन लेकर एंबुलेंस बुलाई
जन्मेंजय कहते हैं- अधिक केस के दबाव के चलते एम्बुलेंस ड्राइवर ईएमटी हॉस्पिटल के बाहर दुकानदारों से संपर्क करते हैं। उनका फोन लेते हैं, उससे 102 या फिर 108 पर फोन करके एम्बुलेंस की जरूरत बताते हैं। इसके बाद एम्बुलेंस उनके बताए पते पर जाती है। बिना मरीज लिए वापस आ जाती है।मीडिया टीम ने अम्बेडकर नगर के जिला अस्पताल के बाहर दुकानदारों से बात की। दुकानदारों ने कहा- अक्सर हमारे फोन से ये लोग एम्बुलेंस बुक करते हैं। हालांकि, दुकानदारों ने यह बात कैमरे के सामने कहने से मना कर दिया। उनका कहना था कि चेहरा दिखेगा तो हम दुकान नहीं लगा पाएंगे।
पहले से खींची फोटो ऐप पर अपलोड की
एंबुलेंस कहीं जाती है, तो वहां मरीज को बैठाने के बाद उसकी फोटो लोकेशन के साथ ऐप पर अपलोड करनी होती है। जन्मेंजय बताते हैं- हम दूसरे फोन पर पहले से खींची कोई फोटो खोलकर उसे अपने फोन से ले लेते हैं, लोकेशन वहीं का आ जाता है।
एक-एक नंबर से 30-30 केस दर्ज
ड्राइवर और ईएमटी के पास एक से ज्यादा सिम होती है। जिसका वह फर्जी केस बनाने में इस्तेमाल करते हैं। जन्मेंजय कहते हैं- हमारे पास कुल 7 सिम थी। 9621**** और 88404**** नंबर के जरिए करीब 30-30 बार केस बुक करवाया है, सभी केस फर्जी थे। यह ऊपर बैठे अधिकारियों की जानकारी में होता है।
एम्बुलेंस से बाजार जाती हैं आशा बहू
आशा बहू का सबसे ज्यादा हॉस्पिटल आना-जाना होता है। कई बार वह घर से बाजार जाने के लिए ये एम्बुलेंस को फोन कर बुलाती हैं। बाजार में जाकर उतर जाती हैं, इस तरह एम्बुलेंस का एक केस रजिस्टर्ड हो जाता है। ऐसा ही एक वीडियो हमें जौनपुर से मिला है।आशा बहू विमला देवी से हमने बात की। उनके नंबर 92192**** से 100 से ज्यादा बार एम्बुलेंस बुलाई गई है। वह कहती हैं, हमारे आसपास बहुत सारे लोगों के पास फोन नहीं है। इसलिए वह हमसे ही कहते हैं कि एंबुलेंस बुला दीजिए।
जांच के बाद सीएमओ ने माना था आधे से ज्यादा केस फर्जी
धांधली की तमाम शिकायतों पर 2022 में यूपी सरकार ने जांच के आदेश दिए। तत्कालीन चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक वेदब्रत सिंह ने जांच के आदेश दिए। जांच शुरू हुई, तो जिलों में 50% तक फर्जी केस मिले। लखीमपुर में 2022 के फरवरी-मार्च-अप्रैल में डायल 102 एम्बुलेंस सेवा में 29,534 केस दर्ज हुए। जांच हुई तो पता चला 16,875 केस फर्जी हैं।इसी तरह देवरिया में करीब 8 हजार फर्जी केस मिले। वाराणसी में 2021 के मुकाबले 2022 में तीन गुना ज्यादा केस मिले, लेकिन यहां रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। बहराइच में फर्जी केसों पर 17 करोड़ रुपए का भुगतान करवा लिया गया। इसी तरह से करीब 50 जिलों की जांच में हजारों फर्जी केस मिले। जांच के बाद किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई।
फर्जी केस के चलते देर में पहुंचती है एम्बुलेंस
15 अप्रैल को फतेहपुर जिले के महुआई बाग में चंद्रभान सिंह साइकिल से जा रहे थे। हीटवेव के चलते जमीन पर गिर पड़े। आसपास के लोग एम्बुलेंस के लिए 108 पर फोन मिलाते रहे, करीब 1 घंटे तक एम्बुलेंस नहीं आई। बुजुर्ग चंद्रभान सिंह की मौत हो गई।एम्बुलेंस के तमाम ड्राइवर इस बात को मानते हैं- फर्जी केस में फंसे होने के चलते असली केस आने पर वहां वक्त पर नहीं पहुंच पाते। जिससे मरीज की मौत हो जाती है।
सवाल: फर्जी केस की जरूरत क्यों पड़ती है
यूपी सरकार GVK EMRI कंपनी को डायल 102 एम्बुलेंस में प्रति केस करीब 3500 रुपए देती है। डायल 108 एम्बुलेंस को महीने का 1 लाख 34 हजार रुपए देती है। हर दिन 6 केस अटेंड करने होते हैं। इससे ज्यादा केस करने पर स्वास्थ्य विभाग कंपनी को ऐक्स्ट्रा पैसे देता है। इसलिए कई एम्बुलेंस का बिल महीने में 3-3 लाख रुपए होता है।अब अगर हम यह मान लें डायल 102 एम्बुलेंस के जरिए रोज 10 फर्जी केस तैयार हो रहे हैं तो एक एम्बुलेंस से कुल कमाई 35 हजार होती है। प्रदेश में डायल 102 की 2200 एम्बुलेंस है। 2200 को 35 हजार से गुणा करने पर 7 करोड़ 70 लाख रुपए होता है। अब इसी को सालभर का आधार मानें तो यह राशि 1 हजार करोड़ से ज्यादा होती है। मतलब सरकार को सिर्फ डायल 102 एम्बुलेंस के फर्जी केस से इतना नुकसान हो रहा।
कंपनी ने कहा- प्लीज डोंट कॉल लाइक दिस
फर्जीवाड़े पर कंपनी का पक्ष जानने के लिए भास्कर टीम ने लखनऊ में इनके दफ्तर पहुंची। वहां कोई जवाब नहीं मिला। टीम ने यूपी की जिम्मेदारी संभाल रहे कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट टीवीएसके रेड्डी से एम्बुलेंस धांधली को लेकर बात की। उन्होंने कहा- प्लीज डोंट कॉल लाइक दिस। मतलब, इस तरह के सवाल पर कंपनी कोई जवाब नहीं देना चाहती।एम्बुलेंस सेवा में चल रहे फर्जीवाड़े को लेकर हमने चिकित्सा महानिदेशक पिंकी जोयल से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो पाई।