नवरात्रि स्पेशल:- ​​​​​​​राजस्थान के  लोकतीर्थों में से एक धनोप शक्तिपीठ दुर्गाअष्टमी पर उमड़ा हजारों श्रद्धालुओं का हुजूम।

नवरात्रि स्पेशल:- शाहपुरा से किशन वैष्णव की ख़ास रिपोर्ट
राजस्थान के लोकतीर्थों में से एक धनोप शक्तिपीठ दुर्गाअष्टमी पर उमड़ा हजारों श्रद्धालुओं का हुजूम फूल देने से कार्यसिद्ध करने व बाहरी हवा से पीड़ित लोगो को छुटकारा मिलने की प्रसिद्ध मान्यता। मेले में 76 स्थाई दुकाने,180 अस्थाई दुकाने लगाई गई।

शाहपुरा हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी चैत्र नवरात्रि महोत्सव पर क्षेत्र के सुप्रसिद्ध धनोप शक्तिपीठ पर मेले का आयोजन धूमधाम से हुआ। फूलियाकलां तहसील में जनआस्था के केंद्र धनोप माता शक्तिपीठ अपनी चमत्कारिक सिद्धी के कारण क्षेत्र में ख्याति प्राप्त है। देवी शीतला माता (देवी दुर्गा) का समर्पित धनोप माता मंदिर राजस्थान राज्य के प्रमुख मंदिर में से एक है जहाँ हर साल बड़ी संख्या में हिन्दू भक्त शीतला माता के दर्शन के लिए आते है। इस मंदिर की वास्तुकला भी काफी आकर्षक है जो इसके अन्य आकर्षण के रूप में कार्य करती है। नवरात्रि मेले में दुर्गा अष्टमी पर हजारों की तादात में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे,लोग अपनी मान्यताओं से सेकडो किलोमीटर दूर दराज से पैदल चलकर दर्शन के लिए शक्तिपीठ पहुंचे है भारी संख्या में श्रद्धालुओ की भीड़ के बीच पुलिस व्यवस्था भी माकूल दिखी तथा चप्पे चप्पे पर श्रद्धालुओ की सुरक्षा का बंदोबस्त किया।वही चिकित्सा व्यवस्था को लेकर भी स्टाफ की व्यवस्थाएं की गई। सैकड़ों लोगों की भीड़ रात दिन नवरात्रि स्थापना से पूर्ण अंतिम दशहरा तक शक्तिपीठ धनोप प्रांगण में उपस्थित रहती है वही क्षेत्र से हजारों किलोमीटर तक पैदल यात्री मेले में पहुंचते हैं पुलिसकर्मी तैनात हैं तथा भीड़ को सुरक्षित माता के दर्शन के लिए कतारबद्ध तरीके से भेजे जा रहे हैं चैत्र नवरात्रि शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण समय होता है. देवी के जयकारों से धनोप माता परिसर का समस्त वातावरण अभिभूत हो जाता है. पूज्या मां भगवती श्री धनोप मातेश्वरी का प्राकट्य बृहद विष्णुपुराण के अनुसार 6 हजार वर्ष पूर्व हुआ,जिनका पुराण में राजा धुंध की कुलदेवी मां जगदीश्वरी के नाम से वर्णन मिलता है।

मुख्य मार्गो पर तीसरी आंख की रही नजर..चिकित्सा व्यवस्था लगाई।

अष्टमी के दिन माता के दरबार में हजारों भक्तों की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ी।लोगों के आस्था का केंद्र धनोप माता के दरबार में भक्तों ने हाजिरी लगाकर सुख समृद्धि की कामना की।माता के दर्शन करने के लिए सप्तमी की शाम से ही पद यात्री विभिन्न क्षेत्रों से डीजे की धुन पर नाचते झूमते श्रद्धालु माताजी के जयकार लगाते हुए माता के दरबार में पहुंचे।पैदल यात्रियों के लिए जगह-जगह मां के भक्तों द्वारा भंडारा खोलकर चाय नाश्ते एवं भोजन की व्यवस्था की गई। नन्हे मुन्ने बच्चों के मनोरंजन के लिए डॉलर चाकरी झूलते नजर आए,मेले में 76 स्थाई दुकाने बनी हुई है और 180 अस्थाई दुकाने लगाई गई, वाहन पार्किंग बिजली पानी अन्य मंदिर को विद्युत डेकोरेशन से सुसज्जित किया गया है तथा मंदिर परिसर के मुख्य मार्गों पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। मंदिर ट्रस्ट द्वारा एंबुलेंस व्यवस्था व चिकित्सा व्यवस्था भी उपलब्ध रही। कुछ समय के लिए फूलिया कला मार्ग पर वाहनों का जाम लगा रहा बाद में थाना प्रभारी मुन्नी राम चोयल सहित स्टाफ ने मोर्चा संभाला और एक एक वाहन को व्यवस्थित निकाला। मेले में लूट,चोरी-चकारी, लड़ाई-झगड़े इत्यादि कोई अनावश्यक वारदाते नहीं हुई।भेरुजी महाराज के बाहरी हवाओ का निवारण कराने आए हुए श्रद्धालुओं भी संख्या दिखाई दी।

वर्ष के दो नवरात्रि लगता है मेला...
धनोप माता की मन्दिर में वर्ष के दोंनो नवरात्र के पवित्र दिनों में श्रद्धालुओं कि भीड़ लग जाती हैं. गरीब से लेकर अमीर व्यक्ति भी माता के चौखट पर पूजा-अर्चना कर कार्य पूर्ण करने की प्रार्थना करता हैं. प्रेत,आत्माओं से पीड़ित आमजन को छुटकारा मिलता है. मातेश्वरी मंदिर के सामने भेरुजी महाराज का पवित्र स्थान है जहां पर प्रेत,आत्माओं से पीड़ित आमजन को छुटकारा मिलता है. पीड़ित नवरात्र में वहीं रहकर पूजा अर्चना करता हैं. गरीब से लेकर अमीर व्यक्ति भी माता के चौखट पर पूजा-अर्चना कर कार्य पूर्ण करने की प्रार्थना करता हैं. वर्ष के दोंनो नवरात्र के पवित्र दिनों में पूरे मंदिर परिसर को भव्य रूप से रौशनी, रंग-बिरंगी पताकाओं से सजाया जाता है. श्रद्धालुओं के लिए शुद्ध जल,ठहरने, वाहनों की सुरक्षा एवं आने जाने के रास्तो की व्यवस्थाएं मंदिर ट्रस्ट द्वारा की गई।

पौराणिक परंपरा के अनुसार होती है विशेष आरती।

पौराणिक परंपरा के अनुसार धनोप माता की आरती हर रोज़ सुबह-शाम दोनो समय होती है. लेकिन नवरात्रा के समय एकम से लेकर दशमी तक प्रातः 3:30 बजे मंगला आरती, सुबह 7.30 बजे मुख्य आरती और 6.30 बजे सायं आरती कि जाति हैं.रोज अलग अलग रूप से विशेष श्रृंगार किया जाता है दसमीं को 11 दिवसीय शारदीय नवरात्र मेले का समापन हो जायेगा.लगभग 11वीं शताब्दी पुराना है. इस मंदिर में विक्रम संवत 912 का शिलालेख भी है जिससे मंदिर के ऐतिहासिक होने की पुष्टि होती है. 90 फीट उंचे और 100 फीट चौड़े वर्गाकार टीले से रेत हटाते ही मां भगवती अपनी 7 बहिनों के साथ प्रकट हुईं, जिनमें श्री अष्टभुजाजी, अन्नपूर्णाजी, चामुण्डाजी, महिषासुर मर्दिनी व श्री कालका जी प्रकट हुई।