राम मंदिर पर की गयी टिप्पणियों से कारसेवक आहत, कहा सतर्क रहने की जरूरत

सिरसागंज। राम मंदिर की पुर्नस्थापना और नवनिर्माण के अभियान पर की गयी टिप्पणियों से राम के अनुयाई तो आहत हैं ही, राममंदिर अभियान में सक्रिय और महत्वपूर्ण भूमिका करने वाले स्वयंसेवक-कारसेवक व हिन्दू संगठनों के लोग ज्यादा दुखी हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री द्वारा भूमिपूजन किये जाने के बाद कुछ विध्वंसक तत्वों द्वारा मंदिर के भविष्य को लेकर जो टिप्पणियां की गयी हैं, उनसे हर मानवतावादी को सावधान रहने की आवश्यकता है।
वरिष्ठ स्वयं सेवक कैलाश पोरवाल ने कहा कि विधर्मियों की टिप्पणियों से राममंदिर के भविष्य को लेकर आशंका पैदा हो गई है। सरकार और देश से प्रेम करने वालों को बेहद सावधान रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मंदिर तोड़ने की बात करने वालों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। कानून को भी उन पर देशद्रोह जैसी कार्यवाही करनी चाहिए।


*फिर से करना चाहते हैं कारसेवा*
एक नागरिक, अध्यापक और स्वयंसेवक के रूप में आर्दश जीवन की मिसाल पेश करने वाले 75 वर्षीय कैलाश पोरवाल आज भी देश और समाज के लिए काम करते हैं। संघ और समाज के लिए पूरी तरह सक्रिय हैं। उन्होंने ने कहा कि देश और संस्कृति की रक्षा के लिए आज भी काम करना चाहता हूं। वे राम मंदिर के निर्माण से अत्यंत प्रसन्न हैं और एक बार फिर से अयोध्या जाकर कारसेवा करना चाहते हैं। उन्होंने मंदिर न्यास के अध्यक्ष चंपतराय से अयोध्या आकर मंदिर निर्माण में योगदान करने की अनुमति मांगी है। यहां विभाग प्रचारक रहे दिनेश जी के माध्यम से पत्र भेज कर यह इच्छा जतायी है।

*नहीं भूल सकते हैं 1992 के वे दृश्य*
राममंदिर आंदोलन का चरमोत्कर्ष नवंबर माह 1992 से आरंभ हुए घटनाक्रम को याद करते हुए वरिष्ठ स्वयंसेवक कैलाश पोरवाल भावुक हो गये। कैलाश पोरवाल ने कहा कि मंदिर आंदोलन में तत्कालीन सपा सरकार के रवैये को वे कभी नहीं भूल सकते हैं। उन दिनों की याद करते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस ने अयोध्या जाने से रोकने के लिए लोगों को हर तरह से प्रताड़ित किया। एक महीने तक उनका पूरा परिवार घर छोड़ कर भागता रहा। पत्नी और बच्चों को रिश्तेदारों-पड़ोसियों के यहां शरण लेनी पड़ी। सरकार का पुतला दहन करने पर उनके बड़े पुत्र को पुलिस ने डंडों से पीट कर गिरफ्तार किया। इन हालात में भी कारसेवा की मंशा नहीं त्यागी। दीपावली दौज को बिना बताये अकेले ही अयोध्या चल दिये। मणिराम छावनी पहुंचे। दूसरे दिन महंत रामचंद्र परमहंस के आश्रम में शिफ्ट किया गया। 06 दिसंबर को कारसेवकों के जत्थे जन्मस्थान की ओर उमड़े। आंसू गैसे से बचने के लिए चेहरे पर चूना पोत लिया। पुलिस ने गोलियां चलाईं। लेकिन कोई नहीं डिगा। कई लोग मारे गये। आसमान पर हैलीकाॅटर उड़ता दिखा। कारसेवकों ने जूते चप्पल दिखाये।


*कारसेवकों को नहीं मिला सम्मान*
06 दिसम्बर की कारसेवा में नगर सिरसागंज से अयोध्या पहुंचने वाले एकमात्र स्वयं सेवक कैलाश पोरवाल ने कहा कि कारसेवकों का योगदान अतुलित है। परिजनों को पता नहीं था कि वे कहां हैं। हफ्तों को घूम घूम कर लोगों को जागरूक करते रहे। अनेक लोगांे ने लाठियां खायीं तमाम लोग जेल गये। मंदिर के लिए योगदान और बलिदान करने वालों ने बिना किसी लालच के राष्ट्र और धर्म के प्रति अपने कर्तव्य निर्वाह किया लेकिन किसी सरकार या संगठन ने कोई सम्मान नहीं दिया। कल्याण सिंह की सरकार में सूची बनाई गयी लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई।

*न जेल की परवाह की न लाठियों की*
हिन्दू संस्कृति के लिए हुए आंदोलनों में कैलाश पोरवाल के भतीजे आदेश पोरवाल अपने चाचा से भी आगे निकल गये। विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, राष्टीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा मंे रहते हुए वे समाज सेवा के लिए मुखर रहे। 1985 में कश्मीर में लालचैक पर झंडा फहराने गये दल के साथ थे। उधमपुर मंे नजरबंद कर लिया गया। आदेश पोरवाल करीब 22 साल की उम्र में मंदिर आंदोलन मुखर होने पर बड़े नेताओं के साथ प्रदर्शन और धरनों में शामिल होते रहे। 22 अक्टूबर 1990 को उन्हें गिरफ्तार कर एनएसए लगा कर जेल भेज दिया गया। करीब एक महीने तक आगरा जेल मंे रहे। 13 मार्च 1991 को एक प्रदर्शन में उन्हें फिर गिरफ्तार कर फतेहगढ़ सेंट्रल जेल मंे रखा गया। वे राममंदिर के प्रतीकात्मक शिलान्यास में कारसेवा करने अयोध्या गये।

*रामज्योति और रामशिला के जरिये जगाया अलख*
तमाम नेताओं ने कस्बे से लेकर गांवों तक घर-घर जाकर राम ज्योति पहुंचायी। वहीं रामशिला के पूजन के माध्यम से भी लोगों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा गया। अभियान के चरम पर पुलिस की सक्रियता के कारण छिप छिप कर आंदोलन को जारी रखा गया। 06 दिसंबर से पहले ही कौशल किशोर अग्रवाल और सियाराम धनगर को गिरफ्तार कर लिया गया। सुमन चतुर्वेदी के निवास पर पुलिस पहुंची तो महिला कांस्टेबिल साथ नहीं होने पर सुमन ने पुलिस को बैरंग लौटा कर खुद को गिरफ्तार होने से बचाया। साधू सिंह, विजय सिंह, जगदीश शर्मा आचार्य, राम अग्रवाल, डा. सुधीर गुप्ता जैसे तमाम लोगों ने पुलिस से बचते हुए अपने अपने स्तर से जागरूकता में सक्रिय भूमिका निबाही।