चित्र और चरित्र में बसते हैं मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु श्रीराम पंडित दयाराम जोशी 

प्रभु के चित्र की पूजा के साथ-साथ उनके चरित्र का अनुसरण भी करना चाहिए तभी हमारा जीवन सुखमय होगा पंडित दयाराम जोशी

रायबरेली।श्रीरामचरित मानस के महानायक प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।जो धर्म, कर्तव्य और आदर्श जीवन के प्रतीक माने जाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र त्याग, कर्तव्यपालन,निष्ठा,सहनशीलता-संयम, सच्चाई-न्याय, समानता-करुणा,परिवार-रिश्तों की महत्ता,स्वार्थ रहित कुशल नेतृत्व का महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है।प्रभु,मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र की मर्यादाओं के मार्ग का वर्णन करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी पंडित दयाराम जोशी ने कहा श्रीराम एक ऐसा पथ है,जिस पर राम ही सदा चले,उनके जैसा मर्यादा पुरुषोत्तम सृष्टि में ना कोई हुआ है और ना कभी होगा।प्रभु निश्चित रूप से मर्यादापुरुषोत्तम है।उन्होंने सदैव ही मर्यादा में रहकर हर कार्य किया और न्याय,सत्य और धर्म के पथ पर आजीवन चलते रहे एवं सामान्य पुरुष की भांति जीवन के हर संघर्षों को अपनाया और मानव के रूप में आकर प्रभु श्रीराम ने सभी जनमानस का कल्याण किया।मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जीवन एक आदर्श व्यक्तित्व और नैतिक मूल्यों का प्रतीक है।जिससे हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं।प्रभु श्रीराम ने पिता के वचन को निभाने के लिए राजसुख और राज्य का त्यागकर 14 वर्षों का वनवास स्वीकार किया।इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि कर्तव्य और वचन पालन जीवन में सर्वोपरि होना चाहिए।उन्होंने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोया,चाहे वह वनवास हो या माता सीता का हरण हो।वे हमेशा चट्टान की तरह संयमित और शांत रहे।इससे हमें जीवन में संयम और धैर्य रखने की प्रेरणा मिलती है।भगवान श्रीराम ने अपने सम्पूर्ण जीवन में सत्य और न्याय का पालन किया।उन्होंने रावण जैसे अत्याचारी का वध कर धर्म की स्थापना की।इससे हमें यह सीखने को मिलता है कि सत्य की हमेशा विजय होती है और न्याय करना जीवन का एक आवश्यक मूल्य है।पंडित दयाराम जोशी ने कहा प्रभु श्रीराम ने मनुष्य रूप में मित्र,भाई, पुत्र, पति और माता-पिता हर नाते का सम्मान कर पूरी दुनियां को मर्यादा के मार्ग पर चलने का पाठ पढ़ाया।लेकिन वर्तमान समय में मित्र-मित्र न होकर शत्रु अधिक है।इस संदर्भ में भी भगवान श्रीराम ने मित्रता का उदहारण मानव जाति को दिया है।मित्र के रूप में प्रभु श्रीराम के चरित्र का वर्णन शब्दो द्वारा संभव नहीं है।उनके दास संकट मोचन श्री हनुमानजी से उनकी मित्रता उच्चकोटि की मित्रता का स्थान पाती है।इसके अतिरिक्त प्रभु श्री राम ने कभी भी जाति के नाम पर भेद-भाव नही किया।वे सभी मनुष्यों को समान समझते थे।उनकी नजर में कोई छोटा या बड़ा नहीं था।इसका उदहारण भी रामायण में प्राप्त होता है।श्रीराम ने अपने मित्र निषाद राज गुहा का सम्मान किया।उन्हें अपने कंठ से लगाया,केवट की भक्ति पर तो वे बलिहारी हो गए और जो तृप्ति उन्हें वनवासी माँ सबरी के झूठे बेर खाकर हुई वो तृप्ति उन्हें अवध और मिथिला के छत्तीस व्यजनों में भी प्राप्त नहीं हई।प्रभु श्रीराम ने विभीषण और वनवासी सुग्रीव जैसे साधारण व्यक्तियों से मित्रता कर समानता और करुणा का संदेश दिया।इससे हमें सिखने को मिलता है कि सभी का सम्मान करना चाहिए,चाहे उनकी सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।उन्होंने आगे कहा स्वयं भगवन श्रीराम ने भी विषम परिस्थिति में धैर्य का सहारा लेकर आदर्श प्रस्तुत किया था।इसके लिए शास्त्रों में भगवान श्रीराम को आदर्श पुरुष कहा गया है।मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का अपने भाइयों,पत्नी और माता-पिता के प्रति प्रेम और निष्ठा हमें बताता है कि परिवार और रिश्तों का जीवन में बड़ा महत्व है।उन्होंने हमेशा अपने प्रजा के हित को प्राथमिकता दी।अयोध्या लौटने पर उन्होंने 'राम राज्य' की स्थापना की।जो न्याय समानता और खुशहाली का प्रतीक हैं।इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि एक सच्चे नायक को निःस्वार्थ और परोपकारी होना चाहिए।श्री राम के जीवन के मर्यादाओं की ये शिक्षाएँ हमें एक आदर्श जीवन जीने और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को सही ढंग से निभाने के लिए प्रेरित करती हैं।इसीलिए प्रभु श्रीराम की पूजा-अर्चना करने और उनके बताएं मर्यादा के मार्ग पर चलने से हर सनातनी को धैर्य का वरदान प्राप्त होता है।इससे व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट समय के साथ दूर हो जाते हैं।