कोरोना ने बदल दी रिश्तों की परिभाषा: नहीं आए रिश्तेदार तो बेटियों ने दिया पिता को कंधा 

कोरोना ने बदल दी रिश्तों की परिभाषा: नहीं आए रिश्तेदार तो बेटियों ने दिया पिता को कंधा

संवाददाता कार्तिकेय पांडेय

कोरोना काल रिश्तों की रोज नई परिभाषाएं भी गढ़ रहा है। संक्रमण के भय से रिश्तेदार और नजदीकी लोग जब दूर होते दिख रहे हैं तब बेटियां आगे बढ़ कर अपनी दिवंगत मां या पिता की अंतिम यात्रा की जिम्मेदारियां निभा रही हैं। इसकी ताजी मिसाल काशी में दो बेटियों ने पेश की। सोनभद्र निवासी पिता के निधन पर जब रिश्तेदारों ने दूरी बना ली तो उन्होंने पिता के पार्थिव शरीर को न सिर्फ कंधा दिया बल्कि मुखाग्नि भी दी।

सोनभद्र में दुद्धी निवासी उमाशंकर तिवारी (65) पिछले दिनों सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। हालत बिगड़ने और साथ में कोरोना की शिकायत पर उन्हें शनिवार को बीएचयू के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया। रविवार सुबह उमाशंकर तिवारी की सांसें थम गईं। पिता की लंबी बीमारी में हुए भारी खर्च से टूट चुके परिवार के लिए अब अंतिम संस्कार की समस्या थी। अंतिम संस्कार के लिए भी पर्याप्त राशि नहीं थी। बड़ी बेटी रत्ना और छोटी बेटी अर्चना ने अपने रिश्तेदारों को फोन किया। किसी से अनुकूल जवाब न मिलने पर उन्होंने सेवा भारती के प्रांत सह व्यवस्था प्रमुख डॉ. राकेश तिवारी से संपर्क किया। डॉ. राकेश की पहल पर स्व. उमाशंकर का शव ट्रामा सेंटर से सामने घाट स्थित अस्थायी शवदाह स्थल लाया गया। शवदाह स्थल से चिता तक रत्ना और अर्चना के साथ सेवा भारती के सौरभ व कमलेश ने शव को कंधा दिया।


मां ने अश्रुधार से दी जलांजलि :

आरएसएस के लकड़ी बैंक की मदद से सजी चिता पर शव रखा गया। अर्चना ने जरूरी विधान पूरा करने के बाद पिता को मुखाग्नि दी। इस दौरान वहां मौजूद रत्ना व अर्चना की मां सरोजा देवी की आंखों से अश्रुधार दिवंगत पति को जलांजलि दे रही थी। अंत्येष्टि के बाद सेवा भारती ने सभी को दुद्धी भेजवाने का भी प्रबंध किया।
लकड़ी बैंक से मिलेगी मदद : सेवा भारती के डॉ. राकेश तिवारी ने कहा कि सामनेघाट पर दक्षिण भाग के संपर्क प्रमुख सौरभ और मिथिलेश कुमार के फोन नंबर चस्पा किए गए हैं जिनसे संपर्क कर मदद ली जा सकती है।