स्योहारा बना हस्तिनापुर तो महाराज धृतराष्ट्र कौन?

नारद भ्रमण

अश्मनी विश्नोई अकेला (स्योहारा बिजनौर)

देव ऋषि नारद आकाश में भ्रमण कर रहे थे कि अचानक उनकी नजर स्योहारा की एक ऐसी सरकारी संस्था पर पडी जहाँ से कानून व्यवस्था एंव शांति व्यवस्था चलती है । देव ऋषि नारद जी ने देखते ही कहा कि नारायण नारायण घोर कलयुग में भी द्वापर युग का दृश्य दिखाई दे रहा है । संस्था के प्रमुख की कुर्सी पर बैठे मनुष्य को देखते ही कहा कि यह मानव तो सच में धृतराष्ट्र की तरह आचरण कर रहा हैं । कि एक अपने कर्मचारी को ऐसे रखता है जैसा उसका पुत्र हो और उस पुत्र प्रेम में इतना अंधा कि मानों जैसे दुर्योधन के प्रेम में महाराज धृतराष्ट्र हो । गलत को सही कहे तो सही और सही को गलत कहे तो गलत मानो हस्तिनापुर में सब लोग दुष्ट प्रवृत्ति के होने लगें हो । प्रमुख के वाहन के चालक पर जब नारद की दृष्टि गयी तो देखते ही कहने लगे हे प्रभु आपकी भी लीला अपार है सच में सारथी सजय ही चालक बन कर आ गये हो । द्वापर युग के हस्तिनापुर के दृश्य को देखकर नारद जी के मन में एक प्रशन उठा कि जब सभी किरदार निभाने नजर आ रहे है तो जरूर भीष्म पितामह भी होने चाहिए ,ऋषि नारद की आखे उस मानव को तलाश करने लगी जो भीष्म का किरदार निभा रहा हो । तभी अचानक अस्त्र शस्त्र से सुशोभित हुए एक मानव पर दृष्टि पडी जो गलत को देखते हुए भी सही नही कह सकता क्युकी उसने प्रतिज्ञा ले रखी है कि इस हस्तिनापुर के साथ हूँ जो लोग भी इस प्रमुख की कुर्सी पर बैठेगा उसकी हर बात मानना मेरी मजबूरी है । यह दृश्य को देखते ही नारद के मन में फिर एक प्रशन उठा कि प्रभू फिर कही महाभारत न हो जाए । सभी तरफ हा हा कार मच रहा है ।यह दृश्य देखकर ऋषि नारद आकाश मार्ग से होकर चले तो मन में हुआ कुछ रह गया तो उन्होंने अचानक देखाकि चौसर खेला जा रहा है । फिर क्या नारायण नारायण इतनी जगह चौसर और महाराज धृतराष्ट्र मौन है पुत्र मोह में ये क्या हो रहा है ,सच्चाई जानी तो पता चला प्रमुख की कुर्सी पर बैठे महाराज धृतराष्ट्र नें अपने पुत्र पर राज काज छोड दिया । जगह जगह बसूली हो रही है । अब तो कोई कृष्ण आएगा तभी ये खत्म होगा । लेखक के भावों से आप जान गये होगे कि किधर और कहा इशारा किया गया है ।ऋषि नारद त्राहिमाम त्राहिमाम कहते हुए आकाश मार्ग से चले गये ।