प्रकृति का प्रकोप : कोरोना

प्रकृति का प्रकोप : कोरोना

सम्पूर्ण विश्व में नीरसता छायी है यह कैसी महामारी आयी है

झोपड़ी से महलों तक,आम रास्ते से संसद तक...
भिखारी से मंत्री तक,नुक्कड़ से बॉलीवुड तक
आतंकी से डॉक्टर तक,सबकी शामत आयी है...
ये कैसी महामारी आयी है

कहीं ये प्रकृति का प्रकोप तो नहीं ?
किया जो प्रकृति से खिलवाड़ उसका विरोध तो नहीं ?
हाँ ये बेजुबान जानवरों की आहों का पिटारा है !
ये तुम्हारे ही गुनाहों का नज़राना है !

कहीं ये प्रकृति की दंडात्मक प्रविधि तो नहीं ?
कहीं ये प्रलय का दूसरा रूप तो नहीं ?
ये पृथ्वी के मंथन के बाद कि अश्रुधारा है !
हाँ, हाँ ये पाप का घड़ा भरने का इशारा है !

डॉ० रागिनी दुबे
मोतीगंज , भरथना (इटावा)