नीली सी चमकती पत्थर , एक कहानी : मुनमुन ढाली

गर्मी की रात ,नींद ठीक से आ नहीं रही थी ! स्नेहास आधी रात को टहलने निकल पड़ा ,दूर उसे नीली सी चमकती कुछ दिखी
धीरे -धीरे सहमे कदमों से बढ़ने लगा ,उस चमक की ओर पास गया तो देखा कान की बूंदे थी पर """"उसे एक ही मिली , स्नेहस ने मिट्टी झाड़ी और उसे हथेली में लिए अपने कमरे में आ गया ""सिरहाने रख """ देखते -देखते उसे नींद आ गई ,सुबह देर से आंख खुली पर बूंदों को अपने साथ लिए
रहा 'दोपहर की धूप में फिर स्नेहास के आंखों में नीली से कुछ चमकी ' वह भागा उसकी तरफ अचानक! ठिठक गया, देखा जाना पहचाना चेहरा कुछ ढूंढ रहा है ' पास जाकर बोला, मालती ! तुम यहां क्या कर रही हो ? मालती अपने कानों को छूकर बोली 'अपनी बूंदे ढूंढ रही हूं 'कल यहीं खो गई थी ,स्नेहास अपने हाथ बढ़ाकर बोला ,'कहीं ये तो नहीं" मालती बोली ""ओह! तो यह तुम्हारे पास है स्नेहास मालती को बूंदे कान में पहनाते हुए बोला """मेरी चीज है मालती ,मेरे ही पास आएगी """ देखो ये तुम्हें भी मेरे पास ले आई "
"""मेरी नील परी