Chandauli News:पुत्रों की लंबी आयु के लिए माताओं ने रखा निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत, आस्था और संकल्प से सजा पर्व

सरोवरों के तटों और मंदिरों में महिलाओं की उमड़ी भीड़, कथा श्रवण कर लिया आशीर्वाद

जिउतिया के रूप में भी प्रसिद्ध यह व्रत संतान के आरोग्य व कल्याण के लिए माना जाता है महत्वपूर्ण

संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय

चकिया। पुत्र की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रविवार को क्षेत्र की माताओं ने श्रद्धा और आस्था के साथ जीवित्पुत्रिका व्रत रखा। परंपरा के अनुसार महिलाओं ने सूर्योदय से पहले स्नान कर निर्जला व्रत आरंभ किया और पूरे दिन बिना अन्न-जल के संतान के मंगल की प्रार्थना की।

संध्या समय स्नान-ध्यान के उपरांत माताओं ने स्वच्छ एवं नए वस्त्र धारण किए। इसके बाद मंदिरों और अपने घरों में विधिवत पूजा-अर्चना की गई। पुरोहितों द्वारा जीवित्पुत्रिका कथा का श्रवण कर महिलाओं ने व्रत के महत्व को जाना। कथा समाप्ति पर महिलाओं ने अपने से बड़े लोगों का चरण स्पर्श कर स्वयं व बच्चों के दीर्घ जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया।पूजा-पाठ के लिए सरोवरों के किनारे और मंदिरों में महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ी। वातावरण भक्ति और मंगलकामना के स्वर से गुंजायमान रहा। चकिया नगर के विभिन्न तालाबों और मंदिरों पर भी माताओं ने संतान के आरोग्य और दीर्घायु के लिए पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर तालाबों और घाटों पर मेले जैसा दृश्य रहा, जहां महिलाएं पारंपरिक परिधान में सजी धजी पहुंचीं।

चकिया नगर के मां काली मंदिर पोखरा सहित कई स्थानों पर महिलाओं ने समूह में पूजन किया। श्रद्धालु गाजे-बाजे के साथ घरों से पूजा स्थलों तक पहुंचे। महिलाओं ने तालाब के तटों पर दीप जलाए, फल-फूल अर्पित किए और विशेष मंत्रोच्चार के बीच अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की प्रार्थना की।जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया या जिमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाना जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और उनकी सेहत, आयु तथा उन्नति बनी रहती है। यही कारण है कि यह पर्व माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है।रविवार की सुबह महिलाएं स्नान-पूजन के उपरांत व्रत का पारण करेंगी। व्रत तोड़ने से पहले विशेष अनुष्ठान और अर्घ्य अर्पित किया जाएगा। महिलाओं ने बताया कि संतान के मंगल के लिए निर्जला रहना कठिन अवश्य है, परंतु मातृत्व की शक्ति और बच्चों के प्रति प्रेम से यह तपस्या सहज लगती है।

पर्व को लेकर नगर में कई दिन पूर्व से तैयारियां शुरू हो गई थीं। बाजारों में पूजन सामग्री, फल-फूल, वस्त्र और सजावटी सामान की खरीदारी होती रही।रविवार को पूरे दिन मंदिरों, तालाबों और घाटों पर आस्था का रंग बिखरा रहा।निर्जला व्रत रखकर माताओं ने संतान के जीवन में सुख, समृद्धि और लंबी आयु की मंगलकामना की। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि मातृत्व के त्याग और संकल्प का प्रतीक भी माना जाता है।