जटहा बाजार थाना परिसर में धूमधाम से मनाया गया कृष्ण जन्माष्टमी

कुशीनगर। जनपद का पुलिस महकमा इस वर्ष जन्माष्टमी पर इतिहास रच रहा है। करीब 31 साल बाद जिले के सभी थानों में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज दिन शनिवार 16 अगस्त को यह पर्व पूरे उल्लास और भक्ति के साथ मनाया गया। थाना प्रांगण झांकियों, भजनों और सजावट से गुलजार हैं। पुलिस कर्मियों में उल्लास और धार्मिक आस्था का माहौल है, लेकिन इसी खुशी के बीच सबकी आंखें 1994 की उस काली रात को भी याद कर भावुक हो रही हैं, जब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात डकैतों से मुठभेड़ में छह पुलिसकर्मियों और एक नाविक ने अपने प्राणों की आहुति दी थी । 30 अगस्त 1994 की रात को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा था। उसी दौरान जिले के पचरुखिया घाट के पास जंगल में डकैतों के होने की सूचना पर पुलिस की टीमें रवाना की गईं। तरयासुजान थाने के एसओ अनिल पांडेय और कुबेरस्थान थाने के एसओ राजेंद्र यादव पुलिस बल के साथ वहां पहुंचे। नाव के सहारे गंडक नदी का बांसी घाट पार करने के दौरान पुलिस टीम पर डकैतों ने घात लगाकर हमला कर दिया। इस मुठभेड़ में एसओ अनिल पांडेय, एसओ राजेंद्र यादव, आरक्षी नागेंद्र पांडेय, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्त और नाविक भुखल वीरगति को प्राप्त हुए। इस दर्दनाक घटना के बाद पुलिस विभाग ने यह परंपरा बना दी कि जिले में किसी थाने पर जन्माष्टमी का आयोजन नहीं किया जाएगा। यह निर्णय शहीद साथियों की स्मृति को जीवित रखने के लिए लिया गया था। लंबे इंतजार के बाद इस बार कुशीनगर पुलिस ने परंपरा में बदलाव करते हुए जिलेभर में जन्माष्टमी का पर्व मनाने का निर्णय लिया। सभी थानों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है। जगह-जगह झांकियां और भजन-कीर्तन के कार्यक्रम हो रहे हैं। पुलिस कर्मी उल्लास और आस्था से लबरेज़ हैं, लेकिन हर आयोजन में शहीद पुलिसकर्मियों की स्मृति भी गूंज रही है। जिले के पुलिस अधिकारियों ने इस अवसर पर शहीदों को नमन किया। जटहा बाजार थाना अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि 31 साल बाद जन्माष्टमी का आयोजन हो रहा है। यह पर्व हमें शहादत की याद दिलाता है। शहीद पुलिसकर्मी हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। वहीं। जिले के सभी थानों में इस बार जन्माष्टमी का रंग देखने लायक है। थाने आकर्षक सजावट से चमक उठे हैं। पूजा-अर्चना, झांकियों और भजन संध्या का आयोजन किया जा रहा है। पुलिस बल के जवानों के चेहरों पर उत्साह तो है, लेकिन जब भी 1994 की घटना का जक्रि होता है, भावुकता स्वतः उमड़ पड़ती है। कुशीनगर पुलिस की इस अनूठी परंपरा ने पूरे प्रदेश में संदेश दिया है कि शहीदों को भुलाया नहीं जा सकता। 31 साल बाद लौटे इस उल्लास में शहादत की यादें भी गहराई से जुड़ी हैं। यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह वीरता और बलिदान की विरासत को सहेजने का भी प्रयास है। कुशीनगर पुलिस ने यह साबित कर दिया है कि पर्व तभी पूर्ण होता है, जब उसमें शहीदों की स्मृति और कर्तव्य के प्रति संकल्प भी शामिल