नाम का विज्ञान और धर्म

जिस शब्द,संकेत या उपाधि से किसी जीवित,मृत,निर्जीव,साकार या निराकार वस्तु,व्यक्ति,पदार्थ आदि का बोध हो उसे नाम कहते हैं।नाम को अंग्रेजी भाषा में नेम शब्द से उच्चरित किया जाता है।देखने,सुनने और पढ़ने में सामान्य सा दिखने वाला किसी,व्यक्ति,वस्तु,स्थान या देव का नाम भले ही साधारण सा प्रतीत होता हो किंतु उसके पीछे का विज्ञान और आध्यात्मिकता बहुत ही वस्तुनिष्ठ और रोचक होती है।इसीलिए नाम महिमा का वर्णन विश्व के सभी धर्मों,पंथों और साहित्यों में मिलता है।जिससे पता चलता है कि नाम के पीछे भी गूढ़ विज्ञान तथा धर्म का आधार अवश्यमेव होता है। यही कारण है कि प्रत्येक नाम का अपना एक विशेष महत्व और सारगर्भिता होती है।
नाम शब्द की सबसे प्राचीन परिभाषा,इसके विज्ञान और नाम महिमा के धार्मिक महत्त्व का वर्णन विश्व साहित्य में सर्वप्रथम भारत में ही दृष्टिगोचर होता है।प्राचीन भारतीय वांग्मय में प्रत्येक पदार्थों,वस्तुओं,मनुष्यों और देवी -देवताओं तक के नाम गुण आधारित रखे जाते थे।जिनकी पुष्टि आज सभी भौतिक शास्त्री,खगोल शास्त्री और विज्ञानी करते हैं।
भारतीय मनीषियों ने गुण आधारित नामकरण की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए किसी शिशु के जन्म के पश्चात उसके नामकरण को संस्कार मानते हुए विधिविधानपूर्वक किए जाने की विशद व्याख्या की है।इतना ही नहीं मनीषियों ने गतिशील विश्व को चलायमान मानते हुए जगत तथा सर्वदा परिवर्तनशील होने के कारण संसरति इति संसार: कहते हुए संसार संज्ञा शब्द से संबोधित किया है।शास्त्रों और पुराणों में पृथ्वी को गोलाकार मानते हुए भगवान वराह अवतार में पृथ्वी के जिस स्वरूप की कल्पना भारतीय ऋषियों ने की थी ,वही आज ग्लोब का आकार दिखता है।पृथ्वी के गोलाकार स्वरूप के कारण ही इससे संबंधित विज्ञान को भूगोल तथा अनंत व्याप्त अंतरिक्ष को खगोल विज्ञान नाम दिया है।संस्कृत में ख का अर्थ आकाश से होता है।इसी तरह भूमिपुत्र ग्रह को भौम अर्थात मंगल तथा सबसे मंद गति से परिक्रमण करने वाले ग्रह को शनै: चरति य:शनिश्चर: कहते हुए शनि कहकर संबोधित किया है।मनीषियों ने गुरु शब्द को गु अर्थात अंधकार और रू अर्थात अंधकार का विनाशक कहते हुए तमसो मा ज्योतिर्गमय का प्रधान कारक माना है।जिसकी पुष्टि आज के खगोल,भूगोल,भूगर्भ सहित चिकित्सा तथा रसायन विज्ञान भी करते हैं।इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारतीय मनीषियों द्वारा प्रचलित प्राचीन नामकरण पद्धति पूर्णतया वैज्ञानिक है,जिसे धर्म का आधार देते हुए व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करते हुए जीवन का अंग बनाया गया है।
वस्तुत: नामकरण विश्व की सभी संस्कृतियों का एक प्रमुख अंग था है।इस्लाम जिसे अल्लाह कहकर खुदा मानता है,ईसाई उसे ईसा मसीह तो सनातनी लोग उसे परमेश्वर के विभिन्न नामों यथा राम,कृष्ण,महावीर,बुद्ध,हनुमान,दुर्गा आदि का जप करते हैं।इसी प्रकार संसार के सभी व्यक्तियों,वस्तुओं,पदार्थों का भी अभिज्ञान उनके नामों या संकेतों से ही होता है।परमात्मा का भी अभिज्ञान साधकों को उनके विभिन्न नामों से ही होता है।जिसका भाव,भक्ति से स्मरण जप कहलाता है। नाम संकीर्तन भी जप ही है।तभी तो जप की महत्ता का वर्णन करते हुए शास्त्रों में वर्णन है कि -

जकार:जन्म विच्छेद: पकार: पाप नाशक:।
तस्मात जप: प्रोक्तम जन्म पाप विनाशक:।।
नाम संकीर्तन की महिमा का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा है कि -

कलियुग केवल नाम अधारा।
सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा।।
इसी प्रकार शास्त्रों में भी नाम महिमा का उल्लेख मिलता है।यथा -

नाम संकीर्तनम यस्य सर्व पाप प्रणाशनम।
प्रणामों दुख शमनस्तम नमामि परमं हरिम।।
स्वयं गोस्वामी तुलसी जी ने रामभक्त हनुमान के नाम संकीर्तन का वर्णन करते हुए लिखा है कि -

सुमिरि पवनसुत पावन नामू।
अपने बस करि राखेहु रामू।।
इस प्रकार सार संक्षेप में यही कहना अधिक प्रासंगिक है कि भारतीय नामकरण पद्धति जोकि आज वैश्विक स्तर पर विभिन्न स्वरूपों में प्रचलित है,निःसंदेह वैज्ञानिक होने के साथ ही साथ प्रभु से तादात्म्य स्थापित करने का सर्वोत्तम साधन और मुक्ति का मार्ग है।

-डॉ.उदयराज मिश्र
चिंतक एवं विचारक
९४५३४३३९००