नाटक लोहा कुट्ट’ का प्रभावी मंचन राष्ट्रीय कला मंदिर श्रीगंगानगर में


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श्रीगंगानगर। ??हुण कौन है मेरा... ना मां ना प्यो ना भैण ना भरा। मै एक भट्टी तो दूजी भट्टी ते आ गई स्वाह फरोलन संलप, ऐथे हर चीज तेरे करड़े सुभाअ ने पीह सुटी। लोहा कुटदे कुटदे तू आप लोहा हो गया।??
संती (ममता पुरी) ने जब यह संवाद अपने पति बने काकू (गौरव बलाना) से कहा तो दर्शकों से खचाखच भरे प्रेक्षागृह में लोग सन्न रह गए और चारों तरफ सन्नाटा पसर गया। इस एक संवाद से निकला दर्द पूरे सभागार में मौजूद लोगों के दिलों में पसर गया।
यह दृश्य था राष्ट्रीय कला मंदिर एवं जोरा क्रिएशन्स की ओर से दिवंगत रंगकर्मी एवं साहित्यकार सरदार भूपेंद्रसिंह के जन्मदिन पर उन्हें समर्पित साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत बलवन्त गार्गी के पंजाबी नाटक ?लोहा कुट्ट? के मंचन का। इसका निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी विजय जोरा ने किया था। नाटक स्त्री विमर्श पर आधारित था। इस नाटक में दिखाया गया था कि स्त्री को न बोलने का अधिकार है और न अपनी पसंद के कपड़े इत्यादि पहनने का। इसके विपरीत पुरुष चाहे शराब पिए, विवाहेत्तर संबंध रखे या कुछ भी करे। नाटक में नायक काकू का यह संवाद भी प्रभावित करने वाला था, ??मैं ऐह लोहा कुट्टदा नीं, भकदां हां। ऐह आग्ग, मचै होय लोहे दा बुर, धूवां...तूं की सोचदी हैं, मैं बिना शराब दे ऐन्ना नूं हजम कर सकदा हां...??। काकू की बेटी बैंणो (ऐशदीपकौर) जब थोड़ा सा भी बन संवर कर रहती है या गांव में इधर-उधर जाती है तो उसका पिता उस पर गुस्सा हो जाता है और गाली-गलौज करता है। मारता पीटता है। बैंणो की मां संती उसे बचाती है। वह अपनी बेटी को समझाती भी है कि हमारे समाज में स्त्रियों को यह सब करने की छूट नहीं है। पर बैंणो नहीं मानती। इसी के चलते एक दिन काकू बैंणो का कत्ल कर देता है और संती उसे घर में ही दफनाने के लिए कह देती है। परंतु बाद में वह इस घटना से दुखी होकर और अपनी पसंद से खुला जीवन जीने के लिए काकू को छोड़कर चली जाती है। तब काकू को अहसास होता है कि स्त्री पर बंदिशंे लगाकर रखना अच्छी बात नहीं है। यहां संती का एक पूर्व प्रेमी गज्जणसिंह (विक्रम मोंगा) भी है और काकू जिस स्त्री के पास जाता है वह बणसो (ऋतुसिंह) भी है। बचनी (डॉ. दीपिका मोंगा), दीपा (अर्जुन बलाना) और हवलदार (भव्य गुप्ता) की भूमिकाएं भी प्रभावित करने वाली थीं। लगभग डेढ़ घंटे के इस नाटक को दर्शकों ने मंत्रमुग्ध होकर देखा।
इससे पहले कवयित्री मीनाक्षी आहुजा ने भूपेंद्रसिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला और उन्हें श्रीगंगानगर में रंगमंच को पुनर्जीवित करने में अग्रणी बताया। इस मौके पर स्वर्गीय भूपेंद्रसिंह की पत्नी श्रीमती सुखविंद्रकौर को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि टांटिया यूनिवर्सिटी में होम्योपैथी संकाय के प्रोफेसर डॉ. आर.के. विश्वास थे। अध्यक्षता राजस्थान पंजाबी भाषा अकादमी के सचिव डॉ. एन.पी. सिंह ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. रवनीतकौर, व्यापारी कुमुद गुप्ता और रंगकर्मी सन्नी थिंद व परमजीतसिंह सूफी थे। मंच संचालन रंगकर्मी ममता आहुजा ने किया।