लोक को रचे बगैर रचना सार्थक नहीं होती: डॉ. चारण

-सृजन कुंज के ?राजस्थानी कहानी अंक? का विमोचन

श्रीगंगानगर। प्रख्यात नाटककार, निर्देशक, साहित्यकार एवं साहित्य अकादेमी में राजस्थानी परामर्श मंडल के संयोजक डॉ. अर्जुनदेव चारण ने कहा है कि जब तक लेखक अपने लोक को, अपने परिवेश को नहीं रचेगा, तब तक उसकी रचना की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी।

वे रविवार को सृजन सेवा संस्थान की ओर से नोजगे पब्लिक स्कूल में आयोजित त्रैमासिक पत्रिका सृजन कुंज के ?राजस्थानी कहानी अंक? के विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजस्थानी कहानी जमीन से जुड़ी हुई है। आपकी रचना जितनी सच के करीब होगी, उतनी ही यर्थाथवादी होगी। रचनाकार जितना अपनी रचना को साध पाता है, वह रचना उतनी ही अच्छी होती जाती है।

मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ. मंगत बादल ने कहा कि अनुवाद कार्य बहुत मुश्किल और श्रमसाध्य है। इसके लिए पहले मूल रचना के परिवेश, उसकी संस्कृति को समझना पड़ता है, फिर उसे अपनी भाषा में लाने का प्रयास किया जाता है। इसलिए यह कार्य मौलिक सृजन से भी अधिक कठिन है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में रंगकर्मी एवं शिक्षाविद् डॉ. पीएस सूदन ने कहा कि कोई भी भाषा कभी खत्म नहीं होती। वह कहीं न कहीं अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती रहती है। भाषाएं आपस में बहने हैं और हमें उनमें सामंजस्य बनाकर साथ चलना चाहिए।

इससे पहले विमोचित अंक पर पत्रवाचन करते हुए युवा शायरा ऋतुसिंह ने कहा कि अंक में पंद्रह कहानियां हैं, जो राजस्थानी कहानी की तासिर को पाठकों तक पहुंचाती हैं। इन कहानियों को पढ़कर पता चलता है कि राजस्थानी कहानी कितनी आगे निकल चुकी है।

अतिथि संपादक डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने माना कि आधुनिक राजस्थानी कहानी ने अनेक पड़ाव पार करते हुए अब उस मुकाम को छू लिया है, जिसमें वह किसी भी भाषा के बराबर रखी जा सकती है। इस अंक के माध्यम से हमने हिंदी पाठकों तक राजस्थानी कहानी को पहुंचाने का प्रयास मात्र किया है।

संपादक कृष्णकुमार ?आशु? ने आभार व्यक्त करते हुए बताया कि अंक की चर्चा विमोचन से पहले ही लोगों में होने लगी है, यह इसकी सफलता की कहानी खुद कह रही है। संचालन डॉ. संदेश त्यागी ने किया।

कार्यक्रम में विजय कुमार गोयल, कृष्ण वृहस्पति, सुरेंद्र सुंदरम्, डॉ. नवज्योत भनोत, अरुण उर्मेश, द्वारका प्रसाद नागपाल, मनीराम सेतिया, अंजू नारंग, अंजू मल्होत्रा, राकेश मोंगा, विजय भाटिया, डॉ. रामप्रकाश शर्मा, राकेश मितवा, तुषार शर्मा, डॉ. गौरीशंकर निम्मिवाल, अनिल सांवरमल सहित अनेक साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी मौजूद थे।