हिन्दी पत्रकारिता ने देखा आपातकाल से लेकर स्वर्णिम कालः अजीत सिंह

हिन्दी पत्रकारिता ने दो शताब्दी पूरे करने की ओर, कई चुनौतियां अब भी बरकरारः संजय मौर्य
डिजिटल युग ने हिन्दी पत्रकारिता को दिया नया आयामः रोहित मिश्र
रायबरेली।हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर रायबरेली मीडिया क्लब की तरफ से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। शहर के सारस होटल चौराहा स्थित गणेश नगर में संत कबीर कांप्लेक्स आयोजित गोष्ठी में पत्रकारिता क्षेत्र में मिल रही चुनौतियों के विषय पर चर्चा की गई। सभी कलम-दवाद से शुरू हुई पत्रकारिता ने डिजिटल युग में प्रवेश कर लिया है, लेकिन चुनौतियां कम नहीं हुई है।ज्ञान की देवी सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद शुरू हुई संगोष्ठी में मीडिया क्लब के जिलाध्यक्ष अजीत सिंह ने कहा कि भारतीय प्रेस ने और हिन्दी पत्रकारिता ने आपातकाल और अघोषित आपातकाल भी देखे है। तमाम बाधाओं, प्रतिबंध और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी भारतीय पत्रकारिता ने अपनी विकास यात्रा तय किया है। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में पत्रकारिता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।महामंत्री संजय मौर्य ने कहा कि आजादी के बाद के पत्रकारिता के विकास में बड़े-बड़े शहरों के अलावा छोटे-छोटे नगरों में भी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का सिलसिला जारी है। वर्तमान में हिन्दी में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है, कभी सीमित संसाधनों में चलने वाली पत्र-पत्रिकाए आज अच्छी आर्थिक स्थिति में हैं, परंतु लघु एवं माध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओं की स्थिति अभी भी चिंताजनक है ।वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरिशानंद मिश्र ने कहा कि 30 मई 2024 को भारतीय हिन्दी पत्रकारिता 198 वर्षों की हो गयी। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में अपना अलग महत्व रखने वाला समाचार पत्र ??उदन्त मार्तण्ड?? हिन्दी का प्रथम समाचार पत्र, 30 मई 1826 को कलकत्ता से साप्ताहिक समाचार पत्र के रूप में प्रकाशित हुआ, इसका प्रकाशन जुगल किशोर शुक्ल ने किया। इस समाचार पत्र के अंक हिन्दी की खड़ी बोली और ब्रज भाषा के मिश्रण में प्रकाशित होते थे। इसके प्रथम अंक की 500 प्रतियां प्रकाशित की गईं, यह समाचार पत्र प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित होता था।मीडिया क्लब के संयोजक विजय यादव ने कहा कि डिजिटल युग में न केवल हमारे संवाद के तरीकों को बदला है, बल्कि हिंदी पत्रकारिता के परिदृश्य को भी एक नया आयाम दिया है। यह परिवर्तन न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे समाज, संस्कृति और भाषा पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है।वरिष्ठ पत्रकार विवेक श्रीवास्तव और आरबी सिंह ने कहा कि 1820 के युग में बंग्ला, उर्दू तथा कई भारतीय भाषाओं में पत्र प्रकाशित हो चुके थे। 1819 प्रकाशित बंगाली दर्पण के कुछ हिस्से हिन्दी में भी प्रकाशित हुआ करते थे, लेकिन हिन्दी के प्रथम समाचार पत्र होने का गौरव ??उदन्त मार्तण्ड?? को प्राप्त है। 30 मई 1826 को प्रकाशित यह समाचार पत्र 4 दिसंबर 1827 को बंद हो गया। इसके बंद होने में ब्रिटिश शासन का असहयोग मुख्य कारण बताया जाता है। हिन्दी पत्रकारिता दिवस प्रत्येक वर्ष ??30 मई?? को मनाया जाता है।वरिष्ठ पत्रकार रोहित मिश्र और बीपी सिंह ने कहा कि डिजिटल युग में सूचनाओं को और अधिक जांचने और परखने की जरूरत है। समाज में कोई ऐसी सूचना नहीं जानी चाहिए जिससे समाज में भ्रम की स्थिति पैदा हो। पर्यावरण, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक शैक्षिक मुद्दों पर सकारात्मक रिपोर्टिंग और समाज को सही जानकारी देना यही पत्रकारिता का धर्म है। इस मौके पर रामजी श्रीवास्तव, केशव शुक्ला, अजय टैगोर, शषि कपूर आदि पत्रकार मौजूद रहे।