निगम के नहीं पयासी के हैं ! संभागीय प्रबंधक

मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम के संभागीय प्रबंधक उमरिया परियोजना मण्डल अमित पाटोदी, जिन कर्मचारयों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, उन पर कार्यवाही करने या जांच संस्थित करने के बजाय अन्य कर्मचारियों पर अपनी खीज उतारते नजर आ रहे हैं |

उमरिया | विगत दिनों समाचार पत्रों में वन विकास निगम उमरिया के प्रभारी परियोजना परिक्षेत्र अधिकारी राजेश्वर पयासी द्वारा किए गए भरष्टाचार से संबंधित खबरें सिलसिलेवार प्रकाशित हुई थी | अपने चहेते रेंजर राजेश्वर पयासी के विरुद्ध प्रकाशित खबरों से तिलमिलाए अमित पाटोदी ने "खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे" की तर्ज पर बिना ठोस तथ्यों को आधार बनाए अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम लिमिटेड कर्मचारी सेवा नियमावली 1984 की कंडिका 34 का हवाला देता हुए नोटिस जारी कर विभाग की गोपनीय सूचनाएँ पत्रकारों से साझा कर निगम की छवि धूमिल करने का आरोप लगाया | इतना ही नहीं संभागीय प्रबंधक ने इस संबंध में गोपनीय प्रतिवेदन वर्षांत 2024 में टीप अंकित करने की धमकी भी दे डाली | मालूम पड़ता है कि अमित पाटोदी को राजेश्वर पयासी द्वारा किए गये भ्रष्टाचार से कोइ गुरेज नहीं है | अपितु भ्रष्टाचार की जानकारी सार्वजनिक हो जाने से पाटोदी को कष्ट महसूस हो रहा है |

पयासी मोह में संविधान से परे प्रबंधक ने जारी किया नोटिस -

जिस कंडिका 34 का हवाला देकर पाटोदी ने नोटिस जारी की है, वह कर्मचारियों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर कोइ प्रतिबन्ध नहीं लगाती | सिविल सेवा आचरण नियम 1965 भी कर्मचारियों के पत्रकारों से संबंध रखने को प्रतिबंधित नहीं करता है | पयासी मोह में साहब यह भी भूल गए कि संविधान के अनुच्छेद 19, 20, 21 और 22 के तहत देश के नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है | संविधान का अनुच्छेद 21 नागरिकों को जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है | अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा राज्य द्वारा उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा | भारतवर्ष में अमित पाटोदी ही शायद भारतीय वन सेवा के एकमात्र अधिकारी हैं, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 से इतर उनके अधीनस्थ कर्मचारी किससे संबंध रखेंगे और किससे नहीं, इस बात का निर्देश देने का अधिकार प्राप्त है ?

नियम कायदों की दुहाई में खुद ही फंस गए पाटोदी -

यद्यपि शासकीय जानकारियां गोपनीय रखने की दृष्टि से औपनिवेशिक कालीन शासकीय गोपनीयता अधिनियिम 1923 अभी भी अस्तित्व में है | सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के परिपेक्ष्य में सरकारी गोपनीयता क़ानून 1923 की समीक्षा करने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था, इस समिति ने 16 जून 2017 को कैबिनेट सचिवालय को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की थी, कि सरकारी गोपनीयता कानून को अधिक पारदर्शी और आरटीआई अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए | आरटीआई अधिनियम के तहत भी उन सूचनाओं के प्रकट्न का निषेध किया गया है, जिनके प्रकटन से भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा रणनीति, वैज्ञानिक और आर्थिक हित विदेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसके प्रकाशन को न्यायालय द्वारा निषिद्ध किया गया हो अथवा जिसके प्रकटन से संसद या किसी राज्य के विधान मण्डल के विशेषाधिकार का भंग कारित होता हो | स्पष्ट है सरकार उपर्युक्त विषयों से संबंधित सूचनाओं के अतिरिक्त अन्य सूचनाओं को गोपनीय नहीं मानती है | यदि यह मान लिया जाए कि वन विकास निगम के कर्मचारियों ने पत्रकारों को विभाग की सूचना उपलब्ध कराई है, तब प्रश्न यह उठता है कि वन विकास निगम उमरिया परियोजना मण्डल के कार्यालय में राष्ट्रीयहित या सुरक्षा से जुडी ऐसी कौन सी जानकारियां संग्रहित हैं, जिनके पत्रकारों तक पहुँच जाने से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है और निगम की छवि धूमिल हो गई है |

ए.सी. केबिन में बैठे प्रबंधक को नहीं दिख रहा पयासी का कारनामा -

पयासी मोह में डूबे अमित पाटोदी पयासी के विरुद्ध छपने वाली ख़बरों से निगम की छवि धूमिल होती नजर आती है, लेकिन पयासी के परिक्षेत्रान्तार्गत होने वाले अवैध कटाई, अवैध उत्खनन और अवैध निर्माण कार्य नजर नहीं आते हैं | राजेश्वर पयासी के परिक्षेत्रान्तार्गत बीट धनगी के कक्ष क्रं. आर एफ 82/833 में हजारों सागौन के वृक्षों के अवैध कटाई की गई है | जिसकी शिकायत प्रबंधक संचालक से भी की गई है | बीट निरिक्षण के दौरान पाटोदी को यह अवैध कटाई नजर नहीं आई | जाहिर है परिक्षेत्रों में होंने वाले काले-पीले कारनामों को अमित पाटोदी का संरक्षण प्राप्त है या फिर वे जमीनी हकीकत से दूर ए.सी. केबिन में बैठकर परियोजना मण्डल का संचालन कर रहे हैं |

चहेते कर्मचारी के पक्ष में उतरे संभागीय प्रबंधक -

संस्था प्रमुख की हैसियत से कर्मचारियों से समानता का व्यवहार करने की जगह पाटोदी का दोहरा नजरिया सामने आता है | एक ओर गोपनीयता भंग करने के नाम पर पाटोदी कर्मचारियों को नोटिस बांटते नजर आते हैं, वहीं दूसरी ओर पाटोदी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले कर्मचारी की पत्नी तथा पुत्र निगम कार्यालय में आए दिन सूचना का अधिकार का आवेदन लगाते हैं | इस मामले में कार्यालयीन गोपनीयता भंग होती नजर नहीं आती है और न ही पाटोदी ने कर्मचारी से यह पूंछने की जहमत उठाई कि उसकी पत्नी और पुत्र को कार्यालयीन जानकारी कहाँ से मिलती है | पाटोदी के सारे नियम कानून उनके चहेतों के विरोधियों के लिए ही है | चहेतों के विरुद्ध संस्थित विभागीय जांच कभी अंजाम तक नहीं पहुंचती है, जबकि चहेतों के विरोधियों के विरुद्ध प्रकरणों का तुरंत निपटारा किया जाता है |

दफ्तर के सीसीटीव्ही कैमरे बंद -

सूत्र बताते हैं कि पाटोदी कार्यालयीन गोपनीयता के प्रति इतने सजग हैं, कि उन्होंने कार्यालय के सीसीटीव्ही कैमरे बंद करवा दिए हैं | अनिल चोपड़ा के कार्यकाल में उत्पन्न भ्रष्टाचार के भस्मासुर राजेश्वर पयासी को अमित पाटोदी का खुला संरक्षण प्राप्त है, और इसी भस्मासुर को कवर फायर देने के लिए नोटिस-नोटिस का खेल खेला जा रहा है | लेकिन भस्मासुर अपने संरक्षक के लिए भी घातक साबित होता है, यह ध्यान रखने योग्य बात है |