पोषण फीडिंग कार्यक्रम की महत्ता एवं परिप्रेक्ष्य: हॉट कुक्ड फूड योजना

डॉ0 पूजा सिंह

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा आंगनवाड़ी केन्द्रों पर 3 से 6 वर्ष के बच्चों को गर्म पका-पकाया खाना यानी कि हॉट कुक्ड फूड योजना को नवरात्रि से संचालित करने का निर्णय लिया गया है। कैबिनेट से प्रस्ताव भी पास हो चुका है। पर प्रश्न यह है कि जो योजनाएँ सीधे छोटे बच्चों के पोषण स्तर में सुधार से जुड़ी हुई हैं उनको लागू करने में देर क्यों होती है जबकि कुपोषण की भयावहता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य असेंबली द्वारा वर्ष 2025 तक संपूर्ण विश्व को कुपोषण मुक्त बनाने का संकल्प लिया गया है। यूएनडीपी ने सतत धरणीय लक्ष्य (एसडीजी) में कुपोषण व इसके सभी प्रकारों को वर्ष 2030 तक समाप्त करने का लक्ष्य बनाया है. यूएनडीपी का कहना है कि वर्ष भर सभी बच्चों को पोषक तत्वों युक्त भोजन मिलना चाहिए।

पोषण फीडिंग संबंधी योजनाओं के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि स्वतंत्रता के पश्चात, 1959 में मुदालियर कमेटी ने बताया कि शिशु एवं बाल मृत्यु दर का प्रमुख कारण कुपोषण है। इस समस्या को देखते हुए यूनिसेफ द्वारा स्किम्ड मिल्क पाउडर के कंजर्वेशन प्लांट लगवाए गए और बच्चों में स्किम्ड मिल्क का वितरण किया गया। कमेटी ने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्य सरकार में न्यूट्रिशन ऑफिसर होने चाहिए जो डाइट सर्वे करें, डेफिशियेंसी डिजीज को देखें, वल्नरेबल (संवेदनशील) ग्रुप के पोषण पर विशेष ध्यान दें। वर्ष 1973 में करतार सिंह कमेटी बनी, इसमें स्वास्थ्य वर्कर का बहुत ही स्पष्ट रोल बताया गया कि वे शालापूर्व शिक्षा के बच्चों में कुपोषण को चिन्हित करेंगे और उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में संदर्भित करेंगे ताकि उनका उपचार किया जा सके। वर्ष 1975 में श्रीवास्तव कमेटी ने इंडिया के लिए एक हेल्थ फ्रेमवर्क बनाया। उनके अनुसार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले ज्यादातर लोगों में विशेष रुप से छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं, धात्री माताओं और दिव्यांग में भुखमरी और कुपोषण व्याप्त है। गर्भवती, धात्री, छोटे बच्चे और स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए सप्लीमेंट्री फीडिंग या अनुपूरक पोषक आहार संबंधी सरकारी योजनाएं चलाए जाने की बात कही गई। उपरोक्त परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए, भारत सरकार द्वारा एकीकृत बाल विकास सेवाएँ वर्ष 1975 में, कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से शुरू की गयी। आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से पोषण संबंधी कार्यक्रम भी शुरू किए गए। वर्ष 1983 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनी, इसमें भी स्वीकार किया गया कि देश में कुपोषण की दर बहुत ही उच्च है। इसको कम करने के लिए स्पेशल प्रोग्राम जोकि सप्लीमेंट्री फीडिंग प्रोग्राम विशेष संवेदनशील समूह के लिए चलाए जाने चाहिए। पोषण शिक्षा और पोषण शोध पर बढ़ावा देने की बात भी कही गई। आई सी ड़ी एस के अनुपूरक पोषाहार व मिड-डे-मील कार्यक्रम बच्चों में पूरक आहार हेतु चलाये गए।

पूर्व में आंगनवाड़ी केन्द्रों पर टेक होम राशन (घर ले जाने वाला पोषाहार) की व्यवस्था थी जिसको बच्चे, गर्भवती व धात्री महिलाएं घर ले जाकर उपयोग करते थे। परंतु बाद में स्कूल के मिड-डे-मील कार्यक्रम की भांति आंगनवाड़ी के बच्चों को गर्म खाना उपलब्ध करने के लिए वर्ष 2007 में आंगनवाड़ी केन्द्रों पर हॉट कुक्ड फूड योजना की शुरुआत हुई। योजना का प्रभाव ये हुआ कि आंगनवाड़ी केन्द्रों में 3 से 6 वर्ष के बच्चों की उपस्थिति में वृद्धि हुई। कुछ साल ये योजना चली परंतु उसके बाद इसकी स्थिति कभी चालू-कभी बंद वाली हो गयी।

वर्ष 2013 में भारत सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए लोगों को बेहतर गुणवत्ता का खाद्यान्न उपलब्ध कराना एवं खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना है. इसमें महिलाओं और बच्चों के लिए पोषण सहायता पर विशेष बल दिया गया व 14 वर्ष की आयु के समस्त बच्चों को निर्धारित पोषक मानक के अनुसार भोजन का अधिकार दिया गया है।

कुपोषण को दूर करने के उद्देश्य से, उत्तर प्रदेश में राज्य पोषण मिशन वर्ष 2014 में शुरू हुआ। हौसला पोषण योजना के रूप में कुपोषण स्तर में सुधार हेतु प्रदेश को एक नयी योजना मिली। इस योजना में गर्म पका-पकाया भोजन गर्भवती महिलाओं व 0 से 6 वर्ष के कुपोषित बच्चों को उपलब्ध कराया जाना था। 3 से 06 वर्ष के बच्चों को दैनिक सामान्यतः 1600 कैलोरी व 30 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। कुछ पोषण आवश्यकता टेक होम राशन पोषाहार से पूरी हो जाती है शेष की पूर्ति इस योजना के माध्यम से करने की कोशिश की गयी। कुछ समय बाद यह योजना भी ठंडे बस्ते में चली गयी। जनवरी 2019 में आंगनवाड़ी केन्द्रों पर 3 से 6 वर्ष के बच्चों की पोषणीय आवश्यकता को पूरा करने के लिए पुनः हॉट कुक्ड फूड योजना की शुरुआत की गयी. दो रूपों में व्यवस्था की गयी मॉर्निंग स्नेक्स व हॉट कुक्ड फूड. इसमे से मॉर्निंग स्नेक्स पहले से ही पोषाहार के रूप में दिया जा रहा था जिससे 200 केलोरी ऊर्जा व 7 ग्राम प्रोटीन की प्राप्ति होती है तथा हॉट कुक्ड फूड योजना से बच्चों को 300 केलोरी ऊर्जा व 7-8 ग्राम प्रोटीन दिया जाना है. इस प्रकार कुल 500 केलोरी ऊर्जा व 15 ग्राम प्रोटीन की प्राप्ति हर बच्चे में सुनिश्चित की जाएगी।

जुलाई 2021 की नई पोषाहार व्यवस्था के अनुसार वर्तमान में 6 माह से 3 वर्ष के बच्चों में 500 केलोरी ऊर्जा व 12-15 ग्राम प्रोटीन, 3 से 6 वर्ष के बच्चों में 200 केलोरी ऊर्जा व 6 ग्राम प्रोटीन, गर्भवती-धात्री महिलाओं में 600 केलोरी ऊर्जा व 18-25 ग्राम प्रोटीन, स्कूल न जाने वाली 11 से 14 वर्ष की किशोरी को 600 केलोरी ऊर्जा व 18-25 ग्राम प्रोटीन तथा अतिकुपोषित बच्चे 6 माह से 6 वर्ष को 800 केलोरी ऊर्जा व 20-25 ग्राम प्रोटीन की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा रही है. मुख्यमंत्री द्वारा शुरू की गयी हॉट कुक्ड योजना का यदि सफल संचालन होता है तो 3 से 6 वर्ष के बच्चों को प्रतिदिन 300 केलोरी ऊर्जा व 7-8 ग्राम प्रोटीन की और ज्यादा प्राप्ति अपनी पोषणीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए होगी जोकि उनके सम्पूर्ण विकास में सहायक भी होगी। इसकी वजह से देश को एक स्वस्थ व सुपोषित मानव सम्पदा मिलेगी जो नया भारत की संकल्पना साकार करने में अहम भूमिका निभाएगी. बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं और जब देश का भविष्य ही सुपोषित नहीं हो तो देश कैसे प्रगति कर सकता है?

*लेखिका बाल विकास परियोजना तालग्राम कन्नौज की परियोजनाधिकारी है*