कर्बला में सुपुर्दे खाक हुए ताज़िए 

कर्बला में सुपुर्दे खाक हुए ताज़िए

आलापुर अम्बेडकर नगर
थाना क्षेत्र आलापुर के अन्तर्गत चहोड़ा शाहपुर, मनेरी पुर सरावां,पिपरा, परसौना इत्यादि ग्राम सभाओं में सकुशल ताजिए को कर्बला में प्रशासन की देखरेख में सुपुर्देखाक किया गया। ग्राम सभा चहोड़ा शाहपुर के मौलाना अब्दुल्लाह वास्ती ने बयां किया कि कत्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद मोहर्रम के इस पवित्र महीने में शोहदा ए कर्बला की याद में सबकी आंखें नम हो जाती हैं। और चारों तरफ या हुसैन की सदाएं बुलंद होती हुई नजर आयीं । चहोड़ा शाहपुर के मौलाना अब्दुल्लाह वास्ती ने बताया कि मोहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है और यह महीना दुनिया भर के मुसलमानों को एक ऐसी जंग की याद दिलाता है। मौलाना वास्ती ने कर्बला के बारे में बताया कि जहां एक तरफ केवल 72 लोग थे, वहीं दूसरी तरफ हजारों की फौज थी। जंग का जो नतीजा होना था वही हुआ। हजरत इमाम हुसैन के सभी साथी एक एक करके जंग के मैदान में शहीद हो गये। अंत में हजरत इमाम हुसैन ने भी शहादत को गले लगा लिया। जहां तक जंग के नतीजे की बात की जाए तो कर्बला की जंग में यजीद की जीत हुई। हजरत इमाम हुसैन शहीद हो गये, मगर यह जंग पूरी दुनिया को एक सबक दे गई कि जालिम के सामने सिर झुकाने से बेहतर सिर को कटा देना है उसी कड़ी में और बयां किए कि यदि इमाम हुसैन को अपनी जान प्यारी होती तो वह यजीद बादशाह को अपना सरदार मान अपने और अपने साथियों की जान बचा सकते थे। कर्बला (इराक का एक शहर) के जंग की नौबत ही नहीं आती। लेकिन यजीद की बात मानना बातिल और झूठ के सामने अपने सिर को झुकना था।हजरत इमाम हुसैन ने पूरी दुनिया के लिये एक मिसाल पेश की। उन्हें अपना सिर कटना मंजूर था मगर सिर झुकना नहीं। यही वजह है कि आज पूरी दुनिया के मुसलमान हजरत इमाम हुसैन के उस जज्बे को सलाम करते हैं। मुहर्रम की एक से दस तारीख उसी जंग की यादगार है। मजहब इस्लाम ने हमेशा सब का पैगाम दिया है, सब से ही इन्सान को कामयाबी हासिल होती है।
मौके पर क्षेत्रीय पुलिस राष्ट्रप्रकाश यादव एस आई राजेन्द्र प्रसाद यादव मुस्तैद दिखे।