खाद्य सुरक्षा विभाग को मिलावट की नहीं है कोई चिंता, अपनी मर्जी से चलाते हैं अभियान

गोंडा।मिलावटी सामान बेचने वालों पर नकेल कसने की बात केवल कागज तक सिमट कर रह गई है। पूरे साल बिकते हैं मिलावटी खाद्य व पेय पदार्थ, लेकिन अधिकारियों की नींद केवल त्योहार के अवसर पर टूटती है।अभियान के दौरान खाद्य पदार्थों की जांच के लिए नमूना लिया जाता है, जिसकी रिपोर्ट 15 से 20 दिन के बाद आती है।इस बीच दुकानदार मिलावटी सामान बेचकर निकल भी जाते हैं।

कुल मिलाकर जांच के नाम पर केवल सरकारी आंकड़ा पूरा करने का काम चल रहा है।आम आदमी के स्वास्थ्य की चिंता किसी को नहीं है।हद तो यह कि इटियाथोक कस्बा से लेकर गांव के चौक-चौराहे तक में बिक रही फल व सब्जियों में भी केमिकल का उपयोग हो रहा है।विशेषज्ञों की मानें,तो मिलावट खोर खाद्य पदार्थों में ऐसे-ऐसे पदार्थ मिलाते हैं, जिससे मूल खाद्य पदार्थ तथा मिलावटी खाद्य पदार्थ में भेद करना काफी मुश्किल हो जाता है।

खाद्यान्न, दालें, गुड़, मसालों में कंकड़, पत्थर, मिट्टी, रेत, बुरादा आदि की मिलावट करते हैं।सरसों के तेल में आर्जिमोन तेल की मिलावट होती है।इससे आंखों की रोशनी जा सकती।इसी प्रकार चना, अरहर की दाल व बेसन में खेसरी दाल, बेसन व हल्दी में पीला रंग (मेटानिल), दालों में टेलकम पाउडर व एस्बेस्टस पाउडर तथा लाल मिर्च में रोडामाइन-बी की मिलावट की जाती है। पेय पदार्थ में निषिद्ध रंग व रंजक आदि मिलाए जाते हैं, जो यकृत संबंधित रोग, रक्त अल्पता व कैंसर का कारण बनते हैं। मिठाइयों पर लगाए जाने वाले वर्क की जगह एल्युमिनियम का उपयोग किया जाता है। चाय पत्ती व कॉफी में लौह चूर्ण व रंग की मिलावट होती है।

मिलावटी आहार का उपयोग करने से शरीर पर पड़ता है दुष्प्रभाव

खाद्य पदार्थों में की जाने वाली मिलावट इतने शातिर तरीके से की जाती है,कि उपभोक्ता के लिए मूल खाद्य पदार्थ तथा मिलावटी खाद्य पदार्थ में अंतर करना काफी मुश्किल हो जाता है।मिलावटी आहार का उपयोग करने से शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है और शारीरिक विकार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है।अनेक स्वार्थी उत्पादक एवं व्यापारी कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य सामाग्री में अनेक सस्ते अवयवों की मिलावट करते हैं,जो हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं।