चकिया- चकिया के इस किले में छिपे हैं कई राज आइए जाने

संवाददाता कार्तिकेय पांडेय

चकिया- विंध्य पहाड़ियों की गोद में बना चकिया का किला खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। इसका निर्माण मक्खन के रंग वाले चुनार के पत्थरों से किया गया है। बदहाली के चलते चंदौली में एक बड़ा इतिहास मिट रहा है।
बनारस स्टेट के राजा बलवंत सिंह ने साल 1864 में चकिया में शानदार किले का निर्माण कराया था। उस समय यह किला जंगलों से घिरा था। पास की पहाड़ी पर बैठकर राजा खुद जंगली जानवरों का आखेट करते थे। कई बार जंगली और आदमखोर जानवरों से अपनी प्रजा को बचाते भी थे। इस दौरान अपने नुमाइंदों से प्रजा का हाल भी जान लेते थे।

बारादरी में बैठने पर साक्षात होता है मां काली के विग्रह का दर्शन
चकिया का किला भले ही छोटा है, लेकिन पुरातात्विक नजरिये से समृद्ध है। पश्चिम की ओर अति सुंदर बारादरी बनी हुई है। इस बारादरी पर बैठने पर मां काली के विग्रह को सीधे देखा जा सकता है। किले की अनूठी बारादरी में सालों पुराने भित्तचित्रों के रंग अभी मिटे नहीं हैं। हां, देख-रेख के अभाव में धूमिल जरूर हुए हैं। राजा बलवंत सिंह ने कंपनी शैली में किले की दीवार और छतों पर वानस्पतिक रंगों से चित्र बनवाया था। उन चित्रों में हरियाली है, पक्षियों का कलरव है। चित्रों में आज भी गजब का रंग संयोजन झलकता है।

बारादरी के अलावा मुख्य भवन में बारहसिंहों, हिरणों और अन्य जंगली जानवरों के सींघ अभी भी सजे हैं। साफ-सफाई न होने के कारण उन्हें कीड़े चाट रहे हैं। किले के बीच में मुख्य भवन है। उसमें राजा के ठहरने और भोजन करने की उत्तम व्यवस्था हुआ करती थी। किले के मुख्य भवन के पश्चिमी, उत्तरी और पूर्वी भाग में बड़े-बड़े खंभे और बरामदे हैं।

कुएं की चिनाई से पहले पत्थरों के पीछे संजोई है औषधीय वनस्पतियां
चकिया के किले में पहले अनूठे कुएं थे। एक में रंगीन मछलियां पाली गई थीं। इस कुएं का वजूद अब मिट चुका है। दूसरा कुआं अभी मौजूद है। चकिया के वरिष्ठ पत्रकार शीतला राय बताते हैं कि इस कुएं की बड़ी खासियत है। इस कुएं की चिनाई करने से पहले पत्थरों के पीछे ऐसी वनस्पतियां संजोई गई थीं, जो हर तरह की बीमारियों को मिटाने की ताकत रखती हैं।

इस कुएं में पहले औषधीय पौधे पर लगाए गए थे। इसका पानी पेट की बीमारियों के लिए रामबाण माना जाता था। कुएं का जलस्तर करीब-करीब हमेशा एक जैसा ही बना रहता है। किले में रहने वाले कारिंदों के लिए कुएं में एक छोटी की मोटर लगाई गई है। औषधीय कुएं के पास ही पानी गरम और ठंडा करने के हमाम बना है। उसके बगल में रसोईघर है।
चकिया के ऐतिहासिक किले से सटा दिलकुशा में रानिवास था। महारानी वहीं आराम फरमाती थीं। रनिवास के सामने शानदार बावली है, जिसका वजूद तो है, लेकिन पूरी तरह बदहाल है। रनिवास में पहले खपरैल का छाजन था। जिसका वास्तु गजब का था। वन विभाग के अब उसे गेस्ट हाउस में बदल दिया गया है।

झाड़-झंखाड़ के कारण बना सांप-बिच्छूओं का बसेरा
चकिया के किले में जिस जगह राजा बलवंत सिंह का आरामगाह था, उसका अस्तित्व अब मिटता जा रहा है। चारो तरफ झाड़-झंखाड़ के चलते इस किले में सांप-बिच्छूओं का बसेरा है। विरासत मिटती जा रही है। किले पर फिलहाल रामनगर के कुंवर अनंत नारायण सिंह का कब्जा है। पुरातत्व विभाग ने अभी इसे अपने अधीन नहीं किया है। किले के गेट पर एक सिपाही और होमगार्ड का पहरा रहता है। ये सुरक्षाकर्मी लोगों को किले में आने-जाने से रोकते हैं।
चकिया के किले से सटा मां काली का विशाल और ऐतिहासिक मंदिर है। देवी काली को समर्पित मंदिर 16 वीं सदी में बनारस स्टेट के राजा ने बनवाया था। मंदिर परिसर में एक बड़ा तालाब भी शामिल है। मनौती पूरी होने पर पहले इस मंदिर में बकरों की बलि दी जाती थी।

किले के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में लड़कियों के लिए एक कालेज खोल दिया गया है। इसे महारानी जयंती कुंवरि कन्या इंटर कालेज के नाम से जाना जाता है। राजा के सलाहकारों के टिकने के लिए भी किले में शानदार भवन था जो अब स्कूल में समाहित हो गया है। किले के पूर्वी हिस्से में पहलवानों के लिए एक अखाड़ा था। अब अखाड़े वजूद भी मिट चुका है। किले के चारों कोनों पर गुंबदनुमा परकोटे बने हुए हैं। एक गुंबद खत्म हो गया है। तीन अभी मौजूद हैं।


चकिया का किला बनारस से करीब 45 किलो मीटर दूर है। ब्रितानी हुकूमत के समय चकिया कस्बा बनारस का हिस्सा था। जिस स्थान पर यह किला है उनके एक तरफ विंध्य पठार है तो दूसरी ओर गंगा के मैदानी इलाके हैं। चकिया का निकटतम रेलवे स्टेशन (मुगलसराय) है। यहां से काशी नरेश का किला करीब 29 किलोमीटर दूर है। निकटतम हवाई अड्डा है लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा। वाराणसी, सोनभद्र और चंदौली से चकिया बस सेवा से जुड़ी है।