मिश्रित तहसील में जिम्मेदारों की मनमानी का शिकार है सूचना का अधिकार अधिनियम , आवेदकों को नहीं दी जा रही है सूचनाएं।

सीतापुर/आम जनता की समस्याओं के निस्तारण की तो बात ही दूर सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी जाने वाली सूचनाएं भी मिश्रित तहसील में जिम्मेदारों द्वारा आवेदकों को नहीं दी जा रही हैं जिससे भारत सरकार का यह महत्वपूर्ण अधिनियम भी मिश्रित तहसील में दम तोड़ता नजर आ रहा है और प्रमाणिक सूचना चाहने वाले आवेदकों को होना पड़ रहा है निराश। ज्ञातव्य हो जनहित में भारत सरकार द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम वर्ष 2005 में इस आशय से लागू किया गया था कि विभिन्न विभागों और अधिकारियों कर्मचारियों से अनेकानेक मामले की प्रमाणिक सूचनाएं आम जनता द्वारा भी प्राप्त की जा सकती हैं अधिनियम का उद्देश्य तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के वास्ते जनकल्याणकारी है लेकिन मिश्रित तहसील में यह पूरी तरह से संबंधित लोगों की मनमानी के आगे पूरी हवा हवाई ही साबित हो रहा है आम जनमानस की तो बात ही दूर जब पत्रकारों द्वारा तक मांगी जाने वाली सूचनाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है निर्धारित समयावधि गुजर जाने के बाद भी न तो दी जा रही है वांछित सूचनाएं और न ही दिया जा रहा है कोई सटीक जवाब जिससे दृष्टिगोचर होता है कि भारत सरकार का यह महत्वपूर्ण भी अधिनियम मिश्रित तहसील में पूरी तरह से हवा हवाई ही बना हुआ है। बताते चलें की राजधानी लखनऊ से प्रकाशित एक समाचार पत्र और उसके वेब पोर्टल के जनपद संवाददाता पूर्णेन्द्र मिश्र ने मिश्रित विकास क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत नरसिघौली की सुरक्षित जमीनों जैसे जंगल झाड़ी, चक मार्ग, घूरा गड्ढा, पथवारा, खलिहान और बंजर भूमि पर अवैध कब्जा और उस पर हुए अवैध निर्माणों के साथ ही तालाबों के विषय में नियमानुसार वैधानिक शुल्क पोस्टल आर्डर संख्या 56एफ 022 883 मूल्य 10 रू अदा करके रजिस्टर्ड डाक से 25 फरवरी 2022 को प्रमाणिक सूचना तहसीलदार/ तहसीलदार कार्यालय मिश्रित से मांगी थी लेकिन 2 माह से अधिक समय का अरसा गुजर जाने के बाद भी अभी तक संबंधित जिम्मेदारों द्वारा न तो कोई सूचना उपलब्ध कराई गई है और न ही इस बाबत दी गई है कोई जानकारी जिससे स्पष्ट होता है कि मिश्रित तहसील में भारत सरकार का महत्वपूर्ण सूचना का अधिकार अधिनियम पूरी तरह से हवा हवाई ही बना हुआ है कहना गलत न होगा जब पत्रकारों द्वारा जनहित में मांगी जाने वाली सूचना का यह आलम है तो आम जनता के साथ क्या होता होगा स्वयं ही अंदाजा लगाया जा सकता है जिसकी तरफ जिला प्रशासन / प्रदेश शासन के साथ ही भारत सरकार को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि यह महत्वपूर्ण अधिनियम आम लोगों के लिए सकारात्मक बन सके।