राष्ट्रीय सचिव दिग्विजय चौबे ने सीएम योगी से की अपील, हिन्दुवादी नेता अरुण पाठक को जल्द से  किया जाए दोषमुक्त 

देवरिया। हिन्दू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी और हिन्दू महासभा के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष रणजीत बच्चन की मौत के बाद भी हिन्दू नेताओं की सुरक्षा दिन-प्रतिदिन छिनी जा रही है।आरएसएस के इशारे पर काम करने वाली भाजपा की योगी सरकार के राज में उत्तर प्रदेश में कई हिन्दू नेताओं की नृमम हत्या के बाद अब काशी क फायरब्रांड कट्टर हिंदूवादीे नेता अरुण पाठक भी निशाने पर है। यह अंदेशा विश्व हिन्दू सेना के राष्ट्रीय सचिव दिग्विजय चौबे ने जताया।पत्रकार वार्ता में उन्होंने बताया कि विश्व हिन्दू सेना के अध्यक्ष अरुण पाठक ने 1993 में ही माँ श्रृंगार गौरी का नित्य दर्शन-पूजन और बाबा विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण का मामला उठाया था। इसके लिए उन्होंने 1995 और 2017 में दो बार रक्ताभिषेक भी किया। कार सेवा समेत अनेक हिन्दू आंदोलनों की शुरूआत अरुण पाठक के नेतृत्व में ही की गई। बावजूद इसके सरकार उनको नजरअंदाज करती आ रही है। पुलिस प्रशासन भी सरकार के इशारे पर अरुण पाठक से व्यक्तिगत दुश्मनी निकाल रही है। नेपाली युवक के मुंडन मामले में जो नाट्य मंचन हुआ, उसमें उक्त आरोपित युवक ने कबूल किया कि उसने 15 सौ रुपये लेकर सिर मुंडन करवाया था, बावजूद इसके पुलिस ने सरकार और न्यायालय को बिना सूचित किए अरुण पाठक को फरार व अपराधी घोषित कर दिया। श्री पाठक की बूढ़ी मां, पत्नी, भाई सहित बच्चों को अपशब्द कहे गए, प्रताड़ित किया गया। इस मामले में पुलिस उनके भाई को भी कई बार हिरासत में लिया।श्री चौबे ने बताया कि प्रभु श्रीराम के जिस मंदिर निर्माण के नाम पर आज चंदा जुटाया जा रहा है इस अभियान की शुरूआत जब हुई तो वाराणसी से हिन्दुवादी नेता अरुण पाठक की उसमें अहम भूमिका थी। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने हमारे प्रभु श्री राम का अपमान किया फिर भी भाजपा और संघ मौन साधे रही। तब श्री पाठक ने ऐसा नाट्य मंचन किया जिसमे सरकार की कलई खुल गई। वाराणसी समेत यूपी में भी राम मंदिर के नाम पर बड़े-बड़े आयोजन हो रहे है। साधु-संत और नेतागण यह दिन इसलिए देख पा रहे हैं क्योंकि अशोक सिंघल और अरुण पाठक ने इसके लिए अपना खून और पसीना बहाया है।सरकार और प्रशासन की लचर व्यवस्था के कारण अरुण पाठक का परिवार आज संघर्ष का सामना कर रहा है। परिवार को भी भय है कि कहीं अरुण पाठक के साथ कमलेश तिवारी और रणजीत बच्चन जैसा व्यवहार न हो।