कोंच,बुन्देलखण्ड की खास पहचान हैं दिवारी नृत्य,कोंच में बुन्देलखण्ड के पारंपरिक दिवारी नृत्य का हुआ आयोजन

रिपोर्ट-विवेक द्विवेदी


जालौन के कोंच में दीपावली का बुंदेलखंडी संस्करण ?दिवारीकई मायनों में काफी खास है, खासतौर पर इसमें जो बुंदेलखंडी परंपरायें समायोजित की गई हैं वे दीपावली को अन्य क्षेत्रों से अलग कर इसे खास पहचान देती हैं। उन्हीं में से एक है दिवारी नृत्य, पर्व तब तक पूरा नहीं कहा जा सकता जब तक कि उसमें दिवारी नृत्य का बघार न लगा हो क्योंकि यही बुंदेलखंड की खास पहचान है, लेकिन बदलते वक्त के साथ इस लोकप्रिय लोक परंपरा पर भी ग्रहण लगता जा रहा है और अब यह विलुप्त होने के कगार पर है। अगर इस विधा को जीवित बनाये रखना है तो इस कला के माहिरों को आगे आकर इसका प्रशिक्षण नई पीढी को देना होगा
यह नृत्य प्राय: अहीर जाति के लोगों से परंपरागत रूप से जुड़ा है और समूचे बुंदेलखंड में इसका प्रचलन है। दिवारी नृत्य करने बाले नर्तक फुंदनादार रंग बिरंगे बंडी व जांघिया पहनते हैं व मुख्य नर्तक मोरपंख की मूठ हाथ में लिये रहता है जबकि बाकी पीठ की ओर जांघिया में खोंसे रहते हैं। उनके हाथों में डंडे होते हैं और कमर में घुंघरू धारण किये रहते हैं। दिवारी नृत्य की टेर बड़ी ही आकर्षक होती है और इसके गीत दो पंक्तियों के होते हैं, इसके प्रमुख वाद्य यंत्र ढोलक तथा नगडिय़ा होते हैं और गीतों के गाये जाने के बाद ही यह बजाये जाते हैं
आज आधुनिकता की अंधी दौड़ और चकाचौंध में यह समृद्घ लोक बिधा लगभग समाप्त सी हो रही है और सिर्फ कुछेक ग्रामीण इलाकों में बूढे पुराने लोग इस लोक कला को आगे ले जाने की कोशिश में जुटे हैं इस दीवाली नृत्य में प्रभु कुशवाहा,पप्पू कुशवाहा,बलु कुशवाहा,फिरोज कुशवाहा,काजू कुशवाहा,बल्ले सहित सैकड़ों दिवाली नृत्य कलाकार मौजूद रहे

रिपोर्ट-विवेक द्विवेदी कोंच