कायरता को अपनी नियति मानना त्यागें, और खुद अपनी सुरक्षा के प्रति सक्षम हो स्त्रियां- अल्पिका जायसवाल 

नारी तु जननी है,नारी तु अग्नि है

नारी तु ममता है, नारी तु क्षमता है

तुझसे है जीवन का संचार

तुझमें है सम्भावनाएं अपार

फिर क्यों है ये अत्याचार, अत्याचार, अत्याचार?

कायरता को अपनी नियति मानना त्यागें, और खुद अपनी सुरक्षा के प्रति सक्षम हो स्त्रियां- अल्पिका जायसवाल�

संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय�

चंदौली- स्त्री जननी है,अर्धांगिनी है,बहन है,शक्ति स्वरूपा है,लक्ष्मी है।सदियों से स्त्री का सम्मान होता आ रहा है।हजारों वर्षों से स्त्रियों ने अपने वर्चस्व का परचम लहराया है। फिर चाहे वो विरांगना लक्ष्मी बाई हों , रजिया सुल्ताना हों , पद्मावती हों , इंदिरा गाँधी हों , ज्योतिबा बाई फुले हों , �कल्पना चावला हों , या किरण बेदी हों, ऐसे अनेकों नाम हैं जिन्होंने हर क्षेत्र में अपनी जोरदार उपस्थिति को दर्शाया है।उक्त बातें चौरहट नियमताबाद प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका अल्पिका जायसवाल ने सिटी अपडेट न्यूज़ नेटवर्क चंदौली के ब्यूरो चीफ कार्तिकेय पाण्डेय से खास बातचीत के दौरान बताया है।


वहीं उन्होंने यह सवाल भी किया है कि क्या इतने आदर और सम्मान के बाद भी क्या महिलाएँ हमारे देश में सुरक्षित हैं?

उन्होंने कहा कि आज के समाज मे कभी दहेज के भेंट चढ़ रहीं हैं , �तो कभी बलात्कार का शिकार हो रहीं हैं। �लड़कियों को तो कोख में आते ही अपने जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ता है तो क्या लड़कियाँ सुरक्षित हैं ?�
आज हम इक्कीसवीं सदी में होने के बावजूद भी लड़कियों को कहने के लिए बराबरी दे रहें हैं पर सच्चाई तो ये है कि हमारा समाज आज भी पुरुष प्रधान ही है।पुरुषों को समस्या है कि कैसे एक औरत अपने घर को संभालते हुए �अपने कार्यस्थल को भी बखूबी संभाल रही है।
अगर महिलाओं को बराबरी दी जा रही �होती तो क्या आज भी हरियाणा में प्रति हजार पुरुषों पर सिर्फ आठ सौ तैतीस महिलाएँ होतीं? �हर 15 मिनट में एक लड़की बलात्कार का शिकार होती है ये मैं नही 2018 �के सरकारी आँकड़े कहते हैं।
� � � � � � ��
अधिकांश महिलाओं की बचपन से ही इस तरह की परवरिश की जाती है कि घरेलू सामंजस्य या रीति रिवाज़ के नाम पर जिंदगी भर बस सहन करते रहना है। इस जन्मघुट्टी के साथ पली बढ़ी स्त्री घरेलू हिंसा को भी अपनी नियति मान कर ख़ामोशी से सहन करती चली जाती है।
� � � � � � � �
�कुत्सित मानसिकता वाले लोगों के द्वारा स्त्री आज भी महज देह मानी जाती है, इंसान नही।क्योंकि ऐसा नही होता तो जितनी भी गालियाँ हैं वो सिर्फ माँ बहन की गालियाँ नही होतीं।

बलात्कार की घटनाओं में कुछ हद तक कमी लाई जा सकती है यदि हम महिला सशक्तिकरण के साथ- साथ पुरुष मानवीकरण के लक्ष्य को भी सामने रखें। वास्तव में अपनी सुरक्षा के लिए खुद स्त्रियों को सक्षम होना होगा। कायरता को अपनी नियति मानना स्वयं स्त्री को त्यागना होगा। साहस , वीरता , निडरता के साथ उसे लड़ना होगा। जो दबता है उसे लोग और दबाते हैं। जिस दिन से परिवार मे , समाज मे बेटे और बेटियों की परवरिश में अंतर करना बंद होगा उस दिन से सामाजिक स्तर पर सोच में बदलाव का बीज अंकुरित होने लगेगा।

� � घरेलू हिंसा से संरक्षण , भ्रूण लिंग की जाँच , दहेज के अत्याचार से सुरक्षा , कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न से सुरक्षा, अवैध देह व्यापार , स्त्री का अश्लील चित्रण करना , वीडियो पोर्नोग्राफी पर कठोर सजा का प्रावधान बनाना होगा और उसे कड़ाई से पालन करना और करवाना होगा। तभी सही मायने में एक महिला स्वतन्त्र हो कर �, निडर होकर इस समाज मे अपने उम्मीदों की उड़ान भरेगी।