बेसहारों का सहारा बने दिव्यांग हरीश,लोगों के लिए नजीर

कहते हैं,मन के हारे हार है और मन के जीते जीत! मन में अगर सच्ची लगन हो तो सारी मुश्किलें बौनी होती चली जाती हैं और व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरता चला जाता है! कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी हैं बक्शी का तालाब के अंतर्गत लालपुर गांव के दिव्यांग हरीश कुमार! ज़िंदगी की तमाम मुश्किलों को झेलते हुए हरीश कुमार ने अपनी ज़िंदगी ज़रूरतमन्दो और दिव्यांगो के नाम कर रखी है! वृक्षारोपण,नशा मुक्ति अभियान,योगा अभियान,शिक्षा के प्रति जागरूकता,दिव्यांगो के प्रमाण पत्र,पेन्शन बनवाने,दिव्यांगो की समस्याओं का समाधान सम्बन्धी कई सामाजिक कार्य हरीश कुमार की सूची में शामिल है! पाँच वर्ष की अवस्था में बुखार आने से हरीश कुमार पोलियो से ग्रसित हो गये थे! मगर ज़िंदगी से कभी हार नहीं मानी! हरीश कुमार का जीवन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा! घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण ये बेहतर विद्यालय में दाख़िला न ले सके! उन्होने स्नातक महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना संबंध लखनऊ विश्वविद्यालय से तथा चित्रकूट स्थित जगदगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय से नैदानिक मनोविज्ञान में परास्नातक की शिक्षा प्राप्त की! परिवार के अलावा इनके गुरु डॉ. संजय कुमार नायक(जगदगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय) का इनके जीवन में बहुत बड़ा योगदान रहा,!प्राप्त जानकारी के अनुसार,हरीश कुमार की 'ज्ञान का प्रतीक ' पुस्तक में 'वृक्षों का दर्द' नामक कविता भी प्रकाशित है तथा काव्य संसद वेबसाइट पर कई कविताएँ भी अपलोड हैं! हरीश कुमार को स्नातक में मनोवैज्ञानिक उपकरण बनाने पर विशिष्ट पुरूस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है! समाज सेवा के लिए इन्हें कई संस्थाओं की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है! हरीश कुमार राष्ट्रीय सेवा योजना में स्वंय सेवक भी रह चुके हैं और इस समय रिसर्च के लिए प्रयास कर रहें हैं!