विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर जागरूकता शिविर का आयोजन हायर सेकंडरी स्कूल पदमपुर में सपन्न

मुंगेली- मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ शीला शाहा एवं डीपीएम गिरिश कुर्रे एवं जिला नोडल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम डॉ संजय ओबेरॉय के मार्गदर्शन में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान संपन्न हुआ।विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान आयुष्मान आरोग्य मंदिर पदमपुर द्वारा ?हॉयर सेकेंडरी स्कूल पदमपुर में चलाकर 180 छात्र-छात्राओं को जागरूक करने का प्रेरक प्रयास किया गया। डां. मनीष बंजारा ने कहा कि आज के अनावश्यक व्यस्त जीवन शैली के चलते तनाव का उत्पन्न होना सामान्य बात है और ये तनाव ही लोगो को गलत दिशा में ले जा कर आत्महत्या के लिए प्रेरित करते है। उन्होंने जागरूकता अभियान के तहत लोगो को आत्महत्या की स्थिति कैसे निर्मित होती है और जीवन में अवसाद के कारण उससे बचने के उपाय आत्महत्या रोकथाम में समाज की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि अपना आत्मबल सम्बल बनाये रखे नशे से दूर रहे है और अनावश्यक सोच बंद कर अवसाद से मुक्ति पा सकते है और उन्होंने इसके लिए छात्र-छात्राओं को प्रेरित किया। प्राचार्य सुरेश कुमार वाद्यकार ने छात्र-छात्राओं अपने व्यवहार में लचीलापन रखने की आवश्यकता जताते हुए कहा कि किसी भी असफलता से टूटने व निराश होने की स्थिति नहीं होनी चाहिए। इतिहास में सैकड़ो उदाहरण मिल जायेगे। जिसमें कई बार असफल होने के बाद उन्हें बड़ी सफलता मिली है। लेकिन इसके लिए वे असफलता से प्रभावित नहीं हुए बल्कि असफलता को चुनौती के रूप में स्वीकार कर आगे बढ़े।बढ़ते आत्महत्या के मामले, वैश्विक स्तर पर गंभीर चिंता का विषय हैं। हर साल दुनियाभर में लाखों लोग अत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाते हैं। भारत में भी यह समस्या बड़ी चिंता बनकर उभर रही है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छात्र आत्महत्या की वार्षिक दर तेजी से बढ़ी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2024 के आंकड़ों के अनुसार कुल आत्महत्या करने वालो की संख्या में जहां सालाना 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी की दर 4 प्रतिशत से अधिक है। जो निश्चित ही चिंताकारक विषय है।आज के इस आधुनिक जीवनशैली के युग में जहां आदमी अनावश्यक काम में अपने को जोड़कर अनावश्यक ज्यादा व्यस्त हो गये है। इसको आज के वर्तमान समय जिसमें आप मोबाईल, इंटरनेट, लेपटाॅप, सोशल मीडिया में आवश्यकता से अधिक जुड़ कर उनकी दिनचर्चा लत का रूप ले रही है। जिसके चलते लोग सामान्य जीवन की आवश्यकता व दिनचर्चा से दूर हो रहे है। लत/नशा चाहे जिस रूप में हो हमेशा हानिकारक होता है और व जीवन को डिप्रेशन/अवसाद की ओर ढ़केल कर उन्हें सामान्य जीवन में अकेला कर आत्महत्या की ओर ले जाता है।आत्महत्या के विचार आना गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का संकेतक है। इससे यह भी पता चलता है कि व्यक्ति लंबे समय से तनाव-अवसाद में जी रहा है, जिसका अगर समय रहते निदान और उपचार हो जाए। तो स्थिति को खराब होने से रोका जा सकता है। वैश्विक स्तर पर बढ़ते आत्महत्या की रोकथाम के लिए आज योजनाएं बनने लगी है और उसके रोकथाम के लिए जिले से लेकर विश्व स्तर में प्रयास जारी है।इसी प्रयास के तहत हम लोगो को जागरूक करने का प्रयास कर रहे है। ताकि लोगो के मानसिक स्वास्थ्य व समस्याओं का समाधान हो सके और वे आत्महत्या के विषय मंे सोचना बंद कर आत्महत्या करने से बच सके।जीवनशैली में अवसाद के कारण -
1.अत्यधिक तकनीक और सोशल मीडिया उपयोग- मोबाइल,इंटरनेट,सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग समय व्यर्थ करने,तुलना की भावना, आत्म-सम्मान में कमी और अकेलापन बढ़ाने का कारण बनता है। 2.तीव्र और तनावपूर्ण जीवनशैली- समय की कमी, कार्य का दबाव, नौकरी की अनिश्चितता और प्रतिस्पर्धा के चलते व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक थका महसूस करता है। 3. सामाजिक संबंधों की कमजोरी- परिवार, मित्रों या समाज से कटाव और अकेलापन अवसाद का मुख्य कारण बन सकते हैं। आजकल पारंपरिक परिवार प्रणाली टूट रही है, जिससे सहारा कम मिलता है। 4. अस्वस्थ जीवनशैली- अनियमित भोजन, पर्याप्त नींद का अभाव, शारीरिक व्यायाम की कमी मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। 5. भावनात्मक समस्याएँ और मानसिक दबाव- आत्म-संदेह, निराशा, विफलताओं का सामना, अपमान या मानसिक दुर्व्यवहार से अवसाद हो सकता है। 6. आर्थिक तनाव- बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, कर्ज का बोझ, वित्तीय असुरक्षा मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर अवसाद का कारण बनती है। 7. पर्याप्त संबल का अभाव- मानसिक स्वास्थ्य को समझने वाले और सहारा देने वाले लोग उपलब्ध न होना व्यक्ति को अकेला और कमजोर बना देता है। 8. नशा और अनियमित आदतें- शराब, तंबाकू, ड्रग्स का सेवन मानसिक स्थिति को बिगाड़ता है और अवसाद को बढ़ावा देता है।अवसाद से बचने के उपाय
1.सकारात्मक सोच अपनाएं- नकारात्मक विचारों को बदलें और अपने आप को प्रेरित करने वाले सकारात्मक विचारों पर ध्यान दें। 2 योग और ध्यान करें- नियमित रूप से ध्यान (मेडिटेशन) और योगाभ्यास करने से मानसिक तनाव कम होता है और मन शांत रहता है। 3. नियमित व्यायाम करें- हर दिन हल्का व्यायाम या वॉक करने से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है और अवसाद की संभावना कम होती है। 4. खुलकर बातचीत करें- अपने परिवार, मित्र या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से अपनी भावनाएं साझा करें। अकेलापन अवसाद को बढ़ावा देता है। 5. पर्याप्त नींद लें- रोजाना 7-8 घंटे की पर्याप्त और अच्छी नींद अवसाद से बचने में मदद करती है। 6. संतुलित आहार लें- पौष्टिक भोजन से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। जंक फूड से बचें और हरी सब्जियां, फल, नट्स का सेवन करें। 7. रुचि बढ़ाने वाले कार्य करें- संगीत सुनना, किताबें पढ़ना, पेंटिंग, गार्डनिंग आदि जैसे शौक विकसित करें, जिससे मानसिक तनाव कम होता है। 8. अल्कोहल और नशीले पदार्थ से बचें- ये चीजें मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं और अवसाद को बढ़ा सकती हैं। 9. सकारात्मक दिनचर्या बनाएं- दिनभर का समय प्रबंधित करें ताकि आप व्यस्त रहें और बेकार समय से बचें। 10. समय पर चिकित्सक से परामर्श लें-यदि आप लगातार उदास महसूस कर रहे हैं तो विशेषज्ञ से मदद लेना बहुत जरूरी है। आत्मनिर्भर बनने से बेहतर समाधान डॉक्टर की सलाह लेना है।आत्महत्या रोकथाम में समाज की भूमिकाडॉ मनीष बंजारा ने बताया कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों, तनाव प्रबंधन और आत्महत्या रोकथाम के प्रति संवेदनशील बनाना है आत्महत्या रोकथाम में समाज के हर एक व्यक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अपने आसपास रहने वाले, दोस्तों, रिश्तेदारों, साथ काम करने वाले लोगों की स्थिति की हम सभी को समझ होती है। ऐसे लोगों में चाहे वह मूड हो या व्यवहार या यहां तक कि उनके द्वारा कही गई बातों में भी कुछ अलग सा बदलाव या निराशा महसूस कर रहे हैं तो उसपर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। इस तरह के संकेतों का समय रहते पहचान और इसपर गौर करना, व्यक्ति से बात करना एक संभावित आत्महत्या की रोकथाम में मददगार हो सकता है।एक-दूसरे की तुलना से बचें मनोचिकित्सक कहते हैं, हमारा ध्यान बच्चों की क्षमताओं को बढ़ावा देने पर होना चाहिए, ताकि यह उनके समग्र कल्याण में सहायक हो, न कि उन्हें एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रेरित करने पर। यह जरूरी है कि प्रत्येक संस्थान के भीतर एक व्यवस्थित, व्यापक और मजबूत करियर और कॉलेज परामर्श प्रणाली का निर्माण हो। मानसिक स्वास्थ्य सुधार जैसे विषयों को शिक्षण पाठ्यक्रम में भी जरूर शामिल किया जाना चाहिए।छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की दरछात्रों पर पड़ रहा पढ़ाई का अनावश्यक दबाव, हमउम्र साथियों के साथ तुलना जैसी स्थितियां मानसिक तनाव बढ़ा रही हैं। प्राथमिक स्तर पर छात्रों में आत्महत्या के रोकथाम के लिए माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।आत्महत्याओं को कैसे रोका जा सकता है?डॉ बंजारा कहते हैं, छात्रों के अलावा पारिवारिक कलह, आर्थिक तंगी भी आत्महत्या की एक वजह रही है। आत्महत्याओं को रोकने के लिए अपने आसपास के लोगों के व्यवहार पर गंभीरता से ध्यान दें। इनमें अगर किसी तरह का नकारात्मक बदलाव दिखता है तो सावधान हो जाएं। उस व्यक्ति से बात करें। कभी-कभी सबसे अच्छा यही होता है कि आप ऐसे लोगों के साथ बस मौजूद रहें। उस व्यक्ति के लिए यह जानना कि कोई उसकी परवाह करता है और उसके साथ है, यह भी मन को शक्ति देता है और आत्महत्या के विचारों की तीव्रता को कम कर सकता है। जल्द से जल्द ऐसे लोगों को किसी पेशेवर मनोचिकित्सक की मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करें।आपके थोड़े से प्रयास से किसी की जान बच सकती।यह कार्यक्रम मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ शीला शाहा एवं डीपीएम गिरिश कुर्रे एवं जिला नोडल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम डॉ संजय ओबेरॉय के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ।इस अवसर पर प्राचार्य सुरेश कुमार वाद्यकार,आर एस पटेल,किशोर, दिवाकर उपस्थित रहे।