लेखपाल के खेल निराले पहले पैमाईश कर सही करार अब नोटिस चस्पा,पीड़ित को न्याय मिले तो कहां

रायबरेली।ऊंचाहार तहसील के ग्राम बरसवां मजरे कन्दरावां में राजस्व विभाग की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में है।यहां एक गरीब किसान मनोज कुमार को पहले तो प्रशासन ने खुद सीमांकन कर जमीन का हक दिलाया और फिर उसी जमीन पर अवैध कब्जा बताकर धमकी भरा नोटिस चस्पा कर दिया गया।हैरानी की बात यह है कि यह सब उस समय हुआ जब उपजिलाधिकारी न्यायालय में धारा 24 के तहत सीमांकन का मुकदमा अभी विचाराधीन है।मनोज कुमार की भूमि गाटा संख्या 4028 तथा विपक्षी पक्ष की भूमि गाटा संख्या 4027 के मध्य मेड को लेकर विवाद था।जिलाधिकारी के आदेश पर राजस्व निरीक्षक और हल्का लेखपाल ने 28 जनवरी 2025 को मौके पर पहुंचकर विधिवत पैमाइश की और आधी-आधी मेड का बंटवारा करते हुए पिलर गाड़ दिया।उस समय सब कुछ वैधानिक प्रक्रिया के तहत हुआ और लेखपाल ने स्वयं यह सुनिश्चित किया कि मनोज की जमीन जहां तक है,वहां तक उसे अधिकार है।इसके बाद कुछ समय बीता और पूरा मामला जैसे ही शांत होता दिखा,उसी लेखपाल द्वारा एक बार फिर चौथी बार स्थलीय निरीक्षण किया गया और पिलर पर एक धमकी भरा नोटिस चस्पा कर दिया गया।इस नोटिस में लिखा गया कि मनोज ने सरकारी ज़मीन पर कब्जा किया है और यदि तीन दिन के भीतर पिलर नहीं हटाया गया तो पुलिस बल के सहयोग से उसे हटवा दिया जाएगा और एफआईआर दर्ज कर दी जाएगी।अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब न्यायालय में सीमांकन की प्रक्रिया चल रही है, तब राजस्व विभाग को किस आधार पर ऐसी धमकी देने का अधिकार मिल गया?क्या उपजिलाधिकारी के आदेश का कोई मतलब नहीं रह गया है?क्या राजस्व विभाग खुद को अदालत से ऊपर समझने लगा है?मनोज कुमार ने बताया कि विपक्षी पक्ष बार-बार उसकी जमीन से रास्ता निकालने की कोशिश कर रहा है।जब उसने अपने हिस्से की जमीन पर बांस गाड़े,तो विपक्षी ने उन्हें उखाड़ दिया और कहा कि पहले नपाई करवाओ,फिर पिलर लगाओ।मनोज ने तीन बार नपाई करवाई और हर बार उसी लेखपाल ने उसकी जमीन को सही ठहराते हुए पिलर गड़वाया मगर सवाल ये है कि अब वही लेखपाल कैसे अपनी पुरानी नपाई को ही झूठा साबित कर रहे हैं?क्या यह सिर्फ भ्रमित करने की साजिश है या किसी के इशारे पर सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया जा रहा है?मनोज ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब तक सीमांकन की प्रक्रिया न्यायालय में लंबित है,तब तक कोई भी कार्रवाई अवैध है।उन्होंने मांग की है कि पहले तय हो कि उनकी जमीन कहां तक है,फिर अगर कोई गलती हो तो वह खुद सुधार कर लेंगे,मगर इस तरह धमकी देकर डराया नहीं जा सकता।पीड़ित ने यह भी बताया कि लेखपाल की भूमिका शुरू से संदिग्ध रही है।पहले पिलर लगवाना और बाद में उसी पिलर को गैरकानूनी करार देना इस बात का प्रमाण है कि राजस्व विभाग या तो अक्षम है या फिर किसी दबाव और लालच में कार्य कर रहा है।फिलहाल ऊंचाहार प्रशासन इस पूरे मामले में मौन है। न तो किसी प्रकार की जांच के आदेश दिए गए हैं और न ही पीड़ित की कोई सुनवाई हो रही है।अगर इसी तरह से प्रशासन खुद ही अपने आदेशों को पलटेगा, तो आम आदमी न्याय के लिए कहां जाएगा?यह मामला केवल एक सीमांकन का नहीं,बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही,निष्पक्षता और न्यायिक प्रक्रिया की अवहेलना का है।अब देखना यह है कि क्या ऊंचाहार का प्रशासन इस मामले में आंख खोलता है या फिर एक गरीब किसान को न्याय के नाम पर और भी प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी।