इंटरनेट और स्मार्टफोन की चकाचौंध में खोता बचपन

बबई अमौली, फतेहपुर।बचपन एक ऐसा स्वर्णिम समय होता है जिसमें बच्चे चिंता-मुक्त होकर खेलते, कूदते और अपनी कल्पनाओं की उड़ान भरते हैं। परंतु आधुनिक तकनीक और इंटरनेट की चमक-दमक ने बच्चों के इस मासूम बचपन को निगलना शुरू कर दिया है।

आज का बच्चा गांव की चौपालों, दादी-बाबा की कहानियों, और मिट्टी से सने खेलों से दूर होकर मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट की दुनिया में खोता जा रहा है। एक समय था जब गांवों में सावन आते ही पेड़ों पर झूले पड़ते थे, बच्चे टोली बनाकर गली-मोहल्लों में गुल्ली-डंडा, कंचे, कबड्डी और बैट-बॉल खेलते थे। पर आज यह सब सिर्फ बीते कल की यादें बनकर रह गए हैं।

स्थानीय निवासी (बेअंत सिंह )बताते हैं "हमें आज भी वो दिन याद हैं जब सावन में झूले झूलते थे, दादी-बाबा की कहानियां सुनते थे, और लकड़ी की गाड़ियों से खेला करते थे। पर आज के बच्चों के लिए ये सब किसी किस्से से कम नहीं।"

तकनीक ने शहरों से निकलकर गांवों तक अपने पांव पसार दिए हैं। गांवों में भी अब स्मार्टफोन का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है, और बच्चे इसकी गिरफ्त में आते जा रहे हैं। मोबाइल और इंटरनेट ने बच्चों को घरों में कैद कर दिया है, जिससे न सिर्फ उनके शारीरिक विकास पर असर पड़ रहा है बल्कि मानसिक रूप से भी वे प्रभावित हो रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, अत्यधिक मोबाइल उपयोग के कारण बच्चों की आंखों की रोशनी कम हो रही है और छोटी उम्र में ही वे अनेक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।

यह समय है जब समाज, अभिभावकों और शिक्षकों को एक साथ मिलकर बच्चों को तकनीक के दुष्प्रभाव से बचाना होगा और उन्हें फिर से खुले मैदान, मिट्टी की खुशबू और अपनापन भरे बचपन की ओर लौटाना होगा।