ऋतु के संधिकाल से जुड़ी है शरद पूर्णिमा की रीत,मीत बने मनमीत*  

*रासबिहारी गोविंद बने चंद्रमा,तारे बनी गोपियां, पूरनमासी की निशा हुई निहाल*

नेह बरसाता अंबर भी हुआ शुभ्र धवल,बादल दुबके,रातभर बरसती रही चटक चांदनी

दिव्य,अलौकिक,अप्रतिम,अनुपम रासोत्सव का साक्षी बना शरद का चंदा

*ऋतु के संधिकाल से जुड़ी है शरद पूर्णिमा की रीत,मीत बने मनमीत*


कोई भी अपूर्ण नहीं। पूर्णमासी को सब पूर्ण। अपने-अपने किशन कन्हाई के संग।जैसे चकोर एकटक निहारता है न चांद को,वैसे ही गोपियां भी चकोर हो गई। मध्य मंडल में उनके चंद्रमाजी जो विराज रहे थे।
इस रासोत्सव की स्वामिनी थीं वृषभानुसुता राधिकाजी। नख-शिख श्रृंगार धर वे अपने प्रियतम के अंवा से लगी हुई थीं।'नृत्य करत श्री राधा प्यारी,नचवत आप बिहारी की छवि देखते ही बन रही थी।एक ही वेष,एक ही रूप, एक ही गुण हो गया गिरधर श्याम व राधिका गोरी का। मोहन की रथी इस रास मंडली में कमलनयन की छटा तो कमलीय मनोहर हो चली थी।सकल बज नारियां मनहरणी हो गई थीं।तरुणी तनया किशोरीजी कनकलता-सी लपट रही थीं।राग मालव,केदार,विहाग, नट, खट,कल्याण और ईमन के सप्त स्वर गुंजायमान हो चले। ताल पखावज की धाप पर एक तरफ वेणुनाद,दूजी और नूपुर ध्वनि। एक तरफ झर-झर चांदनी बह रही थी, दूजी और अंबर से अमृत बरस रहा था।समूची वसुधा बन्य होती रही और धन्य-धन्य होते रहे आप,हम सब।

कभी द्वापरयुग में हुई इस लीला को हर बरस की शरद पूर्णिमा फिर जीवंत कर देती है।बांसुरी का वो माधुर्य स्वर फिर से सुनाई देने लगता है,जिसने एक चांद रात को 'छहमासी' कर दिया था।बस,जरूरत है उस अनूठे पल को अपने अंतर में उतारने की। कितनों ने निहारा शरद निशा का चांद? कितनों ने की उससे बात? कितनों ने लगाई गुहार,मनुहार कि हे चंद्रमाजी।हमें भी उस लीला का साक्षात्कार करवाओ,जो सृष्टि में सदैव के लिए अंकित हो गई है।चंद्रमा तो अपनी चांदनी के साथ नभ पर रोज की तरह ही विराज रहा था,लेकिन शरद ऋतु के चंद्रमा की तो बात ही निराली है।खीर और उसमें टपकने वाले अमृत कणों से कहीं ऊपर है शरद पूर्णिमा की ये दिव्य निशा। उत्सवप्रिय भरत-भू पर तो हर दिन होली, हर रात दीवाली है। उस पर शरद पूर्णिमा की रात तो सबसे अनूठी है। ये पर्व ऋतुओं के संधिकाल से भी जुड़ा है। पावस ऋतु की विदाई और शरद ऋतु का आगगन ही तो हेमंत और शिशिर के आगम का अहसास कराता है। बस,अब नभ से शरद की किरणें ही बरसना हैं और धरा पर शीत ऋतु का अहसास। बस,आप-हम सबके जीवन में ऐसे ही शरद के चंदा-सी धवल चांदनी प्रकाशवान रहे। शीतल, मंद सुगंध से परिपुरत दिन मिले और शरद पूर्णिमा-सी रात। साथ ही रास बिहारी का और स्नेह दृष्टि हो कमनीय किशोरीजी की।