प्राचीनकाल से ही गढ़ बांसला मां दंतेश्वरी देवी स्थल को श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र*  गढ़ बांसला को 11 साल बाद भी पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिला

कांकेर/कांकेर जिले के भानु प्रतापपुर के पास ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध गढ़ बांसला के दंतेश्वरी देवी स्थल मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है। यहां नवरात्र के दोनों पक्षों में मेला लगता है। मां दंतेश्वरी के दर्शन के लिए जिले सहित दूसरे जिलों व प्रदेशों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन उन्हें यहां समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 2007-08 में गढ़ बांसला को पर्यटन स्थल का दर्जा देने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक इसे पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिल पाया है।चैतरई नवरात्र पर्व मनाने के लिए शासन द्वारा दी जा रही 1 लाख की अनुदान राशि भी कुछ सालों से नहीं दी जा रही है। इससे समिति द्वारा यह पर्व न मनाते हुए भी केवल पूजा-अर्चना की जा रही है। मंदिर स्थल तक पहुंचने प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत सड़क बनाई गई,गढ़ बांसला कांकेर रियासत के कोमल देव एवं कंडरा राजा के समय राजधानी हुआ करता था। इसमें क्षेत्र के 252 गांव 84 परगना के देवी-देवताओं का वास है। प्राचीनकाल से ही गढ़ बांसला मां दंतेश्वरी देवी स्थल को श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र माना जाता है। धार्मिक स्थल होने के बाद भी शासन-प्रशासन द्वारा कोई भी सहायता नहीं मिल पा रही है। मुख्यमंत्री ने 2007-08 में बांसला प्रवास के दौरान इसे पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी। इसके बाद 2008 में पर्यटन मंत्री एवं 2015 में भी इसे पर्यटन स्थल बनाने की बात कर भूल गए। इसे पर्यटन स्थल की मान्यता मिल गई होती तो आज यहां का नजारा अलग ही होता। चैतरई पर्व भी राशि के अभाव में पूजा पाठ तक सीमित होकर रह गई है। पहले शासन द्वारा 1 लाख की अनुदान राशि दी जाती थी। इसे भी कुछ साल से बंद कर दिया गया है।क्षेत्र देवी स्थल होने कारण प्रदेशभर में विख्यात है। यहां पर चैतरई नवरात्र एवं क्वार नवरात्र पर्व पर मेला लगता है। इसमें प्राचीन रियासत काल से 252 गांव के लोग व 84 परगना के देवी-देवता शामिल होते हैं। मंदिर स्थल तक पहुंचने के लिए 3 मार्ग है। सभी मार्ग बारिश में कट जाते हैं। मरम्मत के लिए संबंधित विभागों को भी ज्ञापन सौंपा जा चुका है, लेकिन बजट के अभाव के कारण कार्य नहीं हो पाया है