असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का असल हक कंही गैर जरूरतमंद लोग तो नहीं मार रहे हैं!

आखिरकार बगैर काम किये पंचों की हाजरी भरना मनरेगा योजना गारंटी अधिनियम एक्ट के तहत की जा रही लापरवाही क्यों नहीं माना जा सकता है?

बालोद : रोजगार निश्चित रूप से देश में इस समय सबसे जरूरी संसाधनो में से एक माना जाता है। देश के कई करोड़ असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मजदूरी के लिए काफी संघर्षों से होकर गुजरना पड़ता है क्योंकि एक मजदूर अपने मजदूरी के दम पर ही अपने परिवार को दो वक्त का रोटी मुहैया कराने पाने में सफल हो पाता है! भारत सरकार और राज्य सरकार को असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्या के बारे में भंलीभांति से जानकारी व पता है शायद इसीलिए देश में सरकार ने महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम एक्ट कानून पूरे देश भर में सन् 2005 से लागू कर रखा है। जानकारी के लिए बता दें कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने भारत की पहचान देश के गांव को बताया था और भारत सरकार के द्वारा ग्रामीण मजदूरों की उत्थान हेतू इस योजना के जरिए आर्थिक क्रांति लाने का प्रयास बखूबी तरीके से किया जा रहा है,लेकिन विडंबना बात को लेकर है कि इस महत्वपूर्ण योजना जिसमें सत्य अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का नाम जुड़ा हुआ है,इसमें भी कई जगहों पर खुलेआम लापरवाही की जा रही है।


आमतौर देखा जाता है कि ग्राम पंचायतों के अंदर पंचों या फिर दंबगो की हाजरी इस योजना के माध्यम से भरा जा रहा है,जबकि मनरेगा कानून अधिनियम एक्ट के तहत काम करने वाले पंचों या फिर दंबगो की हाजरी कतई नहीं भरा जाना चाहिए यदि वे इस योजना के जरिए सही मायने में काम कर रहा है तब निश्चित रूप से कोई सवाल नही बनता है, लेकिन पद और प्रतिष्ठा को आड़ बना कर कोई इस योजना का लाभ उठाने का प्रयास करता है तब उसके खिलाफ कड़ी कानूनी होना चाहिए 'ताकि देश के जरूरतमंद असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मनरेगा योजना का लाभ सही तरीके से उपलब्ध हो सके और सरकार की आर्थिक क्रांति लाने के प्रयास को एक नया दिशा मिल सकें।

अधिनियम एक्ट से जुड़े हुए अधिकारियों की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे इस योजना के जरिए गलत तरीके से लाभ उठाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें ताकि सरकारी मशीनरी और पैसों का ग़लत इस्तेमाल न हो सकें।