भाजपा के लिए नाक का सवाल बनी जौनपुर की सीट,त्रिकोणीय लड़ाई के आसार,फिर भी इस दल..

जौनपुर यूपी।

उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर की दोनों लोकसभा सीटों के लिए मतदान 25 मई को होने हैं,ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों ने प्रचार प्रसार में पूरा जोर लगा दिया है,जगह जगह नुक्कड़ सभाओं का दौर चल रहा है तो गांव के खडंजों पर करोड़ों की गाड़ियां धूल उड़ाती नजर आरही हैं,जौनपुर 73 लोकसभा पर यूं तो बसपा का कब्जा है और वर्तमान में श्याम सिंह यादव सांसद हैं लेकिन बसपा को यह जीत 2019 में सपा गठबंधन की वजह से मिल पाई थी,बसपा ने इस चुनाव में पहले तो धनंजय सिंह की पत्नी को टिकट दिया था लेकिन बेहद नाटकीय ढंग से आखिरी दिन टिकट वापस हो गया और श्याम सिंह यादव एक बार फिर हाथी के महावत बन गए,लेकिन टिकट के लिए भाजपा,सपा,और कांग्रेस की यात्रा कर वापस बसपा में आए श्याम सिंह से बसपा का कैडर खुश दिखाई नहीं दे रहा है,आरोप है कि उन्हें जिताने के लिए मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं के दुख सुख में श्री यादव हमेशा नदारद रहे और एक बार फिर बसपा सुप्रीमो के आदेश के सामने कैडर मजबूर दिखाई दे रहा है,और यही वजह है कि कैडर के अधिकतर कार्यकर्ता अभी तक प्रचार प्रसार से या तो दूरी बनाए हुए हैं या फिर दूसरे दलों के संपर्क में हैं।

वहीं 2019 की हार का बदला लेने के लिए भाजपा भी साम दाम दण्ड भेद सबका इस्तेमाल कर रही है,और कहीं न कहीं श्री कला धनंजय सिंह के चुनावी मैदान से बाहर होने के पीछे भाजपा को ही जिम्मेदार माना जा रहा है,भाजपा के महाराष्ट्र में कांग्रेस की राजनीति करने वाले पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपा शंकर सिंह को कमल खिलाने की जिम्मेदारी दी है,अपने गृह जनपद से सालों तक दूर रहने और भाजपा कैडर से बाहर के प्रत्याशी होने की वजह से भाजपा के कार्यकर्ताओं में पहले जैसा जोश कम ही देखने को मिल रहा है।

और यहां भी कैडर से जुड़े पदाधिकारी पहले तो श्री कला धनंजय सिंह के संपर्क में थे तो वहीं अब वो दूसरी संभावनाओं की तरफ देख रहे हैं,फिलहाल भाजपा की निगाहें क्षत्रिय और पिछड़े वोटों के बिखराव को रोकने पर लगी हुई हैं क्योंकि सपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग को ही साधने के लिए जन अधिकार पार्टी के प्रमुख बाबू सिंह कुशवाहा को साइकल में रफ्तार देने की जिम्मेदारी दी है।

बाबू सिंह कुशवाहा मूल रूप से बांदा के रहने वाले हैं और प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं,चूंकि सीट पर मौर्य वोटों की संख्या निर्णायक भूमिका में है इसलिए कुशवाहा जौनपुर में अपनी जाति और बिरादरी को साधने के लिए पूरे कैडर और परिवार के साथ मैदान में हैं,लेकिन सपा के कुछ पुराने कार्यकर्ता और पदाधिकारी अंदर खाने कुशवाहा के बाहरी होने का लगातार विरोध कर रहे है,और कुछ तो भाजपा प्रत्याशी से अपने निजी संबंधों का हवाला देकर मुलाकातें भी कर रहे हैं,जिस से मुस्लिम,यादव मतदाताओं में भी कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है।

कुल मिला कर जौनपुर 73 लोकसभा पर एक बार फिर से दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल सकती है जहां वर्तमान सांसद पिछले 5 सालों के लेखा जोखा के साथ जनता के बीच जा रहे हैं तो वहीं इंडिया और एन डी ए के प्रत्याशी अपने बड़े बड़े दावों और वादों से जनता को लुभाने की कोशिश में हैं,वहीं जौनपुर की जनता की बात करें तो उनके पास धर्म और जाति से ऊपर कोई भी मुद्दा नहीं है शायद यही वजह है कि देश के ढाई सौ बड़े शहरों में से एक ऐतिहासिक शहर जौनपुर आजादी 75 साल बाद भी देश के पिछड़े जिलों में एक गिना जाता है,और पर्यटन की इतनी संभावनाओं के बावजूद यहां हर चौथा युवा देश विदेश में रोजगार की तलाश में धूल फांक रहा है।