हरियाली पर चले आरा प्रशासन मूक दर्शक

रायबरेली।हरियाली पर कुल्हाड़ी जिम्मेदार बने मूकदर्शक कौन करेगा हरियाली की रक्षा,जब जिम्मेदार ही वृक्ष काटने का सुविधा शुल्क लेना शुरू कर दिया हो तो कैसे बचेगी भू भाग पर हरियाली,वही वर्ष के कुछ विशेष दिनों में वृहद वृक्षा रोपण किए जाते है,जिनमे कुछ पौधे वृक्षा रोपण के तुरंत बाद सूख जाते है और कुछ कुछ दिन बाद ही वह भू भाग पुनः बंजर नजर आने लगता है।हालांकि जहां जहां पर वृक्षा रोपण किया जा चुका है और उस पर अच्छी खासी धन राशि खर्च की गई किंतु वहां पर आज की तारीख में देखा जाए तो शायद एक वृक्ष मिले अन्यथा भू भाग पूरी तरह वीरान हो चुकी है।अगर अब हम बात करे पेड़ों की कटान का परमीशन एक पेड़ की लेकर लगभग दसों पेड़ को लकड़ कटों द्वारा काट कर गिरा दिया जा रहा है और यह सारा खेल प्रशासन के आगे हो रहा है।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जितने प्रतिबंधित पेड़ है उनको कटने पर प्रति पेड़ रु 5000 पुलिस, वन विभाग को देना होता है और पत्रकारों को अलग से देने की बात होती है।जबकि वही मैजिक,ट्रैक्टर सामने से कटे हुए पेड़ों को लादकर निकल रहे होते है,उन्हें रोका जाता है सिर्फ चक्कर का सुविधा शुल्क के लिए न की इन पेड़ों का परमीशन के लिए।गौरतलब हो की ऊंचाहार कोतवाली क्षेत्र और गदागंज थाना क्षेत्र के अंतर्गत दो दिनों से लगातार प्रतिबंधित पेड़ पुलिस प्रशासन की निगाहों के सामने काटकर ठेकेदार ले जा रहे है।बावजूद प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है,वही हरियाली को उजाड़ने की सूचना पर पहुंचे पत्रकार को ठेकेदार के गुर्गों ने धमकी देना शुरू कर दिया और पत्रकार को वीडियो भी नही बनाने दिया।अंत में ठेकेदार ने भी पत्रकार को धमकी देते हुए सुविधा शुल्क देने का पूरा तरीका बयां कर दिया और कहा जहां जाना है जाओ और जितना खबर लगाना है लगाओ कुछ नही होगा।सबको हिस्सा देता हूं।जब वन विभाग क्षेत्राधिकारी डलमऊ से बात की गई तो बताया की पेड़ों की कटान की जानकारी हुई है, ठेकेदारों पर विभागीय करवाई करते हुए मामला पंजीकृत कराए जाने आश्वासन दिया गया है।फिलहाल यह कोई पहला वाक्या नही है जब ऐसे बयान देकर विभाग और पुलिस अपना पल्ला झाड़ लेते है और लकड़ी ठेकेदारों का जलवा बरकरार रहता है।क्योंकि सैयां भए कोतवाल तो अब डर कहे का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,