पांच लाख का चेक लौटाया बोले पहले सारे ट्रांसफार्मर ठीक कराओ

बरेली किला चौकी के पास ट्रांसफार्मर की फेंसिंग में आ रहे करंट की चपेट में आकर जान गंवाने वाली लक्ष्मी के पिता मोहन स्वरूप ने पांच लाख के मुआवजे का चेक लेकर पहुंचे बिजली अफसरों को ऐसा सबक दिया जो शायद लंबे समय तक उन्हें ही नहीं बल्कि पूरे सिस्टम को शर्मिंदा करता रहेगा। उन्होंने यह कहकर चेक लौटा दिया कि पहले स्कूल-कॉलेज जाने वाले सभी रास्तों पर बिजली की लाइनें और ट्रांसफार्मर सही कराए जाएं ताकि उनकी लक्ष्मी की तरह किसी और की बेटी की जान न जाए। इसके बाद ही वह मुआवजा लेंगे सब्जी बेचकर परिवार का गुजारा करने वाले मठ लक्ष्मीपुर के मोहन स्वरूप की 10वीं में पढ़ने वाली बेटी लक्ष्मी शुक्रवार को स्कूल जाते समय करंट की चपेट में आकर जान गंवा बैठी थी। बारिश के बाद पानी से भरी सड़क पर उसका पैर फिसल गया था, उसने गिरने से बचने के लिए ट्रांसफार्मर की फेंसिंग को पकड़ा, जिसमें करंट दौड़ रहा था। तमाम लोगों की आंखों के सामने उसने 10 मिनट तड़पने के बाद दम तोड़ दिया था। इस फेंसिंग में कई दिनों से करंट दौड़ रहा था। पार्षद समेत लोगों ने बिजली विभाग में कई शिकायतें भी की थीं लेकिन अफसरों ने उन पर गौर नहीं किया।रविवार को बिजली विभाग के दो अफसर पांच लाख के मुआवजे का चेक लेकर लक्ष्मी के घर पहुंचे थे।शोक संवेदना जताने के बाद उन्होंने बताया कि वे मुआवजे का चेक लेकर आए हैं। उन्होंने मोहन स्वरूप से उनकी पत्नी अनीता का आधार कार्ड, पैनकार्ड, बैंक की पासबुक मांगने के साथ एक कागज पर हस्ताक्षर करने को कहा लेकिन मोहन स्वरूप बिफर गए और चेक लेने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि बिजली विभाग पहले शहर में स्कूल-कॉलेजों के रास्तों पर सभी ट्रांसफार्मर और बिजली की लाइनें दुरुस्त कराए तभी उनकी बेटी की आत्मा को शांति मिलेगी और तभी वह वह मुआवजा लेंगे। अधिकारी काफी देर तक मोहन स्वरूप और परिवार के लोगों को समझाते रहे लेकिन वे चेक लेने को तैयार नहीं हुए।चेक ले लेता तो बेटी की आत्मा को शांति नहीं मिलती मोहन स्वरूप और उनकी पत्नी अनीता ने कहा कि सिस्टम की लापरवाही ने उनसे उनकी बेटी तो छीन ली लेकिन वह चाहते हैं कि किसी और बेटे या बेटी के साथ ऐसा न हो। अगर वह चेक ले लेते तो उनकी लक्ष्मी की आत्मा को शांति नहीं मिलती। मोहन स्वरूप ने बताया कि उनकी बेटी पढ़ने में बहुत अच्छी थी और उनके सपने पूरा करना चाहती थी। उनके हाड़तोड़ मेहनत करने का भी मकसद यही था कि बेटी की पढ़ाई में व्यवधान न आए। बातचीत के दौरान अनीता कई बार रो पड़ीं, मोहन स्वरूप की आंखें भी डबडबाती रहीं।