आखिर ! मुखिया हुए रुसवा..........धोबी का कुत्ता 🐕 घर का रहा ना घाट का

बड़ी देर से मोबाइल कान से सटाए मुखिया राम भरोसे किसी से बात कर रहे थे।कह रहे थे, चाहे कुछ भी हो जाए, कितने भी बेजा इल्जाम क्यों न लगाना पड़े।हम अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे, लेकिन कोतवाल की रुखसती करवा कर रहेंगे। मक्कारों के बीच में आशा और विश्वास की नई किरण बनकर उभरेंगे।साहब को धूल न चटवा दिया तो मेरा नाम भी रामभरोसे नहीं। इतना कहते हुए मोबाइल कट कर दिया। बाहर कार चालू खड़ी है। ईंधन धुआं होता जा रहा है। रामभरोसे जी कार चढ़ने ही वाले थे कि तभी कुछ शुभचिंतक टपक पड़े,बात चली तो मामले को घुमा फिरा कर और हवा दे दी।रामभरोसे जी ने कुर्ते का लूज कालर सीधा करते हुए कहा, कि जो नायाब पैंतरा चला है,एक बार कामयाब हो गया,तो मुखियागिरी का जलवा देखना, फिर इतना नाम कमाएंगे कि आने वाली सात पुश्तें उसी के सहारे बैठ कर खेत खलिहान और तालाब की जमीन कब्जाती रहेगीं। इतना कहते हुए वे जनपद मुख्यालय की ओर चल पड़े।

रामभरोसे ने पानी की तरह पैसा बहाकर भाड़े पर बुलाए लोगों से अपनी खूब पीठ थपथपाई। नारे भी लगवाए, फोटो खिंचवाई और थानेदार के खिलाफ अफसरों को गुमराह भी खूब किया,जोरदार भाषण और प्रदेश के मुखिया के नाम ज्ञापन भी दिया। कुल मिलाकर नेतागिरी की ऐसी छाप छोड़ी कि पूछो मत, कुछ साथियों को अपने पक्ष में लाने के लिए ऐसे-ऐसे वादे कर डाले कि न भूतो न भविष्य।अब उन्हें पूरा यकीन हो चला था, कि भगवान भी उनके सामने खड़े हो जायेंगे तो उनकी सिट्टी-पिट्टी गुल हो जाएगी।लेकिन, पिक्चर की आखिरी सीन आते-आते समर्थकों ने मुखिया को अंगूठा दिखा दिया।तो मुखिया ने खुद के बुने हुए जाल में फंसता हुआ देख रात के अंधेरे में कोतवाल का पैर पकड़ लिया।आखिर में मुखिया रामभरोसे ने अपना सब कुछ गंवा दिया।पाप बेचारे प्रधानी के नाम पर खुद गौण बन गए।अब लोग मुखिया की ठिठोली ले लेकर हंस रहे हैं, कहते हैं धोबी का कुत्ता घर का रहा ना घाट का।