400 वर्षों से जुड़ी है पटमेश्वरी माता मंदिर की कथा, यहां श्रद्धालुओं की पूरी होती है मुंह मांगी मुराद

इटियाथोक,गोंडा। चैत्र नवरात्र में पांचवे दिन श्रद्धालु, मां के स्कंदमाता स्वरूप का पूजन कर रहे हैं। देवी मंदिरों में सुबह से लेकर पूरे दिन चलने वाले हवन, पूजन व मंत्रोच्चारण की पवित्र ध्वनि की गूंज से परिसर देवी मय हो गया है।इटियाथोक ब्लॉक मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर मेहनौन ग्राम पंचायत में स्थित मां पटमेश्वरी का स्थान सैकड़ों वर्षो बाद भी भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।एक आतताई राजा से क्षेत्रवासियों को मुक्ति दिलाने पर उनकी यहां पूजा की जाती है।मान्यता है,कि आतताई राजा का वध कर मां पटमेश्वरी ने क्षेत्र को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसके बाद वह स्वयं पिंडी रूप में विराजमान हो गईं थीं।तभी से बारहों मास प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को भक्तों की भीड़ दर्शन पूजन करने के लिए आती है।शारदीय व चैत्र नवरात्रि में तो यहां पर अपार भीड़ मां के दर्शन के लिए उमड़ती है।मान्यता है, कि यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना मां अवश्य ही पूरा करती है।जनपद ही नहीं बल्कि आस-पास जिलों के अनेक श्रद्धालु भी मंदिर में दर्शन कर मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बाकड़ नाम का था राजा

जनश्रुतियों के मुताबिक करीब 400 वर्ष पहले यहां पर बाकड़ नाम का एक राजा हुआ करता था, जो की बहुत ही अत्याचारी था।बताया यह भी जाता है,कि इस क्षेत्र से गुजरने वाली नवविवाहिता की डोली को राजा रुकवा लेता था,और उन वधुओं से दुराचार भी करता था।इससे क्षेत्र की जनता में उसको लेकर आक्रोश था।राजा की ताकत के सामने किसी की भी हिम्मत आवाज उठाने की नहीं रही।कहते है, कि इसी दौरान एक नवविवाहित कन्या का डोला गुजरने पर राजा ने उसे रोक लिया और दुस्साहस करने की कोशिश की तो वधू ने राजा की तलवार से उसका सर कलम कर दो टुकड़े कर दिए और स्वयं अंतर्ध्यान हो गईं।तभी से वह मां पटमेश्वरी के नाम से विख्यात हुईं। इसके बाद से यहां पूजा अर्चना शुरू हो गई जो कि अब तक चली आ रही है।यह स्थान आज सैकड़ों वर्ष बाद भी मां भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। नवरात्रि में तो यहां पर प्रतिपदा से पूर्णमासी तक 15 दिनों तक भारी संख्या में दूर-दराज से भक्तों की भीड़ पूजा-अर्चना के लिए आती है।

भोलेनाथ ने भी किया था विश्राम

सतीसह महादेव: मेहनौनं मपुस्थितम्।एक रात्रो स्थित्वा च पुनर्गत: अगस्त्याश्रमम्। संतो की मानें,तो इस स्थान के बारे में पुराणों में वर्णित इस श्लोक से पता चलता है,कि एक बार अगस्त मुनि के आश्रम में राम कथा सुनने जाते समय भगवान शंकर माता सती के साथ में मेहनौन स्थित मां पटमेश्वरी के स्थान पर गुप्त रूप से रात्रि निवास किया था। इसी कारण यह स्थान गुप्तेश्वरी देवी आज मां पटमेश्वरी के नाम से विख्यात हुआ है।भगवान शंकर ने अयोध्या से प्रयाग होते हुए महर्षि अगस्त्य आश्रम में जाकर राम कथा का रसपान किया था।

यहां पर कई प्रकार की सुविधाएं

मेहनौन के प्रसिद्ध मंदिर पर आने वाले देवी भक्तों की सुविधा के लिए कई प्रकार की व्यवस्थाएं की गई हैं। मंदिर में रात्रि विश्राम के लिए आगंतुकों को धर्मशाला, जलपान, भोजन और फलाहार की व्यवस्था है। मेला प्रशासन ने यहां पर स्नान ग्रह, सार्वजनिक शौचालय और पानी आपूर्ति की व्यवस्था कर रखी है।यहां कथा भागवत, मुंडन संस्कार जैसे अनेक धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं।

मां के आशीर्वाद से क्षेत्र अभिसिंचित

मेहनौन ग्राम पंचायत के प्रधान पति रामू सिंह बताते हैं, कि मां पटमेश्वरी ने संपूर्ण क्षेत्र को अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित किया है।उन्होंने कहा,कि क्षेत्र में कोई भी मांगलिक कार्यक्रम बगैर माता के मंदिर आए और इनके आशीर्वाद लिए पूर्ण नहीं होता है।माता पटमेश्वरी का यह स्थान सिद्ध पीठ है।भक्तों को यहां कभी निराशा नहीं होती उनकी मनोकामना माता अवश्य पूर्ण करती हैं।