स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोलती ये तस्वीरें, जिम्मेदार मूंदें हैं आंखें, सरकारी मिलीभगत से ग्राम प्रधानों ने डकारे लाखों

अमेठी : प्रधान मंत्री भारत सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना "स्वच्छ भारत मिशन" का जलवा अमेठी में देखते ही बनता है। इस महत्वपूर्ण योजना के तहत पूरे जिले में 66210 बना शौचालय कागजों में दर्ज कर अफसर अपनी पीठ खुद थपथपा चुके हैं। सरकार के करोड़ो रुपए इस मद में खर्च होना दिखाया गया लेकिन यदि हकीकत देखी जाए तो मात्र 5 प्रतिशत शौचालय का उपयोग हो रहा है वह भी लाभार्थी ने जब खुद बनवाए। 95 प्रतिशत शौचालय में कहीं दरवाजा और छत भी नहीं लग सकी। 8 हजार रुपए में ग्राम प्रधान ने अपने आदमियों को शौचालय बनाने का ठेका दे दिया जबकि लाभार्थी के खाते से 12 हजार स्वयं ग्राम प्रधान ने लिया। लगभग पूरे प्रदेश की यही स्थिति है।

बात करें अमेठी की तो बहुत बुरी स्थिति है। जिनकी इज्जत के लिए इज्जतघर बनवाने का अभियान चला वही अपनी की परवाह न करते हुए आधे अधूरे इज्जतघर में कूड़ा, उपली व अन्य कबाड़ रखे हुए हैं। देखा जाए तो इसमें लाभार्थी की भी कोई गलती नहीं है। सिर्फ नाम के लिए बने इज्जतघर में सीट तक भी नहीं लगी और दीवारें तो ऐसी बनीं कि जोर लगाकर धक्का दिया जाए इज्जतघर की बेइज्जती होते हुए दीवार धराशाई हो जाए। बदतर हालत तो गांव में नियुक्त सफाई कर्मचारियों ने कर रखी है। सफाई कर्मी ब्लॉक और पंचायत विभाग के बाबुओं और अधिकारियों के कृपा पात्र बन उनके दफ्तर और घरों में हां हुजूरी करते नजर आते हैं। सफाई कर्मी खुद 2000 रुपए में अपने द्वारा सफाई कर्मी नियुक्त कर महीने में एकाध बार झाड़ू लेकर गांव में छूमंतर करने पहुंचते हैं जिन्हे किसी ने देखा तो बहुतों ने नहीं देखा। गांव की नालियां बजबजा रहीं है। खडंजो पर कूड़ा पड़ा है तो पड़ा रहे, उनकी बला से।

इस स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत तो जनता के लाभ के लिए हुआ था लेकिन लाभ जनता को नहीं मिला। लाभ मिला तो ग्राम प्रधान, पंचायत सचिव, सहायक विकास अधिकारी पंचायत और बीडीओ से होते हुए ऊपर तक मिला। ऐसा इसलिए कि निर्माण के दौरान अनगिनत शिकायतें बीडीओ, डीपीआरओ और जिलाधिकारी तक से हुई लेकिन किसी भी जिम्मेदार ने इस बारे में कोई जांच नहीं कराई और न ही कोई कार्यवाही की। किसी भी गांव में सुबह व शाम होते ही महिलाओं व पुरुषों को लोटा व बोतल लिए खेतों की तरह जाते हुए स्वच्छ भारत अभियान को पलीता लगाते हुए देखा जा सकता है। सरकार के करोड़ों रुपयों को इन लोगों डकार लिए। अधिकतर सामुदायिक शौचायों में तो ताले बंद हैं क्योंकि न पानी की मोटर सही है, न ही पाइप की फिटिंग सही है। पानी की टंकी ऊपर रखी हुई जरूर दिख जायेगी।

आखिर कैसे पूरा होगा स्वच्छ भारत मिशन का अभियान। क्या सिर्फ कागजों में ही पूरा है या धरातल पर भी। यह जानने की किसी ने भी कोशिश नहीं की। अब भी समय है, अधिकारी नींद से जागें और जिले के सभी निर्मित शौचालयों का भौतिक सत्यापन अन्य विभागीय अधिकारियों से कराएं तो अमेठी में स्वच्छ भारत मिशन की पोल खुलती नजर आएगी। कुल मिलाकर भ्रष्टाचार की स्थिति बहुत खराब है।