एक गुटखा आदमी की अर्थी उठवा देता है।

नावा।आज हम ऐसे लेखक, समाजसेवी ,कवि ओर पत्रकार मनोज गंगवाल नावाँ की बात कर रहे है अपने क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान में तंबाकू निषेध महाअभियान गुटखा खाने वाले को समझा कर गुटखा छुड़ाने का प्रयास कर रहे हैं। विश्व 31मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाता है।

पर यह अपना हर दिन विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाते है। विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर मनोज गंगवाल द्वारा 16 नवंबर 1998 में रचित एक कविता।

गांव -गांव और गली-गली फैल गया इसका कहर।
संसार की सर्वाधिक बिक्री वाला यह स्वादिष्ट जहर ।।

धूम मचा दे रंग जमा दे, जीते जी अर्थी उठवा दे।
जिन्दों की अर्थी उठवायें, फिर भी बेवकूफ गुटखा खाये ।।

हुई नपुंसक युवा पीढ़ी, मुख कैंसर ने किया अटहास।
दांतों का भी हुआ कबाड़ा, सेहत का हो गया सत्यानाश ।।

अक्ल का अंधा खाने वाला, जहर खरीदकर खाता जाये।
गांठ का पूरा बनाने वाला, जहर बेचकर माल कमाये ।।

रंग बिरंगे पाउचों में, जहरीला है पान मसाला।

कैंसर की प्रयोगशाला, बन गया है खाने वाला।।

तबाह यमराज, कफन-दफन, कालपसंद इसके नाम है।
जिसमें जितना जहर है, उसके उतने ही कम दाम है ।।

हंसकर कहता गुटखा सबसे, कितना मैं सर्वव्यापी हूँ।
हे मूर्ख मुझे खाने वालों, मैं यमराज की कार्बन कॉपी हूँ ।।

मंहगा नहीं तुम सस्ता खाओं, दस खाते हो बीस खाओ |
शार्टकट रास्ता अपनाओं, अपनी अर्थी खुद उठवाओ ||

जीवन बहुमूल्य है, कृपया गुटखा रूपी मीठे जहर से बचें।

लेखक मनोज गंगवाल नावाँ