आकड़ो की बाजीगरी व पैसों का चढावा दोनों के बीच में आपस में उलझते परेशान किसान व समिति के प्रभारी

सूरजपुर।इन दिनों धान की खरीदी को लेकर किसानों व धान खरीदी केंद्र प्रभारियों के बीच अक्सर बारदाने की उपलब्धता में आकड़़ो की बाजीगरी के खेल में एक दूसरे से उलझ रहे हैं।एक तरफ स्थिति ऐसी है की प्रशासनिक अमला सरकारी पोर्टल और कागजी आंकड़ों का हवाला देकर जिम्मेदार अधिकारी जिले में आवश्यकता से अधिक बारदानों की उपलब्धता का दावा कर रहें हैं। वहीं खरीदी केंद्रों पर उठाव की रफ्तार कम होने के साथ साथ मिलरों से प्राप्त वारदाने 100 नग में मात्र 30 से 40 ही सही स्थिति में वारदाने उपयोग लायक होते हैं, इसके अलावा वारदाने के लिए समिति केंद्र प्रभारी द्वारा जबतक चढावा डीएमओ कार्यालय में नहीं पहुचाते तब तक बारदानों की जरूरत समितियों में पुरी नहीं होती, अब इन जरूरत से कम वारदाने और किसानों की भीड़भाड़ से समिति प्रभारी प्रति क्विंटल 25 रूपय हमाली व तौलाई के साथ वारदानो के लिए जो पैसा डीएमओ कार्यालय में मजबूरी में देते हैं।उक्त राशि को सीधे वारदाने के नाम से किसानों से मांगने पर विवाद खड़ा ना हो इसकारण इसकी आड़ लेकर पैसों का लेनदेन फड़ में सीजनली पड़ देखरेख व हमाली काम करने वालो के माध्यम से किसान सें पैसा लेकर काम आगे करते हैं।वहीं दूसरी तरफ जो किसान इसका विरोध करते हैं, उन्हें या तो खराब पड़े वारदानो में सें जो सही है उसको छाटने के बाद तौलाई, भराई ,सिलाई जैसे कार्य खूद करनें को बताकर कट्टे फट्टे मिलर्स से मिले वारदानो को सौपकर छाटने की शुरुआती प्रक्रिया में ही किसान या तो पैसा देकर किसी तरह उपज बिक्री करता है या सुबह से शाम तकउपार्जन केंद्रों पर बिना धान बेचे वापस लौटने के लिए मजबूर हैं।वही अक्सर धान खरीदी की समिक्षा बैठकों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के बारदानों व मिलर्स से वारदानो को एकत्र करने के मामले में आकड़़ो की बाजीगरी कर पेश कर अपनी पीठ प्रदेश के आला अधिकारीयों सें तारीफ बटोरनें वालों में शामिल हैं।वहीं जब भौतिक धरातल पर अब बरदानों की वजह से उपज रहे विवादों की जवाबदेही से बचते हुए नजर आ रहें हैं।

कागज व पोर्टल में उपलब्ध है बारदाने-बारदाने के लिए सरकारी खेल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकारी पोर्टल और फाइल में बारदाने की उपलब्धता,आवश्यकता से अधिक दर्ज की गई है। वहीं वारदानो की कमी से संबंधित लेनदेन की बातों पर और बारदानों की कमी को लेकर हो रही समस्या के संबंध में पूछे जाने पर अलबत्ता उनका फोन रिसीव नहीं होता, अगर. फेस टू फेस मिल जाएं तो सभी आरोप धान खरीदी केंद्र प्रभारियों पर मढकर बड़ी सहजता से खारिज कर देते हैं।रही बात अब धान खरीदी केंद्रो की तो यहां के प्रभारी कार्यवाही के डर से खुलकर विरोध तक दर्ज कराने में डरते है।इसका नजारा चाहे तो जिला प्रशासन किसी भी बड़े धान खरीदी केंद्र का दौरा कर वारदानो की हालत देख इस कड़वी हकीकत से रूबरू हो सकता है।

पिछले सत्र में भी वारदानो को लेकर विवादों में रहा है डीएमओ कार्यालय-

वैसे तो हर वर्ष अपनी कारगुजारी के वजह से मार्कफेड का जिला कार्यालय डीएमओ धान खरीदी के सीजम में वारदाना परिवहन से लेकर किस धान खरीदी केंद्र पर कितना पहुंचेगा, इन सभी कार्यों को लेकर हर दफा सुर्खियों में रहता है।बीते वर्ष तो वकायदा यहां के एक अधिकारी की विडीयों वायरल तक वारदानो की अफरातफरी में सामने आने के बाद किसी तरह से विवाद शांत हुआ था।इसके बाद से इस कार्यालय में अब सीधे पैसो की मांग या वारदानो की खेप के लिए अलग अलग विश्वत लोगों को रखकर वसूली लाखों रुपये में पूरे सीजन में मात्र वारदानो के वितरण व परिवहन में चलता है।शेष उठाव के बाद संग्रहण केंद्र पर इनकी कारगुजारियों से जिला प्रशासन वाकिफ काफी हद तक है।