*अदब की राह मिली है तो देखभाल के चलो,*!

(प्रमोद गुप्ता 9005392789)

*सम्पादकीय

लफ़्ज़आईनेहैं मत इन्हें उछाल के चलो,*?
*अदब की राह मिली है तो देखभाल के चलो,*!
*मिली है ज़िन्दगी तुम्हें बस इसी मकसद से,*!
*सँभालो खुद को औरअपनों" को सँभाल के चलो*!?
अदब की राह पर चलकर अपनी पहचान कायम करने वाले कभी भी गलतफमियो के शिकार नही हुआ करते है। सुर्खूरू इन्सान तूफान से भी टकराने का हौशला रखता है। सच की ईबारत में महाभारत का बृतान्त भी लाजबाब लगता है! लेकीन हकीकत की परिभाषा का जब बिश्लेषण होता है रूह कांप जाती है। थोङी सी नादानी लालच ब्यंग हस्तिना पुर का सर्वनाश कर दिया! बिनाश कर दिया! मिला क्या केवल कलंकित इतिहास रह गया?सर्वशक्तिमान बनने की ख्वाहीशो ने भाई से भाई का खून कराया थोङे से आभिमान में राजसी स्वाभिमान जंगलो में ठोकरे खाया!सारे नाते रिश्ते स्वार्थ की बहती सरिता में खानदानी स्मिता के बिलोपन के साथ समा कर इतिहास बन गया! जीवन अनमोल है! लम्हा लम्हा इन्सान मौत के करीब पहुंच रहा है! फिर भी माया के बशीभूत होकर खुद का शिकार है! जीवन मे पाल रखा केवल बिकार ही बिकार है!करोना चन्द लम्हों में सब कुछ यथार्थ का बोध करा रहा है! तब भी स्वार्थ की दरिया में उफान है? रिश्तों की दीवाल से बार बार टकरा रहा स्वार्थी स्वाभिमान है! आज पता नहीं क्यों मन बङा उदास है चंचल है? गुजरे लम्हे याद आ रहें पल पल है।सब कुछ बदल गया ! उस कबि की बात याद आ रही है जो महल हमने गढा था वो महल तो है नहीँ! झोपङी मे रक्त से जलता दिया है! जो कुछ रहा हमारा वो भी चला गया सब कुछ गँवा के अन्त में हमको मिलता क्या है।चार दिन की जिन्दगी वह भी द्वेश क्लेश के परिवेश में रहकर बिद्वेश का बीज बोते हुये गुजरे तो ऐसी जिन्दगी पर लानत है! *गन्ध बनकर कर बिखर जाईये सबके दिल मे उतर जाईये सर्वदा नाम उँचा रहे काम कुछ ऐसा कर जाईये*! जब इस मकसद को लेकर जीवन का सफर मन्जिल के तरफ बढेगा तो निश्चित ही जुही की तरह भावनाओं की सुगन्ध फैल जायेगी! शकून की बर्षात होगी! हरकदम गमगमा उठेगा! मनमयूर नाच उठेगा! सम्भावनाओ की बाजार में दुर्भावनाओ का बिलोपन हो जायेगा।केवल प्र्यास तो करके देखें ।बिना मकसद दुसरे में बुराई ढुढने वाले तो राह में कांटे बिछाते ही रहेंगे । आज के दौर में सामाजिक परिवेश बिषाक्त हो चला है! हर तरफ केवल बैमनश्यता की हवा झकझोरा मचाये हुये है।तमन्ना पाले लोग तरक्की की राह पर न निकल कर दुर्ब्यवस्था के दावानल में झुलस रहे है।छ माह से करोना के कहर से गांव शहर तबाह! खेतखलिहान किसान जवान सब भर रहे है आह!बिकाश के जगह बिनाष का हो रहा है प्रवाह! कल कारखाने बन्द हो गये ! मयखानो में आयी हुयी है बहार! इसी से देश की अर्थब्यवस्था सम्हाल रही सरकार है! करोना के नाम पर बिश्व में दहशत फैला है। लेकीन अब जो खुलाशे हो रहें है वह काफी चौकाने वाले है।इटली में शोध के बाद खुलाशा कर दिया गया है कि करोना कोई वायरस नही है। बल्कि एक साधारण बैक्टीरीया है। जिसके दुष्प्रभाव से खून मे थक्के जम जाते है। यह केवल पैरासीटामाल तथा ऐस्प्रीन जैसी सस्ती दवा से आसानी से ठीक किया जा सकता है। ङब्लू एच ओ भी इस खुलाशा से हैरान है परेशान है। इटली का दावा है कि यह जानकारी चाईना को पहले से थी !लेकीन वह छिपाकर रखा था! सारी दुनियाँ छटपटा कर दम तोङ रही है।आज ईटली ऐसा देश निकला जो ङब्लू एचओ के आदेशो का उलघन करते हुये मानवता की रक्षा में अहम योगदान दिया है! करोना वायरस के असलियत को सबके सामने ला दिया है। करोना के दहशत से लोग घरों मे दुबके पङे है!और
सियासदार मनमानी पर मनमानी किये जा रहे है।ईटली स्वास्थ मन्त्रालय ने जो मैसेज सोसल मिङीया पर वायरल किया है उसमे साफ शब्दो मे लिखा है कोबिङ 19कोई बिमारी नही! यह 5जी रेङियेशन का हमला है! यह केवल साधारण दवा लेते रहने से ठीक हो जायेगा? मामला जो भी हो दुनियाँ में मानवता का बिनाश हो गया! इन्सनियत का नाश हो गया! हंसती खेलती जिन्दगी मे खुशहाली की रोटी कमाकर खाने वालो के घरों मे कई कई दिनो थक उपवास हो गया?।मजदूर सङको पर बे मौत मारे गये! रोजीरोजगार गया शहरो से निकाले गये?! आज फिर एक बार आस जगी है इटली की बात सच हुआ तो पतझर के बाद बहार के आनन्दातिरेक से भरपूर जीवन की शुरूआत परिकल्पित हो सकता है! जीवन एक बार फिर नवजीवन की संकल्पना के सनिध्य मे संकल्पित हो सकता है! पर सब कुछ अभी दिवास्वपन्न ही लग रहा है।निर्वासित जीवन मे जो दुर्दशा आफत बिपत्ति का सामना करना पङा है उससे अपनो परायो की पहचान का भेद खुल गया है।करोना काल में झूठे रिश्तों का मोल पता चल गया है!
वक्त की दरिया में अब भी उफान है? चाहत की कश्ती पर सवार घर परिवार का ब्यवहार स्वार्थ के साहिल पर टकरा रहा है। रिश्तो का लंगर कमजोर पङता जा रहा है।हकीकत का पतवार दिशा बदलने की कोशिश में टूट चुका है।यही समाज की सच्चाई है! जो आज छन कर बाहर आयी है!

जरा गौर करे कल तक जो सङको पर उछलकूद नाच गाकर कर राष्ट्रभक्ति के तराने गा रहे थे आज क्यो! पश्चाताप के आँसू रो रहेँ है।यह सवाल बस उदाहरण के तौर पर रखा गया है? सामाजिक बुराई तेजी से फैल रही है! पूरा देश असहाय हो चुका है!सियासी भेङिये मांद मे घुस चुके है! बस मौकी की तलाश मे है! लोकतन्त्र के जंगल मे केवल सिंह की दहाङ सुनाई दे रही है?हर तरफ भयावह मंजर लिये उदासी है! खामोशी है!देखिये आने वाला कल भी छल करता है या बर्तमान के तरह ही रिहल्सल करता है।! वक्त के गिरफ्त मे आकर हम सब कसूरवार बन चुके है! फैसला की घङी करीब है! हौशला की उङान के लिये तैयार रहे ?