1 करोड़ प्राइवेट शिक्षक प्रदेश मे झेल रहे बेरोजगारी प्रदेश के प्राइवेट शिक्षकों का दर्द नहीं है कोई सुनने वाला..आलोक श्रीवास्तव

संत कबीर नगर......उत्तर प्रदेश

कहते हैं कि राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ा योगदान शिक्षकों का होता है, समाज में सम्मान भी मिलता है, परंतु आज उन्ही शिक्षकों की सुध लेने वाला न तो स्कूल प्रबंधन है, न ही हमारा समाज और न ही सरकारें!!
आम आदमी पार्टी के जिला महासचिव आलोक श्रीवास्तव ने बतौर नेता एक शिक्षक होने के तौर पर बताया कि इस देश को बनाने में हमारा योगदान भी उतना ही है जितना एक किसान का है!
मेरे पेशे का सम्मान आज भी उतना ही है जितना एक सीमा पर रक्षा करने वाले एक शूरवीर जवान का है।
मैं हर रोज नए मानकों पर परखा जाता हूँ। जितने सवालों के जवाब सरकारें पूरे कार्यकाल में नहीं देती उतने जवाब मैं रोज देता हूँ। मुझसे सवाल पूछने पर मैं अनदेखा नहीं कर सकता, मुझे जवाब देना ही पड़ता है और सही जवाब ही देना पड़ता है।
हर रोज मेरी परीक्षा होती है, मेरी प्रतिष्ठा हर रोज दांव पर होती है, मुझे परखे जाने के जितने मापदंड है उतने शायद किसी को परखे जाने के नहीं,
मैं, जी हां, मैं एक प्राइवेट शिक्षक हूँ।
मैं सबके लिए जवाब देह हूँ, अभिवावक हो या बच्चे हो, प्रिंसिपल हो या शिक्षक/डायरेक्टर हो, या कोई मैनेजमेंट वाले हो!
सब सवाल मेरी तरफ होते हैं। जब बच्चों के टेस्ट लें तो बच्चों से ज्यादा मुझे टेंशन होती है, कि नम्बर कम आएंगे तो मैनेजमेंट को क्या बताऊंगा?
बच्चे खुद के रिजल्ट के लिए दुआ करे या ना करे पर प्राइवेट शिक्षक को बच्चों के अच्छे परिणाम के लिए दुआएं रोज करनी पड़ती हैं।
रिजल्ट वाले दिन बच्चों और उनके शिक्षकों की धड़कने राग मिलाती हैं। खैर परीक्षा तो हमारी रोज ही होती है कभी एंटरटेनर बनकर, कभी धमका कर, कभी समझाकर तो कभी-कभी जोकर की तरह हंसाकर बस इस कोशिश में रहते हैं कि बच्चे अच्छे से सब समझ जाए... बस।

आजकल हमारा सम्मान कम होने लगा है, हमें छोटी-छोटी बातों पर भी खिसिया के यह सुनना पड़ जाता है कि पैसे किस बात के लेते हो?

बाजारू हो गए हैं हम, अपमान, सम्मान सब भूल चुके हैं।
लेकिन कोरोना के इस लॉकडाउन काल ने हमें सोचने को मज़बूर कर दिया है।
न हम बीपीएल वाले हैं, न ही खाद्य सुरक्षा में हमने नाम लिखवाया है क्योंकि हम स्वयं समाज के आदर्श हैं,
गरीबो की योजना का फायदा गरीबो को मिले तो ही ठीक, हम स्वस्थ है ना, कमा सकते हैं! फिर सरकार ओर देश पर बोझ क्यों बने??
इसलिए बड़े-बड़े सपनो को लिए हुए, इन छोटे मोटे चक्करों में हम पड़ते ही नहीं।

आजतक हमने बस जवाब ही दिए हैं, सवाल किसी से नहीं पूछा.... पर आज पूछते हैं-

सरकार किसानों, जवानों, मज़दूरों, बीपीएल परिवारों, गरीबों के लिए ही है क्या??
मैं दावे से कह सकता हूँ कि इस देश में सबसे ज्यादा प्राइवेट कर्मचारी हैं,
तो वो गैर राजकीय विद्यालयों के शिक्षक हैं।
क्या सबको जवाब देने वालों के हक़ में सवाल पूछने वाला कोई नहीं है?
6 महीने से हम घर बैठे हैं, कोई सब्सिडी नहीं, कोई सहायता नहीं, सहायता तो बहुत दूर की बात है, किये गए काम का भी यहाँ पेमेंट नहीं हो रहा है बहुत सी संस्थाओं में, हालांकि आत्महत्या कर लेना ग़लत है!
आजकल शिक्षकों के अखबार, केबल कनेक्शन बन्द हैं,
रिचार्ज एक ही फोन में रहता है जिसके वाईफाई का घी की तरह उपयोग किया जा रहा है, क्योंकि रसोई में घी नहीं बचा है। पकवान की बजाय केवल भूख दूर करने की जद्दोजहद है। दूध दो टाइम की बजाय एक टाइम का ही आ रहा है वो भी कम होता जा रहा है आखिर उधार का दूध कब तक पियेंगे!
राशन वालों की दुकानें बदली जा रही हैं, दुकानदारों से प्राणप्रिय भाई की तरह व्यवहार किया जा रहा है, उनके बच्चों को फ्री में पढ़ाया जा रहा है ताकि वो उधार चुकाने की जल्दी न करें। सबसे उधार मांगकर हम ना पहले ही सुन चुके हैं, आजकल भगवान से प्रार्थना भी यही रहने लगी है कि आज मकान मालिक किराया मांगने न आये!
बच्चे बिस्किट-चॉकलेट की जिद करना भी छोड़ चुके हैं, कभी-कभी उनको देखकर आंसू भी निकल जाते हैं, किसी की बीवी प्रेग्नेंट है तो कोई महिला शिक्षिका स्वयं प्रेगनेंसी से गुज़र रही है, आने वाली नन्ही सी नई जिंदगी को कैसी जिंदगी दे पाएंगे ये चिंता सोने नहीं देती!
किसी के घर में बुजुर्ग बीमार रहते हैं, तो कोई शिक्षक स्वयं बीपी शुगर का मरीज है, नाममात्र की तनख्वाह में जैसे-तैसे एक शिक्षक, एक परिवार और उसकी उम्मीदों को पालता है, लेकिन अब उसे सपना भी आ जाए कि घर में कोई बीमार हो गया है तो सब धराशायी!!
उम्मीदें टूट सी रही हैं,
लेकिन
हम कैसे टूटे..., हमने तो हर रोज सिखाया है, चॉक-डस्टर से बनाया और मिटाया है, सबको बताया है कि "हिम्मत नही हारनी चाहिए"
लेकिन सरकारों की अनदेखी कहीं हमें हरा न दे...
कहीं शिक्षक टूट न जाए...
हम खुद जानते हैं की हम कोई बॉलीवुड सेलेब्रिटीज़ नहीं जिसके टूटने पर बवाल होगा,
या
क्रांति होगी??
एक शिक्षक इतनी शांति से टूटता है की अखबारों और शोसल मीडिया पर आवाज तक नहीं होती।

मैं यह नहीं कहता कि हम शिक्षकों ने समाज पर अहसान किया है, मैं आपसे बदले में कोई आर्थिक सहायता भी नहीं मांग रहा हूँ।
न ही मेरा कोई राजनैतिक स्वार्थ या एजेंडा है,
मैं सीधा-साधा आदमी हूँ,
मुझे आंदोलन, हैश टैग, सरकार पर दबाव, धरना, हड़ताल भी नहीं आते हैं। मैं बस ईमानदारी से पढ़ाना मात्र जानता हूँ, क्योकि मैं एक शिक्षक हूँ....!!