सांभर झील में आकार ले रहा भारत का पहला टेस्टिंग ट्रेक इतने समय में होगा पूरा

अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (आरडीएसओ), लखनऊ की देखरेख में इन दिनों डेडीकेटेड टेस्टिंग ट्रैक पर काम चल रहा है। यह ट्रैक राजस्थान के फुलेरा-मकराना रेल सेक्शन के गुढ़ा से ठठाणा मिठड़ी स्टेशन के बीच बनेगा। इस ट्रैक पर कभी मीटर गेज ट्रेन दौड़ती थी। इसी ट्रैक पर दो साल बाद हाईस्पीड ट्रेन हवा से बातें करेगी। वह भी ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम के साथ। यह सिस्टम ट्रैक पर लाल सिग्नल होने पर 200 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ रही ट्रेन में भी ऑटोमेटिक ब्रेक लगाने में सक्षम है। साथ ही यह एक पटरी पर दो ट्रेनों की भिड़ंत को कवच देगा। इस डेडीकेटेड टेस्टिंग ट्रैक पर अब 160 से 220 किमी की गति से ट्रायल होंगे। टेस्टिंग ट्रैक पर तीन रेलवे स्टेशन आएंगे। इस पर 76 छोटे और नौ बड़े पुल होंगे। नावा सिटी स्टेशन पर मुख्य टेस्टिंग सेंटर होगा। यहां कई लैब, विश्वस्तरीय आधुनिक उपकरण, ऑटो पायलट इंजन, कोचिंग डिपो व सिकलाइन होगी। अभी दो बड़े व पांच छोटे पुलों को बनाने का काम चल रहा है।

ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम से भविष्य में ड्राइवर लेस हाईस्पीड ट्रेनें दौड़ाने की तकनीक भी भारत हासिल कर सकता है। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड यूआइसी-518/ईएन-14363 पर देश में पहली बार रोलिंग स्टाक (इंजन, बोगी व वैगन) के ट्रायल होंगे। यह इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का ट्रायल दूसरे देशों को रोलिंग स्टॉक के निर्यात का रास्ता भी खोलेगा।

वित्तीय वर्ष 2020-21 में हाईस्पीड ट्रेनों के ट्रायल के लिए इस टेस्टिंग ट्रै को बनाने के लिए 466.42 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं। यह डेडीकेटेड टेस्टिंग ट्रैक 59 किमी. लंबा होगा, जिसे बनाने में 819.90 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। रेलवे ने इससे पहले 2018-19 में पहले फेस के 25 किलोमीटर ट्रैक के लिए 353.48 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। फेस एक में 160 किमी. की गति की ट्रेनों के ट्रायल के लिए 43.73 किमी. लंबा डेडीकेटेड टेस्टिंग ट्रैक होगा। जबकि अतिरिक्त 15.27 ट्रैक पर 200 किलोमीटर प्रति घंटे की गति का ट्रायल होगा। पहला फेस दिसंबर 2021 और दूसरा फेस दिसंबर 2022 में पूरा करने का लक्ष्य है।