लाॅकडाउन में घरेलु ईंधन के परेषानियों से निजात व आत्मनिर्भरता का माध्यम बन रहा बायोगैस संयंत्र,753 सें अधिक परिवारों को मिल रहा लाभ

कम खर्च में महिलाएं खुद से ही कर रही संयंत्र का संचालन व उपयोग,आर्थिक सषक्तिकरण की खुली नई राह

सूरजपुर । कोरोना वायरस रोकथाम एवं बचाव के लिए लाॅकडाउन एवं धारा 144 प्रभावशील है।इस अवधि में नियमों का पालन हो या सजगता इसमें जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सजगता ने सबका ध्यान अपनी तरफ जरूर खीचने में सफल हुई है।इसके अलावा राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरूवा,घुरवा और बाड़ी के अंतर्गत गोबर्धन अंतर्गत मवेशियों के गोबर से ना केवल उचित निदान हो रहा है, वरन इसके माध्यम से गोबर गैस से प्राप्त ईंधन के माध्यम से घरों पर सुरक्षित व अल्प लागत में भोजन बनाने के लिए नियमित उपयोग का स्थायी विकल्प बनकर उभरा है।इसका महत्व लाकडाउन अवधि में सामने आया है, जहां ग्रामीण अपना अधिकांश समय घरों पर ही बीता रहे है।इस दौरान महिलाएं हो या बच्चे खाना बनाने के लिए आसपास के क्षेत्रों से लकड़ी बीनने से व धुएं से निजात पाई है।इसके वजह से महिलाएं परिवार के साथ अपना समय गुजारने व बच्चों की पढाई पर ध्यान दे रही है।इसके संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार जिलें में वर्तमान समय में करीब11 सामुदायिक बायोगैस प्लांट से 200 परिवार एवं 2 क्यूबिक मीटर के व्यक्तिगत प्लांट के माध्यम से 553 परिवारों को इस लाॅकडाउन अवधि में सुरक्षित तौर पर घरेलु ईंधन गैस के रुप में बायोगैस के माध्यम से करीब 753 परिवारो को सीधा लाभ मिल रहा । वहीं दूसरी तरफ इसके संचालन में कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी बायोगैस संयंत्र का समुदायिक संचालन सें प्राप्त कर रही है।इसके संबंध में भैयाथान विकासखण्ड के ग्राम पंचायत सुन्दरपुर की हितग्राही श्रीमती सुषीला सिंह ने बताया है कि लाॅकडाउन की अवधि में महिलाओं को घर पर ही रहकर उनको ईधन प्राप्त हो रही है। इसके लिए उन्हें ज्यादा समय भी नही देना पड़ रहा है। जब उनसे संयत्र लगने से पहले की स्थिति के संबंध में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि खाना बनाने के लिए अक्सर कई घंटे आसपास के नर्सरी या बगीचे में जाकर लकड़ी इकट्ठा कर, खाना पकाने के समय धुएं से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन जबसें गांव में गोबर गैस संयत्र प्रारंभ हुआ है।उसके बाद से चंद घंटों में परिवार का बना ले रहे है।इसके अलावा वर्तमान समय में कोरोना वायरस के रोकथाम व बचाव के लिए लाॅकडाउन घोषित किया गया है तब से हमारे गांव में बायोगैस मुख्य सहारा बना हैं। क्योकि पूर्व में गैस सिलेण्डर के लिए गैस एजेंसी तक आना- जाना और गैस सिलेंडर की किमत भी काफी अधिक होनें सें परेशानी होती थी।लेकिन अब बायोगैस से कम पैसे पर उनके साथ साथ उनके आसपास के घरों में भी कनेक्शन होनें सें सभी समय पर खाना बना लेती है।इसके अलावा संयत्र के संचालन के लिए शारीरीक दूरी के साथ नांक एवं मुहं को गमछे से ढ़ककर गोबर का घोल तैयार कर प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद साबुन से खुद और साथ की महिलाएं हाथ धोती हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन बायो गैस संयंत्र में ताजे गोबर 250 किलोग्राम एवं 250 लीटर पानी की आवष्यकता पड़ती है जिसके लिए सभी लाभाविन्त परिवार सोषल डिस्टेन्स का पालन करते हुए सामूहिक सहभागिता के तहत स्वयं से सुबह शाम गोबर संयंत्र में लाकर डालते हैं, तथा बायो गैस से निकलने वाले स्लरी खाद को आदर्ष गौठान में विक्रय करने हेतु एवं स्वयं के बाड़ी में उपयोग कर जैविक खेती को अपना रहे है।