दिया तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं कलेक्टर, सुचना के अधिकार के तहत नहीं ले रहे आवेदन

​​​​बैकुण्ठपुर। भारत सरकार के सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की जिस कदर कोरिया के सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र ने मखौल बना कर धज्जियां उड़ाई हैं।उसे देख लगता है कि, आम जनता तो यूं ही बेवकूफ है जो कानूनों का पालन करती है। अब लगभग सिद्ध हो ही चुका है कि भारत में कानूनों का न कोई अर्थ है और न अहमियत। जब जनता से कानून का पालन कराने वाले खुद ही कानून का पालन न करें तो जाहिर है, जनता क्?यों किसी कानून का पालन करे। इसी प्रकार सूचना अधिकार कानून 12 अक्?तूबर 2005 से लागू किया गया ताकि आम आदमी को इसका फायदा मिल सका। मगर अफसोस भ्रष्?टाचार की नदिया में गोते लगाते सरकारी और गैर सरकारी महकमें ने इस कानून के पालन को जिस कदर नजर अंदाज किया है उससे जाहिर है कि और जनता को सबक व सीख लेना चाहिये कि कैसे खुल्?ले आम कानून तोड़ा जाता है, और किस प्रकार कानून का अतिलंघन कर साहूकार बने रहा जा सकता है, और मजे की बात ये है कि, खर्राटे लगा कर सो रहा प्रशासन, जिसे न तो इतनी सूचना है कि कहां व कितना कानून का पालन हो रहा है और कितना कानून टूट रहा है। जिसके पास अभी तक यह ज्ञान नहीं कि आखिर सूचना कानून क्?या है और उसके प्रावधान क्?या हैं। जिले मेऐसे कितने शासकीय विभाग है जो आवेदक से आवेदन लेने में कतराते है। अब तो कलेक्टर कोरिया भी इससे मुह मोडते नजर आ रहे है। मिली जानकारी के अनुसार एक आम आदमी ने लगातार चार बार सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत कलेक्टर कोरिया को डाक से आवेदन भेजा किंतु उन्होंने आवेदन को लेने से सीधे तौर पर इंकार कर दिया जब जिले में बैठे जिले के मुखिया ही इस प्रकार से करने लगे तो जिले के अन्य विभाग में पदस्थ अधिकारियों का क्या रवैया होगा यह आप इसी से समझ सकते हैं।