साहब यह कैसा लाकडाउन जहां तस्करों की मौज आमजनों से करा रहे नियमों का पालन........

ग्राउंड रिपोर्ट महेन्द्र पाण्डेय

सरगुजा 24 अप्रैल। कोरोना वायरस एक ऐसा नाम जिसनें वैश्विक स्तर पर लगातार चिंताजनक चुनौती बनकर सामने उभर रही है।इससे बचाव के लिए वर्तमान में पूरे देश में लाकडाउन धारा 144 के साथ संपूर्ण सीमाओं को सीलबंदी जैसे कदमों को शासन ने आमजनो को इससे सुरक्षित रखने के लिए लागू करने के साथ सुरक्षा मानकों का पालन करने पर विशेष प्राथमिकता दी जा रही है।इसी कड़ी में सरगुजा संभाग के मुख्यालय सरगुजा, बलरामपुर,सूरजपुर व कोरिया जिलें में

जमिनी हकीकत पर गौर करें तो

अपनी जान दाव पर लगा लोगों की सुरक्षा के लिए चौबीसों घंटे सक्रिय पुलिस विभाग, जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग, स्वच्छता सें जुड़े विभाग सहित अन्य सक्रिय रूप से अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।लेकिन हमेशा की तरह कुछ मच्छलियां तलाबों को गंदा करती हैं, कुछ ऐसी ही स्थिति इस गंभीर दौर में भी चल रहा है।जहां लोगों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए तैनात कुछ विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों की सहमति से तस्करी जैसे कार्यो के लिए यह समय सबसे ज्यादा सुरक्षित बन रहा है। यह आरोप हमारा नहीं है वरन कई कार्यवाही में उभर कर सामने आई है. जिसके बाद अपने घरो पर नियमों का पालन करने वाला आम रहवासी के बीच यह संदेश काफी तेजी से प्रसारित हो रहा है कि जब पहरेदार ही साझेदार बन जाएं तो फिर क्या होगा यह आप भी खुद समझ सकते हैं।बहरहाल आपको बताते चलें की इस समय में काला हीरा कहे जाने वाले कोयले की तस्करी फिर से कोयला खदानों सहित अवैध खनन के माध्यम से स्थानीय तौर पर शासन के समझ निजी उपयोग के आड़ में करोड़ों रुपये का राजस्व की क्षति करनें वाले ईट्ट भठ्ठो में बड़ी आसानी से खपने के साथ दस्तावेजों में उर्जा जैसी जरूरतों के लिए परिवहन में मिले छूट का फायदा उठाकर जिलें सहित प्रदेश के अंदर और पड़ोसी राज्यों में कोल माफिया ऐसे चंद अधिकारियों कर्मचारियों के रहमोकरम पर बड़ी आसानी से अंजाम दे रहे हैं।वहीं दूसरी तरफ इसका दुष्प्रभाव कहे या परिणाम नियमित तौर पर अपने दायित्वों को सजगता सें निभाने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों के मनोबल व छवि को धूमिल कर रहा है।यह तस्करी केवल कोयले तक ही सीमटा नहीं है वरन रोजमर्रा की जरूरत से जुड़े समाग्रीयों को भंडारण कर बाजार में इसकी उपलब्ता लाकडाउन में परिवहन नही होनें का बहाने से अधिक दर पर छोटे व लघु व्यपारियो को विक्रय कर इसका प्रभाव आम रहवासी पर सीधा असर पड़ रहा है।इसके अलावा अन्नदाता कहे जाने वाले किसानों के साथ तो दोहरी मार का असर को घटाने की जगह बढाने में लगा हुआ है।एक तो मौसम की बेरूखी दूसरी लाकडाउन सें परिवहन के संसाधनों की कमी असर डाल ही रहा हैं तो दूसरी तरफ सबसे बड़ी मार समान्य शब्दों में कहे जाने वाले कोचियों दलालों नें अपनी मनमानी सें औने पौने दाम पर किसानों की उपज चाहे वह सब्जियां हो या रवि की फसलों में शामिल उपज इन्हें मंडियों में पहुचने पर संगठित रूप से कोचियों द्वारा छोटे व्यपारियो की उपस्थिति नही होनें का फायदा उठाकर पहरेदारों की साझेदारी सें उपज की खरीदारी के दौरान अपनी मनमर्जी अनुसार किसानों को मजबूर कर उपज को औने पौने दामों पर खरिदने के बाद बाजारों में अच्छे दामों पर इनकी बिक्री किया जा रहा है।ऐसे अन्य भी कई पहलू है जो इस लाकडाउन में नियमों के पालन करना एक आम रहवासी के लिए जरूरी है लेकिन इन तस्करों, कोचियों, दलालों के लिए चंद पैसों की लालच में अपने दायित्वों से समझौता कर हर परिस्थितियों को अपने निज स्वार्थ सिद्धि के लिए चर्चित लोकसेवक कहे जाने वालें अधिकारियों कर्मचारियों के वजह से ताक पर रखकर करनें की खुली छूट मिलना एक अहम चुनौती ना केवल वर्तमान समय में शासन के आलाधिकारीयो, पुलिस विभाग ,कृषि उपज मंडी, खाद्य विभाग समेत कुछ अन्य विभागों के अधिकारियों समक्ष दीपक तले अंधियारे वाली कहावत चरितार्थ करते हुए,केंद्र व राज्य सरकार द्वारा आम रहवासियों को प्रभाव से बचाने के तमाम कवायदों पर पानी फेरने वाला बनकर सामने आ रहा है।अब इस गंभीर हालत में अपने ही विभागों के चंद चर्चित अधिकारीयों कर्मचारियों पर अंकुश लगाने में कितना आलाधिकारी सक्रिय होते है, यह एक अबुझ पहेली को सुलझाने जैसी है जो सुलझती है या हमेशा की तरह राजनीतिक, पैसे और पहुंच की रसुख के बदौलत अपने ही मनमर्जी करनें वालें सफेदपोश तस्करों, दलालों, कोचियों और अधिकारीयो के साठगांठ को तोड़कर वास्तविक रूप से आम रहवासियों के लिए गंभीरता कब होगा इसपर निगाहें सभी की टीकी हुई है।