दानवीर राजर्षि ठा. मदनसिंह दांता की 100 वीं जयंती आज

दांतारामगढ़। ठा. मदनसिंह दांता ने भारत चीन युद्ध व सन् 1968 के बाढ़ के समय मिशाल कायम की थी। लॉकडाउन के दौरान आज इनके पुत्र ठा. करण सिंह आमजन के मददगार बनकर दानवीरता की मिशाल को कायम रख रहे हैं। पिछले कई दिनों से दांता ग्राम के गरीब जरुरतमन्द परिवारों को पीने के पानी के टेंकर व भोजन सामग्री वितरण कर देश में छाये दुःख में जनता की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं। आप ऐसे ही मानवतावादी कार्य करते रहे हैं। ग्राम पंचायत दांता के आमजन आपके सहयोग की प्रशंसा करते हैं।

एक सौ वर्ष पहले सन् 1919 में रामनवमी को दांता गढ़ में दानवीर, वीरशिरोमणी, स्व. राजर्षि दांता ठाकुर मदनसिंह का जन्म हुआ था। दांता गढ़ में ठा. गंगा सिंह जी के राजशाही ठाठ थे। गढ़ में नोपत बजती थी। ठा. मदनसिंह के जन्म पर तोपों के धमाको से आसपास के गांवों में जन्म की सूचना दी गई एवं बहुत बड़ा जश्न मनाया गया। सीकर जिले के दांतारामगढ़ के ग्राम दांता में आपका जन्म कछवाहा वंश की शाखा गिरधर दासोत शेखावत में ठा. गंगासिंहजी के यहां माता सूरज कंवर की कोख से सन् 1919 में रामनवमी को हुआ। आपका जन्म नाम हमीरसिंह था। परंतु बाल्यकाल में ही उनकी बुआसा स्नेहवंश इनको मदनसिंह कहा करती थी तभी से इनको इसी नाम से पुकारा जाने लगा। आपने मेयो कॉलेज अजमेर में शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा के साथ साथ आप खेलकूद में भी बहुत होशियार थे। आपने सन् 1934 में कॉलेज में ट्राॅफी जीती। आपने शिक्षा प्राप्त के तत्पश्चात फौज सवाईमानसिंह गार्ड में द्वितीय लेफ्टिनेंट का पद संभाला। द्वितीय विश्वयुद्ध में आप फौज के साथ तीन वर्ष तक यूरोप में रहे। विदेश से लौटने के बाद आपका विवाह ठा. ओनारसिंह जी कचोलियो की सुपुत्री नान्द कंवर के साथ हुआ। आपके पांच पुत्र ठा. स्व.ओमेंद्र सिंह, दिलीप सिंह, जितेन्द्र सिंह, करण सिंह, राजेंद्र सिंह व तीन पुत्रियां बाईसा चन्द्रामाणी, बाईसा मोहिनी कुमारी, बाईसा प्रभावती कुमारी हैं। आपके पिताश्री ठा. गंगा सिंह का रविवार, 2 जुलाई सन् 1944 को निधन होने पर 14 जुलाई सन् 1944 को दांता गढ़ में आपका राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। आप चालीस गांवों के तीन साल तक राजा रहे। अंग्रेजों के भारत छोड़ने पर 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि की समाप्ति पर भारत की स्वाधीनता की घोषणा की गई तब तो आप सार्वजनिक क्षेत्र में पहले की अपेक्षा अधिक रूचि लेने लगे। उस दौरान दांता गौशाला की स्थापना के लिए आपने गौशाला के लिए दो सौ बीघा जमीन दान की थी। श्री पटेल जी ने आपको दिल्ली बुलाया तथा राम राज्य सभा छोड़ने की बात कही लेकिन आप दृढ़ रहे। जोधपुर के महाराजा हनुमंत सिंह की प्रेरणा से रामराज्य परिषद का गठन किया। उन्ही दिनों सायर कुंवरी बाईसा जो ब्रह्मचारिणी थी, उनको हुड़ील चारणवास से लाकर अपने माला वाले महल को करणीकोट मंदिर बना दिया और माला के नीचे की पांच सौ बीघा जमीन दान कर दी। इसके कुछ समय बाद चमत्कारी परमहंस बाबा परमानन्द जी ने दांता में माघ शुक्ला पूर्णिमा की मध्यरात्रि को महाप्रयाण हुआ। सन् 1951 की उस रात्रि में रातभर दांता में भजन कीर्तन हुए और सुबह दांता ठा. मदनसिंह व गांव के करीब पांच सौ लोग बाबा को उनके पैतृक गांव लोसल लेकर गए । सन् 1955 में आपको अटल बिहारी वाजपेयी ने राजस्थान जनसंघ का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। सन् 1962 मे जब भारत चीन युद्ध चल रहा था तब हिन्दी चीनी भाई-भाई कहकर चीन ने पीठ मे जब खंजर घोंपा था उससे पूरा देश आहत था। युद्ध के दौरान ही तत्कालीन रक्षामंत्री वी. के. कृष्णमेनन 27अक्टूबर सन् 1962 को राजस्थान की राजस्थानी जयपुर आए थे। रामनिवास बाग में मेनन की सभा चल रही थी तभी ठाकुर मदनसिंह जी मंच पर आए और मेनन को उस जमाने में एक लाख एक हजार रुपये और एक सोने की मूठ की तलवार भेंट की। इसके साथ ही सभा में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। देशभक्ति के गगनभेदी नारे गूंज उठे। इसी सभा के दौरान ठाकुर साहब ने घोषणा की कि मैं अपने सौलह वर्षीय पुत्र ओमेंद्र सिंह को भी मातृभूमि की रक्षार्थ प्राण न्यौछावर करने के लिए अर्पित करता हूं। राष्ट्र सुरक्षा कोष में आर्थिक सहायता देने वाले प्रदेश के पहले और पुत्र अर्पित करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। बीबीसी लंदन ने भी इस कार्य की सराहना की गई। वे अपने नाम के अनुरूप ही दानवीरता के धनी थे। दया, उदारता तथा जनता के प्रति आत्मय भाव उनका स्वभाव था। उनका देहावसान 82 वर्ष की आयु में हुआ। उन्होंने दांता पर 3 वर्ष तक शासन किया। आज वो दीप बुझ चुका हैं। उनका सूर्य अस्त हो गया हैं। लेकिन फिर भी उनके द्वारा फैलाया गया यश व कीर्ति का प्रकाश आज भी कायम हैं। उस दीप में त्याग की बत्ती व सेवा का घी जलता था। आंधी के थपेड़े भी उसे नही बुझा सके। वह योद्धा जीवनभर लड़ता रहा । उसने अपना सब कुछ अपने ग्राम के विकास के लिए लुटा दिया। वह कर्मवीर अपने कर्म से कभी विमुख नही हुआ। वह मसीहा जिसने बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदा में 21 अगस्त सन् 1968 में अपना सबकुछ दांव पर लगाकर एक सच्चे राजा की तरह अपनी प्रजा की रक्षा की। सादा जीवन उच्च विचार ही इस महान् विभूति के आभूषण थे। दांतारामगढ़ विधानसभा के सन् 1957, 1967 व 1977 में तीन बार विधायक रहने का गौरव हासिल किया था। पूरे देश प्रदेश में जब भूस्वामी आंदोलन चलाया गया तब दांता ठाकुर मदनसिंह जी ने ही आंदोलन का सफल संचालन किया था। अंत में 23 दिसंबर सन् 2001 को दांता ठाकुर मदनसिंह जी इस दुनिया को अलविदा कह गए। इनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इनकी शवयात्रा में भैरोंसिंह शेखावत, चौधरी नारायण सिंह, घनश्याम तिवाड़ी, विरेंद्र सिंह, प्रतापसिंह खाचरियावास, दामोदर प्रसाद शर्मा सहित बडे़-बड़े नेतागण एवं दांतारामगढ़ क्षेत्र के हजारों लोगों ने उन्हे भावभीनी श्रद्धांजलि दी। पूरा गांव शोक की लहर में खो गया। जो दूसरो के लिए जीते है वे कभी मरते नही अमर हो जाते है । ऐसी महान विभूति के लिए जितने भी शब्द लिखे जाए उतने ही कम हैं। ठाकुर साहब की 100वीं जयंती पर लिखासिंह, प्रदीप शेखावत व अतुल शर्मा द्वारा डाॅक्यूमेंट्री बनाई गई हैं।

संकलनकर्ता - लिखासिंह सैनी, दांता।
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