जिला अस्पताल मुंगेली की शर्मनाक लापरवाही, रात 3:30 बजे 3.5 साल का बच्चा तड़पता रहा, डॉक्टर गायब, दवा काउंटर पर अवैध वसूली; दो दिन पहले ही कलेक्टर ने दिए थे सुधार के आदेश

मुंगेली । तारीख 30 नवंबर 2025, समय रात लगभग 3:30 बजे, जिला अस्पताल की अव्यवस्था ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कागजों पर हो रही समीक्षा और नोटिसों का जमीन पर कोई असर नहीं हुआ है। पेट दर्द से तड़प रहे साढ़े तीन साल के मासूम बच्चे को लेकर जब परिजन मुंगेली जिला अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें इलाज के नाम पर केवल भटकना, अव्यवस्था, संवेदनहीनता, और अवैध वसूली ही मिली।पहला झटका - इमरजेंसी डॉक्टर ने गलत जगह भेजा
इमरजेंसी वार्ड में मौजूद महिला डॉक्टर को जब बच्चे की गंभीर हालत बताई गई, तो उन्होंने बिना देखे ही माता?पिता को कहा, बगल वाली बिल्डिंग के कमरा नंबर 57 में जाओ।लेकिन जब परिजन 57 नंबर कक्ष पहुँचे, तो वहाँ मौजूद नर्स ने बिल्कुल उलट कहा - यहाँ कोई डॉक्टर नहीं है, बच्चे को तो इमरजेंसी में ही देखते हैं, उन्होंने कहा हम 18 दिनों तक के बच्चों को ही देखते है, आगे कहा वहाँ की डॉक्टर ने गलत बताया है। एक ही अस्पताल में दो विपरीत जवाब-जिससे साफ है कि इमरजेंसी में मौजूद डॉक्टर अपने कर्तव्य के प्रति गंभीर नहीं थीं।दूसरा झटका - डॉक्टर इमरजेंसी से गायबवापस इमरजेंसी लौटने पर पाया कि बच्चों की डॉक्टर वहाँ थी ही नहीं।महिला डॉक्टर जो बच्चे की इलाज नहीं करती ने डॉक्टर को फोन मिलाने की कोशिश की, लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ।कहा गया, 5 मिनट में बुलाती हूँ। परिजन दस?पंद्रह मिनट तक वेटिंग एरिया में बैठे रहे, लेकिन डॉक्टर नहीं आईं।फिर बच्चे की पर्ची कटवाने के बाद भी स्थिति नहीं बदली।तीसरा झटका - अभद्रता और संवेदनहीनताकाफी देर बाद महिला डॉक्टर ने बच्चे को देखते हुए ही किसी बच्चे की डॉक्टर से कॉल मिलाया और बात करते हुए दवाई की लिखी उससे कहा यहाँ कोई बकवास आया है।एक सरकारी डॉक्टर का यह शब्द अस्पताल की संवेदनशीलता का स्तर सामने लाता है। इसके बाद उन्होंने सिर्फ एक दवाई लिखी और कहा, डॉक्टर नहीं आया है, सुबह दिखा लेना।रात में दर्द से कराहती बच्चे को सुबह आना कहना न केवल गैरजिम्मेदाराना है बल्कि सबसे बड़ी चिकित्सकीय लापरवाही है।चौथा झटका - दवा काउंटर पर अव्यवस्था और अवैध वसूलीदवाई लेने जब परिजन अस्पताल के बाहर परिसर के दवा काउंटर पहुँचे, तो वहाँ का कर्मचारी सोया हुआ मिला।आवाज़ देने पर उठा, एक दवाई निकालकर 60 रुपये मांगे।जब परिजन ने रसीद मांगी तो साफ कहा,रसीद नहीं मिलेगी।और दवाई वापस रख ली। सरकारी अस्पताल के भीतर रसीद के बिना दवा बेचना स्पष्ट अवैध वसूली और भ्रष्टाचार हैमजबूरी में निजी अस्पताल जाना पड़ा
सरकारी अस्पताल की अव्यवस्था से तंग आकर पत्रकार अरविंद बंजारा अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर रात में ही निजी अस्पताल गए, जहाँ बच्चे का उपचार कराया है।अब बड़ा सवाल - कलेक्टर की कार्रवाई के बाद भी यह हाल क्यों?दो दिन पहले 28 नवंबर 2025 को जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा समाचार जारी किया गया था कि, कलेक्टर कुंदन कुमार ने सीएमएचओ कार्यालय का औचक निरीक्षण कर सीएमएचओ सहित चार अधिकारियों को नोटिस जारी किए थे। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में लंबित फाइलों, उपस्थिति, कार्यशैली और लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई थी।
लेकिन सिर्फ 48 घंटे बाद ही जिला अस्पताल की इमरजेंसी का यह हाल सामने आ जाना बताता है कि, सुधार केवल कलेक्टर के नोटिस तक सीमित रह गया।
इमरजेंसी सेवा अव्यवस्था के दलदल में डूबी हुई है
अस्पताल में कोई अनुशासन नहीं,कई कर्मचारी और डॉक्टर अपनी मनमानी चला रहे हैं
मरीजों की तकलीफ किसी को महसूस नहींकौन-कौन सी लापरवाहियाँ साफ दिखीं
इमरजेंसी डॉक्टर द्वारा गलत जानकारी देना
बच्चों की डॉक्टर का अनुपस्थित होना
मरीज को 10?15 मिनट इंतजार कराना
मरीज व परिजनों से अभद्र व्यवहार
गंभीर रूप से बीमार बच्चे को सुबह आना कहना
दवा काउंटर पर सोता हुआ कर्मचारी
रसीद के बिना दवा देने की कोशिश (अवैध वसूली)
अस्पताल में कोई मॉनिटरिंग नहींपत्रकार की माँग तत्काल जांच और कार्रवाई होपत्रकार अरविंद बंजारा ने इस घटना की तत्काल जांच,इमरजेंसी स्टाफ पर कड़ी कार्रवाई,और दवा काउंटर पर चल रही अवैध वसूली पर सख्त कार्यवाही की मांग की है। उनका कहना है कि,जिला अस्पताल में आम जनता नहीं, बल्कि सिस्टम तड़प रहा है। सुधार सिर्फ कागजों पर है, ज़मीनी सच्चाई अब भी दर्दनाक है।मुंगेली की स्वास्थ्य व्यवस्था बीमार है, इलाज प्रशासन को करना होगायह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि हर उस नागरिक की है जो रात के समय सरकारी अस्पताल की ओर उम्मीद लेकर जाता है। जब मासूम बच्चों तक को सही इलाज नहीं मिलता, तो व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा होता है।सरकार और प्रशासन को अब कड़े और ठोस कदम उठाने ही होंगे, वरना जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था और भी बीमार होती जाएगी।