स्मार्ट मीटर बना उपभोक्ताओं के लिए जी का जंजाल

बिर्रा/जांजगीर-चांपा। गरीब और मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को राहत देने के नाम पर लगने वाले स्मार्ट मीटरअब उपभोक्ताओं के लिए किसी जंजाल से कम नहीं साबित हो रहे। सरकार ने बड़े जोर-शोर से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्मार्ट मीटर लगाने की योजना शुरू की थी, ताकि बिजली खपत की सटीक माप और पारदर्शी बिलिंग सुनिश्चित हो सके। लेकिन वास्तविकता यह है कि उपभोक्ता राहत की जगह परेशानियों के दलदल में फंसते नजर आ रहे हैं।

गाँव-गाँव और शहर-शहर में लग रहे स्मार्ट मीटर अब गरीब परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ा रहे हैं। पहले जहाँ उपभोक्ता को हर महीने कुछ सौ रुपए का बिल देना पड़ता था, वहीं अब हजारों रुपए के भारी-भरकम बिल थमा दिए जा रहे हैं। इस स्थिति ने उपभोक्ताओं को स्तब्ध और आक्रोशित कर दिया है।

साहू मोहल्ले का मामला: एक महीने में 5 हज़ार का बिल

बिर्रा के साहू मोहल्ले निवासी **अड्डू केवट** के घर का उदाहरण सबसे बड़ा सबूत है। उनके घर में घरेलू कनेक्शन है और वे नियमित रूप से बिजली बिल का भुगतान करते रहे हैं। लेकिन स्मार्ट मीटर लगने के बाद केवल एक महीने में 800 यूनिटबिजली खपत दर्ज हुई और बिल सीधे ₹5,080आ गया।

अड्डू केवट ने बताया कि उनके घर में दो पंखे, एक बल्ब और टीवी के अलावा कोई बड़ा उपकरण नहीं है। फिर भी मीटर ने 800 यूनिट खपत दिखा दी। उन्होंने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि "हम गरीब आदमी हैं, दिनभर मजदूरी करते हैं। घर पर इतना उपकरण भी नहीं कि इतना ज्यादा बिजली खर्च हो। फिर यह बिल कैसे आ गया?"

वे इस शिकायत को लेकर कनिष्ठ यंत्री (जेई) के कार्यालय भी पहुँचे, जहाँ उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि विभागीय टीम घर जाकर मीटर की जांच करेगी। लेकिन हफ्तों बीत जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

बढ़ते बिलों से हिल गई गरीब परिवारों की नींव

सिर्फ अड्डू केवट ही नहीं, बल्कि कई अन्य उपभोक्ता भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। जिन घरों में पहले ₹400 से ₹600 तक का बिल आता था, वहीं अब ₹2000 से ₹5000 तक के बिल आने लगे हैं। इससे गरीब परिवारों की कमर टूट गई है।

ग्रामीण उपभोक्ताओं का कहना है कि वे पहले ही महंगाई की मार से जूझ रहे हैं। घर चलाना मुश्किल हो रहा है और अब बिजली का इतना बड़ा बोझ कैसे उठाएँ? मजदूर वर्ग, किसान और दिहाड़ी करने वाले उपभोक्ता सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

सरकार के दावों और जमीनी हकीकत में फर्क

स्मार्ट मीटर लगाने का उद्देश्य था?

1. बिजली चोरी पर अंकुश लगाना।

2. उपभोक्ता को सही और पारदर्शी बिलिंग उपलब्ध कराना।

3. उपभोक्ता को ऑनलाइन रीडिंग और मोबाइल एप के जरिए सुविधा देना।

4. सस्ती दरों पर बिजली उपलब्ध कराना और बिलिंग विवाद खत्म करना।

लेकिन जमीनी स्तर पर उपभोक्ता न तो पारदर्शिता देख पा रहे हैं और न ही राहत। मीटर के गलत रीडिंग और तकनीकी खामियों के चलते उन्हें उल्टे और भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

उपभोक्ताओं का गुस्सा और चेतावनी

गाँव-गाँव में उपभोक्ता खुलकर विरोध करने लगे हैं। उनका कहना है कि अगर जल्द ही इस समस्या का हल नहीं निकाला गया तो वे बिजली बिल का भुगतान नहीं करेंगे। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि यह गरीबों की जेब पर सीधा डाका है।

कुछ उपभोक्ताओं ने तो यहाँ तक कह दिया कि "अगर सरकार गरीबों के लिए राहत नहीं दे सकती तो स्मार्ट मीटर निकालकर फिर से पुराने मीटर लगा दे।"

विशेषज्ञों की राय

ऊर्जा मामलों के जानकारों का मानना है कि स्मार्ट मीटर लगाना बुरी योजना नहीं है, लेकिन इसे लागू करने में गंभीर लापरवाही और जल्दबाजी की गई है।

1. मीटरों की गुणवत्ता पर संदेह है।

2. तकनीकी परीक्षण के बिना इन्हें बड़े पैमाने पर लगाया गया।

3. ग्रामीणों को स्मार्ट मीटर की कार्यप्रणाली समझाए बिना जबरदस्ती मीटर लगाए जा रहे हैं।

4. निगरानी और शिकायत निवारण की उचित व्यवस्था नहीं है।

बिजली विभाग की भूमिका पर सवाल

बिजली विभाग दावा करता है कि स्मार्ट मीटर से उपभोक्ताओं को लंबे समय में फायदा होगा। लेकिन विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

* उपभोक्ताओं की शिकायतों पर समय पर कार्रवाई नहीं होती।

* फोन और लिखित शिकायत दर्ज कराने के बावजूद समाधान नहीं मिलता।

* उपभोक्ताओं को उल्टे यह कहकर टाल दिया जाता है कि "मीटर सही है, खपत ज्यादा हो रही है।

उपभोक्ताओं की माँगें

1. मीटर की तकनीकी जाँचभी कराई जाए।

2. स्वतंत्र एजेंसीसे मीटर की सत्यता की जाँच हो।

3. गलत बिल को रद्द कर औसत खपतके हिसाब से सही बिल दिया जाए।

4. गरीब और मजदूर वर्ग के लिए विशेष रियायती दरलागू की जाए।

5. शिकायत निवारण की तेज और पारदर्शी व्यवस्थाहो।

राजनीति भी गरमाई

यह मुद्दा अब धीरे-धीरे राजनीतिक रंग भी लेने लगा है। विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा सरकार गरीबों का भला करने का दावा करती है, लेकिन असलियत में गरीबों की जेब काट रही है।

कांग्रेस नेताओं ने इसे "लूट की नीति" बताते हुए कहा कि स्मार्ट मीटर योजना बंद की जाए और उपभोक्ताओं को राहत दी जाए।

पत्रकार की नज़र से

अगर गरीब उपभोक्ता हर महीने केवल बिजली के नाम पर 3 से 5 हजार रुपए देने लगे तो उनके परिवार का गुजारा असंभव हो जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह तुरंत इस योजना पर पुनर्विचार करे। ग्रामीणों की शिकायतों को गंभीरता से सुना जाए और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई हो।

स्मार्ट मीटर की नीति तभी सफल होगी, जब यह उपभोक्ताओं को वास्तविक राहत दे, न कि बोझ। फिलहाल यह योजना राहत से ज्यादा जंजाल बनती जा रही है।

निष्कर्ष

स्मार्ट मीटर योजना के पीछे की मंशा चाहे अच्छी रही हो, लेकिन इसका क्रियान्वयन पूरी तरह असफल दिख रहा है। उपभोक्ताओं पर लगातार भारी बिल का बोझ डाला जा रहा है, जिससे उनका विश्वास सरकार और बिजली विभाग से उठता जा रहा है।

अगर सरकार ने समय रहते इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह जनाक्रोश बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है। उपभोक्ता स्पष्ट कह रहे हैं कि ?हमें राहत चाहिए, जंजाल नहीं।?

Citiupdate के लिए समीर खूंटे की रिपोर्ट...