विरोध राजनैतिक हो, तथ्यों से परे मत जाइए अखिलेश जी

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी ने कल कहा: ?अगर इनके मामा मठ में न होते। .. उनके मामा न होते तो शायद वो भी न होते।" अगर विषय पूर्ण रूप से राजनैतिक होता तो कोई ख़ास मतलब ही नहीं था, परंतु अखिलेश जी का कहना हैं कि ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज, योगी आदित्यनाथ के मामा थे इसलिए अवेद्यनाथ जी महाराज ने योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठाधीश्वर बनाया। लल्लनटॉप वाले सौरभ द्विवेदी कहते है कि चाचा थे, गाहे-बगाहे कुछ और लोग कुछ और पारिवारिक रिश्ते निकालते हैं।

गोरखनाथ मठ मेरे लिए श्रद्धा और शोध का विषय हैं इसलिए आज इस बात को ध्यान से समझते हैं। शशि प्रकाश सिंह बताते है मैंने इस विषय पर २ डाक्यूमेंट्री बनाई और कई संगोष्ठी करा चुका हूँ। हाँ, यह सत्य हैं कि महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज (संन्यास से पूर्व नाम:कृपाल सिंह बिष्ट, जन्म: 1921, ग्राम:कांडी, जिला: पौढ़ी-गढ़वाल) और योगी आदित्यनाथ (संन्यास से पूर्व नाम:अजय सिंह बिष्ट, जन्म: 1972, ग्राम:पंचूर, जिला: पौढ़ी-गढ़वाल) दोनों लोगो का जन्म एक ही जिले में हुआ था। महन्त अवेद्यनाथ जी से ब्रह्मलीन होने से पूर्व जब उनके बचपन की स्मृतियों पर चर्चा की गयी तो अपनी चिर-परिचित दिव्य मुसकान के साथ वे बोल पड़े कि संन्यासी का बचपन नहीं होता। दीक्षा के साथ ही पिछले जीवन से उसका नाता टूट जाता है और वह नया जीवन प्राप्त करता है किन्तु अनेक बार के आग्रह पर एक क्षण मौन के पश्चात् महन्तजी अपने बचपन की स्मृतियों में लौटते हुए बोले थे, "मुझे अपनी माँ का नाम याद नहीं है, क्योंकि जब मैं बहुत छोटा था मेरे माता-पिता की अकाल मृत्यु हो गयी। मैं दादी की गोद में पल रहा था। उच्चतर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा पूर्ण होते ही दादी का भी स्वर्गवास हो गया। परिणामतः मेरा मन इस संसार के प्रति उदासीन होता गया तथा वैराग्य का भाव मन में घर करता गया।"

महन्तजी कहते थे कि इसी वैराग्य एवं विरक्ति की भावनानुभूति में गृहत्याग के साथ ऋषिकेश में संन्यासियों का साथ मिला। सत्संग से भारतीय धर्म-दर्शन में अध्ययन की रुचि विकसित हुई।

महन्तजी से जब यह जानना चाहा कि गृह त्याग के बाद वे कितनी बार अपने पैतृक गाँव गए, महन्तजी का जवाब विस्मयकारी था। उनके इस प्रश्न के उत्तर में ही बाल्यावस्था से ही महन्तजी की निवृत्तिमार्गी प्रवृत्ति का पता चल जाता है। संन्यासी होने के बाद वे एक बार अपने पितृगृह गए। वह भी अपने नैतिक एवं धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति हेतु। महन्तजी बताते थे" मेरे पिताजी तीन भाई थे। मैं अपने पिताजी का इकलौता पुत्र था। गृहत्याग एवं संन्यास के दौरान एक बार मेरे एक चाचा ऋषिकेश आये थे। दूसरे चाचा के मन में यह भ्रम उत्पन्न हो गया कि मैं अपनी पूरी सम्पत्ति एक ही चाचा को न लिख दूँ। मुझे अपने हिस्से की पूरी पैतृक सम्पत्ति दोनों चाचा को बराबर देनी थी, अतः मैं इसी कार्य हेतु गया। न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होकर मैंने अपनी पैतृक सम्पति दोनों चाचा के नाम बराबर-बराबर कर देने की अपनी संस्तुति दी तो मजिस्ट्रेट ने कहा कि "आप अभी किशोर हैं, संन्यासी जीवन बड़ा कष्टमय होता है, कल पुनः गृहस्थ जीवन में लौटने की आपकी इच्छा हो सकती है, अतः अपनी सम्पत्ति देने से पूर्व एक बार और सोच लीजिए।" महन्तजी ने उसी समय मजिस्ट्रेट को जो उत्तर दिया वह इस बात का स्पष्ट साक्ष्य है कि वे पूर्णतः संन्यासी स्वभाव प्राप्त कर चुके थे। उन्होंने कहा- "मैं अतिशीघ्र इस सम्पत्ति से छुटकारा पाना चाहता हूँ, ताकि संन्यास जीवन से विमुख होने की सम्भावना ही शेष न रहे।" महन्तजी के दृढ़ निश्चय एवं तेजस्वी मुखमण्डल की चमत्कृत आभा से निरुत्तर मजिस्ट्रेट ने इनकी सम्पत्ति दोनों चाचा के नाम स्थानान्तरित कर दी। इस प्रकार संन्यासी जीवन से पूर्व के अपने जीवन से पूर्णतः नाता तोड़कर धार्मिक आध्यात्मिक दुनिया की ओर बढ़े उनके कदम फिर वापस नहीं मुड़े।

यहाँ पर तीन बाते महत्वपूर्ण हैं पहली बात जब महन्त अवेद्यनाथ जी अपने पिताजी के इकलौते पुत्र थे तो वो मामा कैसे बन गए। दूसरी बात जिस इंसान ने युवा अवस्था में संन्यास और विरक्तभाव धारण कर लिया हो, अपने घर परिवार सम्पत्ति सब से विरक्त हो, वो अगर दूर के भी किसी रिश्ते में मान लिया जाए(यदपि इसका कोई प्रमाण नहीं है) मामा लगते हो तो क्या ये ऐसे संन्यासी पारिवारिक रिश्तों के मोह में आ सकते हैं और तीसरी बात दोनों लोगो की उम्र में 51 साल का अंतर है। उस समय जब लोगो की शादी थोड़ी कम उम्र में होती थी तो 51 साल में 2 पीढ़ियों का अंतर बहुत लाज़मी हैं। बाक़ी रही विरोध की बात तोअखिलेश जी आप योगी जी का राजनैतिक विरोध करे और ज़्यादा दमदारी से करे परंतु किसी महान सन्यासी को पारिवारिक रिश्तों में जोड़ करे उसकी साधना और सनातन का अपमान न करे। महन्त अवेद्यनाथ जी का त्याग और तेज अपने आप मे ऐसा था कि उनके समकालीन देशभर के सारे संत महात्मा और चार प्रधानमंत्री अपनी बात कहने-मनवाने और आजीवन श्री रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति की अगुवाई करने के लिए जाने जाते हैं।