इमाम अली शहादत की याद में इमामबारगाहाे मे मजलिस अज़ा व शबीह ऐ ताबूत बरामद हाेया

शहादत 21 रमजान (माहे रमजान) सन् 40 हिजरी को इराक के कूफा शहर में हुई थी। उन्हें सुबह की नमाज में अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने तब शहीद किया जब मौला नमाज की पहली रकअत का सजदा कर रहे थे। हजरत अली का जन्म मक्का शहर में हुआ था। वे शिया मुस्लिम समुदाय के पहले इमाम थे। वहीं हजरत मोहम्मद पैगंबर के बाद सुन्नी मुसलमानों के चौथे खलीफा भी थे। हजरत अली उस वक्त इस्लाम की मदद के लिए आगे आए जब इस्लाम का कोई भी हमदर्द नहीं था। उन्होंने इस्लाम धर्म को आम लोगों तक पहुंचाया। उनकी इसी सेवाभाव को देखते हुए हजरत मुहम्मद साहब ने उन्हें खलीफा मुकर्रर किया। उन्होंने शांति और अमन का पैगाम दिया था। उन्होंने कहा था कि इस्लाम इंसानियत का धर्म है और वह अहिंसा के पक्ष में है।

हजरत अली ने हमेशा राष्ट्रप्रेम और समाज से भेदभाव हटाने की कोशिश की तथा यह भी कहा था कि अपने शत्रु से भी प्रेम करो तो वह एक दिन तुम्हारा दोस्त बन जाएगा। उनका कहना था कि अत्याचार करने वाला और उसमें सहायता करने वाला तथा अत्याचार से खुश होने वाला भी अत्याचारी ही होता है।

21 रमजान काै हज़रते अली कुफे मै शहीद हुऐ जिनकी याद मुस्लिम समाज के लोग आज भी मनाते हैं