आख़िरी फातिहा के साथ उर्स का हुआ समापन

गोंडा। उर्स ए मखदूम इकराम मीना शाह के तीन दिवसीय उर्स का कार्यक्रम महफिले समा एवं कुल शरीफ के उपरांत संपन्न हुवा। बाद नमाजे असर गागर व चादर का जुलूस एम0एस0आई0 टी0एम0 के प्रांगण से उठकर दरबार ए आलिया मीनाईया में पेश हुवा।
बाद नमाज इशा महफिले समा का आयोजन किया गया जिसमें मुल्क के प्रख्यात कव्वालो ने अपने कलाम से लोगों को आनंदित किया। साकिब आसिफ अली फैजाबादी ने पढ़ा की "तेरे ही करम से हरलुत्फ मेरी जिंदगी है, मेरे मीना की गुलामी मेरे काम आ गई "
फैजान क़ादरी ने पढ़ा कि "दयारे यार में सर को झुकाए बैठे है,
करम की आस सनम से लगाए बैठे हैं" दिलशाद साबरी ने पढ़ा कि तुमको पाया है जमाने से किनारा करके, तुम बदल देते हो किस्मत को इसारा करके" इनके अलावा ऐनुल हक एंड पार्टी, करीमुल्ला एंड पार्टी ने अपना अपना कलाम पेश किया।
बाद नमाज ए फजर मजार शरीफ का ग़ुस्ल किया गया उर्स के अंतिम दिन दरबारे आलिया मीनाईया के प्रांगण में कुल की महफिल सज्जादा नशीन शाह जमाल मीना की सरपरस्ती में आयोजित हुई इस अवसर पर मौलाना कारी निसार मीनाई, मुकीम साहब की तकरीर हुई, कारी समसुद्दीन साहब, कारी मुमताज साहब आदि ने नात व मनकबत प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर सज्जादा नशीन अल्हाज शाह जमाल मीना ने उपस्थित विभिन्न जातियों एवं धर्मों के अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रेम के मार्ग से कठिन से कठिन मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं। सूफी संतों ने सदैव प्रेम की शिक्षा दी उन्होंने कहा कि खुदा दिलो को देखता है और उसी अनुसार नवाजता है। भाईचारा कायम कर ही हम तरक्की कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सूफी संतों ने कभी वर्ग विभेद नहीं किया जो भी उनके दर पर गया तो उन्होंने उनकी मदद की। अपने समर्थकों को स्वच्छ आचरण करने की हिदायत दी
तदोपरांत उपस्थित लोगों को तबर्रुक (प्रसाद) वितरण किया गया इस कार्यक्रम में मुल्क के विभिन्न क्षेत्रों- प्रांतों के लोगों ने भाग लिया। इस अवसर पर डॉ लायक अली,चाचा फ़कीर मोहम्मद,हाशिम मीनाई, इशरत अज़ीज़ मीनाई, नूर अली मीनाई, अब्दुल कादिर मीनाई समेत सैकड़ों अनुयायी उपस्थित रहे। यह खबर दरबार के खादिम तबरेज आलम ने दी।